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Gandhi Jayanti 2024: भितिहरवा में छप्पर जला तो महात्मा गांधी ने खड़ा कर दिया पक्का स्कूल

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Gandhi Jayanti 2024: आज दो अक्टूबर को सभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद कर रहे हैं. क्या आपको मालूम है कि पश्चिम चंपारण का भितिहरवा गांव गांधी के लिए सामाजिक चेतना और शिक्षा की प्रयोगशाला भी रहा है. पढिए प्रभात खबर की ये खास रिपोर्ट....

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Gandhi Jayanti 2024

अनुज शर्मा, मुजफ्फरपुर बिहार के चंपारण में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह ही नहीं किया था. सामाजिक चेतना और शिक्षा की बुनियाद भी रखी थी. नील की खेती करने वाले किसानों के ब्रिटिश शोषण ने गांधी को चंपारण तक पहुंचाया था, लेकिन उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि उचित ग्रामीण शिक्षा के बिना स्थायी बदलाव असंभव था. इसलिए भितिहरवा में गांधी ने सामाजिक चेतना और शिक्षा की बुनियाद रखी. लोगों ने छप्पर जलाया तो पक्का स्कूल खड़ा कर दिया.पश्चिम चंपारण में इस बात के प्रमाण आज भी मौजूद हैं कि,किस प्रकार महात्मा गांधी और उनके सहयोगियों ने कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए भी शिक्षा और समाज सुधार के अपने उद्देश्यों को नहीं छोड़ा.

निलहों के विरोध और मुश्किलों के बावजूद, वे अपने कार्य में लगे रहे गांधीजी के अदम्य साहस और उनके आदर्शों की शक्ति को साबित किया, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनी रही. महात्मा गांधी की आत्मकथा ‘सत्य प्रयोग अथवा आत्मकथा’ में गांधीजी की बिहार यात्रा और उनके द्वारा किए गए शिक्षा, स्वच्छता, और समाज सुधार के कार्यों का वर्णन मिलता है. बिहार के संदर्भ में गांधीजी ने जो कार्य किए, वे उस समय के समाज को नई दिशा देने वाले साबित हुए. उनके नेतृत्व में न केवल बिहार में शिक्षा का प्रसार हुआ, बल्कि समाज में स्वच्छता और नैतिकता के महत्व को भी स्थापित किया गया.

गांधीजी की बिहार यात्रा बनी शिक्षा का नया अध्याय

गांधीजी जब बिहार पहुंचे, तो उन्होंने सबसे पहले शिक्षा के महत्व को पहचाना. हालांकि, उन्होंने महसूस किया कि शिक्षा का उद्देश्य केवल साक्षरता नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक विकास भी होना चाहिए. उनके अनुसार, बच्चों को ऐसे शिक्षक के हाथों में सौंपना चाहिए, जिनमें चरित्रबल हो. उन्होंने कहा, “शिक्षक को अक्षर-ज्ञान चाहे थोड़ा हो, पर उसमें चरित्रबल तो होना ही चाहिए.” बिहार में शिक्षा का प्रसार करने के लिए गांधीजी ने भितिहरवा विद्यालय की स्थापना की. यह विद्यालय बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थित है और गांधीजी की शिक्षा संबंधी दृष्टि का प्रतीक है. इस विद्यालय का उद्देश्य केवल साक्षरता का प्रसार नहीं था, बल्कि बच्चों और युवाओं को नैतिकता, स्वच्छता, और समाज सेवा के लिए प्रेरित करना भी था.

भितिहरवा विद्यालय ने न केवल स्थानीय बच्चों को शिक्षा दी, बल्कि उन्हें गांधीजी के विचारों के अनुरूप एक बेहतर नागरिक बनने की दिशा में भी अग्रसर किया. गांधीजी ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वयंसेवकों की मांग की. उन्होंने ऐसे लोगों को बुलाया, जिनमें न केवल शिक्षा का ज्ञान हो, बल्कि समाज सेवा का जज्बा भी हो. इस कार्य में उन्होंने गंगाधर राव देशपांडे, अवंतिका बाई गोखले, आनंदीबाई , महादेव देसाई की पत्नी दुर्गा बहन, नरहरि परीख की उनकी पत्नी मणिबहन को शामिल किया. ये सभी लोग शिक्षा के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाने के लिए प्रतिबद्ध थे. भितिहरवा विद्यालय के माध्यम से, इन विचारों का व्यापक प्रसार हुआ और समाज में एक नई जागरूकता का संचार हुआ.

