16.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

Durga Puja: बोकारो में 1860 से हो रही दुर्गा पूजा, मां की प्रतिमा स्थापित किये बिना होती है पूजा

Advertisement

बोकारो के बेरमो में पिछले 164 वर्षों से दुर्गा पूजा मनाई जा रही है. कोलकाता से व्यपार करने आए व्यापारियों ने अपनी कला और संस्कृति बनाए रखने के लिए 1860 में दुर्गा पूजा शुरु की.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Durga Puja, राकेश वर्मा : झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत नावाडीह प्रखंड के करीब 10 स्थानों पर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना होती आ रही है. इनमें भलमारा का आयोजन ऐतिहासिक है तो दहियारी का दुर्गा मंदिर जागृत माना जाता है. सर्वाधिक रोचक है लहिया की पूजा. यहां प्रतिमा स्थापित नहीं की जाती. सभी आयोजनों की अपनी खासियत है, जो विशेष पहचान और प्रतिष्ठा दिलाती है.

- Advertisement -

जागृत है दहियारी का दुर्गा मंदिर

नावाडीह में सबसे पुराना दहियारी का दुर्गा मंदिर जागृत माना जाता है. आसपास के लोगों की इससे गहरी आस्था जुड़ी हुई है. दहियारी गांव के बंग समाज के स्व. वेणी नायक को यहां पूजा शुरू कराने का श्रेय जाता है. आज से 164 साल पहले कोलकाता से व्यापार करने के उद्देश्य से बंगाली समाज से जुड़े कई लोग गोमो आकर नावाडीह प्रखंड के दहियारी व कंचनपुर गांव में आकर बस गये. उन लोगों ने कारोबार के साथ अपनी कला संस्कृति को भी बनाये रखा. पुराने लोग बताते हैं कि स्व वेणी नायक की अगुवाई में वर्ष 1860 में दहियारी में दुर्गा पूजा शुरू की गयी. पहले दुर्गा पूजा के दौरान यहां मां के चरणों में फल-फूल ही नहीं, बल्कि सोने-चांदी के जेवरात भी चढ़ाये जाते थे. ये जेवरात बंग समाज के मुखिया के पास रखे जाते थे. विसर्जन के बाद यहां भोंगा मेला लगता है.

भलमारा की पूजा है ऐतिहासिक

भलमारा में लगभग डेढ़ सौ साल से दुर्गा पूजा हो रही है. यहां डेढ़ सौ साल पहले जटली दीदी ने चार आना से पूजा शुरू की थी. तेलो के हटियाटांड़ में 1965 से पूजा होती है. सप्तमी से दशमी तक यहां मेला भी लगता है. पपलो में भी 60 साल से अधिक समय से आयोजन हो रहा है. कंचनपुर बंगाली टोला में भी पूजा होती है. गुंजरडीह की पूजा आजादी के पहले से हो रही है. यहां दशमी के दिन मेला लगता है. नावाडीह थाना परिसर से सटे दुर्गा मंदिर में वर्ष 1956 से पूजा शुरू हुई. भंडारीदह की एसआरयू कॉलोनी में 60 के दशक से पूजा हो रही है.

परसबनी के कंचनपुर में 1905 से शुरु हुई पूजा

नावाडीह प्रखंड के परसबनी पंचायत अंतर्गत कंचनपुर में डॉ राम गोपाल भट्टाचार्य के नेतृत्व में बंगाली समाज ने 1905 में दुगार्पूजा शुरू की थी. यहां के डॉ कन्हाई लाल भट्टाचार्य के अनुसार उनके दादा अनुकूल चंद्र भट्टाचार्य के दादा डॉ राम गोपाल भट्टाचार्य कोलकाता से आकर कंचनपुर में बसे थे. वे होम्योपैथी दवाखाना चलाते थे और इलाज भी किया करते थे. भले ही यहां पूजा की शुरुआत बंगाली समाज से जुड़े लोगों ने शुरू की, लेकिन कालांतर में पूजा में यहां के मूलवासियों का भी सहयोग मिलने लगा.

लहिया में नहीं होती प्रतिमा की स्थापना

नावाडीह प्रखंड अंतर्गत ऊपरघाट स्थित लहिया में नवमी को बलि देने की प्रथा है. यहां मां की प्रतिमा स्थापित नहीं की जाती. अष्टमी के दिन गाजे-बाजे के साथ श्रद्धालु नजदीक के तालाब में जाकर पूजा करते हैं. एक महिला माथे पर कलश लेकर चलती है और सैकड़ों महिलाएं पीछे से दंडवत करती चलती हैं. सभी श्रद्धालु तालाब से जल लेकर मंदिर आते हैं. पहले यहां भैंसा की बलि दी जाती थी, जिसे कुछ वर्ष पूर्व ग्रामीणों ने बंद करवा दी. परंपरा के मुताबिक बकरे की बलि देनी पड़ती थी. यहां देवी निराकार हैं. ऊपरघाट के सिर्फ हरलाडीह में प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है.

चिरुडीह में भी शुरू हुई वैष्णवी पूजा

चंद्रपुरा प्रखंड के चिरुडीह गिरि टोला स्थित दुर्गा मंडप में ब्रिटिश काल से मां की पूजा होती आ रही है. करीब 60 घरों वाले इस गांव में पहले हर घर से एक-एक बकरे की बलि दी जाती थी. बाद में ग्रामीणों ने इस प्रथा को बंद करा दिया. यहां वैष्णवी पूजा शुरू हुई. इसी तरह तुपकाडीह स्थित स्टेशन रोड दुर्गा मंदिर में भी वर्ष 2003 से लोगों ने वर्षों से आ रही बलि प्रथा को बंद कर वैष्णवी पूजा की शुरुआत की. इसके अलावा तुपकाडीह से ही कुछ दूर स्थित माराफारी के जमींदार ठाकुर सरयू प्रसाद सिंह की हवेली के समीप प्राचीन दुर्गा मंदिर में भी वर्ष 2011 से भैंसा की बलि की परंपरा बंद कर दी गयी.

Also Read: Durga Puja: रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में ऐसी होती है मां दुर्गा पूजा, शक्तिपीठ का है विशेष महत्व

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें