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Supaul news : अब कटाव के भंवर में फंसेंगे बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के 100 से अधिक गांव

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Supaul news : कोसी के जल स्तर में थोड़ी कमी आयी है, लेकिन नदी के किनारे बसे गांवों में अभी भी बाढ़ व कटाव का खतरा बना हुआ है.

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Supaul news : शोक ऑफ बिहार कही जानेवाली कोसी नदी के जल स्तर में आयी कमी ने लोगों को थोड़ी राहत तो दी है, लेकिन खतरा अभी भी पूरी तरह टला नहीं है. बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के जान और माल पर संकट अब भी बरकरार है. शुक्रवार को सुपौल जिला प्रशासन के हाई अलर्ट के बाद कोसी नदी का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर पहुंच गया. कई इलाकों में बाढ़ के कारण जनजीवन ठप हो गया था और हजारों लोग बेघर हो गये थे. अब जल स्तर में थोड़ी कमी आयी है, लेकिन नदी के किनारे बसे गांवों में अभी भी बाढ़ व कटाव का खतरा बना हुआ है. प्रशासन ने ऐहतियात के तौर पर राहत शिविरों की संख्या बढ़ा दी है और लोगों से सतर्क रहने की अपील की है. निचले इलाकों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने का काम लगातार जारी है. पर, अगर फिर से बारिश होती है तो स्थिति और गंभीर हो सकती है. स्थानीय शिवचरण पासवान कहते हैं कि हर साल हम इसी डर के साये में जीते हैं. जब भी बारिश होती है, हम अपने जान-माल की चिंता में डूब जाते हैं. इस बार भी हालात बेहतर नहीं हैं.

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हर साल बाढ़ झेलने को विवश हैं लोग

कोसी की बाढ़ ने पिछले कई वर्षों में अनगिनत परिवारों की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है. हर साल आनेवाली बाढ़ न सिर्फ फसलें बर्बाद करती है, बल्कि घरों को भी जलमग्न कर देती है. हालांकि प्रशासन स्थिति पर नजर बनाए हुए है. साथ ही बाढ़ से निबटने के लिए आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं. पर, बाढ़ प्रभावित लोगों की मुश्किलें इतनी जल्दी खत्म होनेवाली नहीं है. इस प्राकृतिक आपदा का सामना करना हर साल उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. कोसी के साथ जीने की यह मजबूरी कब खत्म होगी, यह सवाल हर उस परिवार के दिल में है, जो बाढ़ के कहर को झेलने के लिए मजबूर है. नेपाल के हिमालय से निकलने वाली यह नदी बिहार के उत्तरी भाग में प्रवेश करने के बाद लगभग हर माॅनसून के दौरान विकराल रूप ले लेती है. जब भारी बारिश होती है, तो नदी का जल स्तर अचानक बढ़ जाता है, जिससे आसपास के इलाकों में बाढ़ का कहर टूट पड़ता है.

बाढ़ और कटाव एक सतत समस्या

कोसी नदी के क्षेत्र में बाढ़ और कटाव कोई नयी समस्या नहीं है. इस नदी का प्रवाह क्षेत्र इतना अनिश्चित है कि यह हर कुछ वर्षों में अपना रास्ता बदल देती है. इससे तटीय इलाकों में कटाव की स्थिति और विकराल हो जाती है. बाढ़ के दौरान पानी का वेग इतना अधिक होता है कि गांव, खेत, और सड़कों का नामोनिशान मिट जाता है. लोग अपने घरों से विस्थापित हो जाते हैं, सैकड़ों एकड़ फसलें नष्ट हो जाती हैं. कई बार लोगों की जान तक चली जाती है. हालांकि सरकार हर साल राहत कार्यों की घोषणा करती है, लेकिन धरातल पर हालात ज्यों के त्यों बने रहते हैं. तटबंध निर्माण और मरम्मत कार्य की योजनाएं समय पर पूरी नहीं हो पातीं. कई जगहों पर तटबंधों में दरार पड़ने के कारण बाढ़ और कटाव की स्थिति और गंभीर हो जाती है.

वैज्ञानिक समाधान की जरूरत

बदलते जलवायु परिवर्तन के कारण कोसी के क्षेत्र में बाढ़ की गंभीरता और आवृत्ति में वृद्धि हो रही है. जहां एक ओर तात्कालिक समाधान के रूप में राहत कार्य किये जाते हैं, वहीं दीर्घकालिक समाधान की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के अनुसार, नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने और कटाव की समस्या से निबटने के लिए आधुनिक तकनीकों और वैज्ञानिक उपायों की आवश्यकता है.

क्या भविष्य में राहत संभव है ?

कोसी नदी की समस्या के समाधान के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को ठोस नीति बनानी होगी. जल संचयन, नदी तटबंधों की वैज्ञानिक निगरानी और कटावरोधी योजनाओं का क्रियान्वयन इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. इसके अलावा, नेपाल और भारत के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है, ताकि जल प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके और बाढ़ के दौरान स्थिति को संभालने के लिए पूर्वानुमान तंत्र को मजबूत किया जा सके.

कोसी की गाद बनती जा रही है जानलेवा

कोसी नदी पीड़ा के साथ-साथ गाद भी लाती है. यह गाद पीड़ितों के लिए सबसे अधिक जानलेवा साबित हो रही है. जानकार बताते हैं कि कोसी नदी सालाना करीब 283.40 मिलियन टन गाद लाती है. इस गाद के फैलाव को मापा जाये तो यह 145 मिलियन टन प्रति हजार एकड़ फीट होता है. सालाना के हिसाब से यह 2.97 मिलीमीटर होता है. यह गाद अब कोसी पीड़ितों के लिए जानलेवा साबित हो रही है. जानकार बताते हैं कि कोसी इलाके में नदी तल एवं बहु फसली जमीन में भी 12 से 18 इंच तक जमी गाद पीड़ितों पर दोहरा कहर बरपा रही है. यह गाद तटबंधों के भीतर नदी के पेट में जमा होती है, जिससे नदी उथली होती जाती है. तटबंधों के टूटने से बाढ़ आती है तो खेतों में मोटे बालू की परत बिछ जाती है. खेतों की उर्वरता समाप्त हो जाती है.

खोलो धरिया उतरो पार तब जानो कोसी का हाल…

जब नदियों पर तटबंध नहीं बने थे, तो बाढ़ का पानी पूरे इलाके में फैलता था. दो-दस दिनों में बाढ़ का पानी उतरता तो खेतों में सिल्ट या गाद की महीन परत बिछी होती थी. वह गाद उर्वरता के गुणों से भरपूर होती थी. पूरे इलाके में फैल जाने से समस्या नहीं होती थी, बल्कि वह खेतों की उर्वरता को बढ़ाने वाला अवयव साबित होता था. बताते हैं कि जमालपुर के पास बांध टूटने का सबसे बड़ा कारण गाद ही है. बराज से सहरसा जिले के नवहट्टा तक जहां पश्चिमी तटबंध की ओर अधिक गाद जमा है, वहीं नवहट्टा के बाद यह गाद पूर्वी तटबंध पर अधिक जमा है. दो तटबंधों के बीच लगभग 14 किमी दायरे में बहने वाली कोसी नदी कई धारा में बहती है. कोसी में इसी कारण एक कहावत काफी चर्चित है की खोलो धरिया उतरो पार तब जानो कोसी का हाल…

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