बच्चों से अधिक बड़ों को दी स्वच्छता की शिक्षा


शिक्षा के साथ-साथ गांधीजी ने स्वच्छता को भी अपने एजेंडे में रखा. गांवों में व्याप्त गंदगी और अस्वास्थ्यकर स्थितियों को देखकर उन्होंने महसूस किया कि स्वच्छता की शिक्षा बच्चों से अधिक बड़ों को देने की जरूरत है. गांवों की गलियों में कचरा, कुओं के आसपास कीचड़ और बदबू, और घरों के आंगनों की गंदगी ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि स्वच्छता का संदेश सबसे पहले लोगों तक पहुंचाना आवश्यक है.
गांधीजी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर स्वच्छता के नियमों को गाँव के लोगों तक पहुंचाया. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि लोग न केवल स्वच्छता का महत्व समझें, बल्कि उसे अपने जीवन में अपनाएं भी. उनके इस प्रयास का परिणाम यह हुआ कि गाँवों में स्वच्छता की स्थिति में सुधार हुआ और लोगों में एक नया जागरूकता का संचार हुआ.

अनुशासन और सेवा भावना विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल


गांधीजी ने न केवल शिक्षा और स्वच्छता को बढ़ावा दिया, बल्कि उन्होंने समाज के हर वर्ग को इसमें शामिल किया. महिलाओं को शिक्षा और समाज सेवा के कार्यों में शामिल करके उन्होंने यह संदेश दिया कि समाज में महिलाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. अवन्तिका बाई और आनंदीबाई जैसी महिलाओं के प्रयासों से न केवल बच्चों की शिक्षा में सुधार हुआ, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति भी मजबूत हुई.
भितिहरवा विद्यालय का इस परिवर्तन में विशेष योगदान रहा. यहां बच्चों को न केवल पाठ्यपुस्तक की शिक्षा दी जाती थी, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती थी. स्वच्छता, अनुशासन, और सेवा की भावना को विद्यालय के पाठ्यक्रम में विशेष रूप से शामिल किया गया था. गांधीजी का मानना था कि शिक्षा का असली उद्देश्य बच्चों को एक बेहतर इंसान बनाना है, और भितिहरवा विद्यालय ने इसी विचारधारा को अपनाया.

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महात्मा गांधी की आत्मकथा में चंपारण के प्रेरणादायक अनुभव

महात्मा गांधी की आत्मकथा में चंपारण के भितिहरवा विद्यालय से जुड़ा एक प्रेरणादायक अनुभव मिलता है, जो गांधीजी के दृढ़ निश्चय और समाज सुधार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. जब गांधीजी ने बिहार के भितिहरवा गांव में शिक्षा के प्रसार के लिए विद्यालय की स्थापना की, तो स्थानीय निलहों द्वारा इसका विरोध हुआ. यह विरोध इतना तीव्र था कि एक रात, विद्यालय का छप्पर, जो बाँस और घास से बना था, जला दिया गया.इस घटना ने गांधीजी और उनके साथियों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दीं, लेकिन वे इससे हताश नहीं हुए.’सत्य प्रयोग अथवा आत्मकथा’ में गांधीजी इस घटना का जिक्र करते हैं. विद्यालय के प्रभारी सोमण और कस्तूरबा गांधी ने इस घटना के बाद एक पक्का मकान बनाने का निर्णय लिया. सोमण ने खुद ईंटों का निर्माण और मकान बनाने का कार्य अपने हाथों में लिया. उनके इस परिश्रम ने अन्य लोगों को भी प्रेरित किया, और देखते ही देखते, ईंटों का एक स्थायी भवन खड़ा हो गया. यह भवन न केवल भितिहरवा विद्यालय का केंद्र बन गया, बल्कि यह गांधीजी के सिद्धांतों और उनके संघर्ष की प्रतीक भी बन गया.

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