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Dhanbad News: हमारे बुजुर्ग नौजवान, जो अपनी दूसरी पारी भी बना रहे यादगार

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बुजुर्ग दिवस पर विशेष : बदलाव के इस दौर में ऐसे लोगों की संख्या काफी बढ़ी है जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद से जीवन को रिस्टार्ट कहा और नयी पारी लिख दी. हमारे आसपास ऐसे अनगिनत चेहरे दिख जायेंगे, जिन्होंने नौजवानों को पीछे छोड़ दिया है.

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धनबाद.

तेज रफ्तार और बदलती दुनिया व संसाधनों में उम्र की गणना की दशा-दिशा भी बदल गयी है. मन से बुजुर्ग हुए तो उम्र के आंकड़े कागजों के साथ-साथ चेहरे पर भी दिखने लगते हैं और मन से जवान रहे, तो ये आंकड़े कागजों पर सिमट कर रह जाते हैं. बदलाव के इस दौर में ऐसे लोगों की संख्या काफी बढ़ी है जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद से जीवन को रिस्टार्ट कहा और नयी पारी लिख दी. ऐसे कई उदाहरण हैं. इसके लिए बस अपने आसपास गंभीरता से देखने की जरूरत है. ऐसे अनगिनत चेहरे दिख जायेंगे, जिन्होंने नौजवानों को पीछे छोड़ दिया है. बुजुर्ग दिवस के मौके पर प्रभात खबर ने धनबाद के ऐसे ही बुजुर्गों से बात की है, जो अपनी जिंदगी की दूसरी पारी पूरी बुलंदी के साथ खेल रहे हैं. इनके उत्साह और विचार नयी पीढ़ी के लिए नयी ऊर्जा भरने का काम करते हैं. पढ़ें प्रभात खबर की यह प्रस्तुति.

खेल और बच्चों के बीच मैं भी बच्चा हूं : इम्तियाज

74 वर्षिय क्रिकेट कोच मो. इम्तियाज हुसैन बताते हैं कि मेरी जिंदगी छोटे बच्चों से लेकर युवाओं के बीच कटती है. रेलवे ग्राउंड स्थित मेरी अकादमी में दर्जनों बच्चे क्रिकेट सीखने पहुंचते हैं. उन्हें हाथ पकड़ कर गेंदबाजी और बल्लेबाजी सिखाता हूं. इसी में पूरा दिन निकल जाता है. यदि समय बचता है, तो अपनी दुकान पर चला जाता हूं. बचे समय में घर के काम भी निबटा लेता हूं. बच्चों के साथ रहते-रहते कभी उम्र का एहसास नहीं हुआ. तमन्ना है कि बच्चों को खेल जगत में फलक तक पहुंचा दूं. उम्र तो बस आंकड़ा है, आगे बढ़ना और खुद को अपडेट रखना ही मुख्य लक्ष्य होना चाहिए.

संगीत, आर्ट, बच्चे और दोस्तों के बीच उम्र कहां : श्यामल सेन

80 वर्ष के कलाकार श्यामल सेल ने कहा कि मेरे दिन की शुरुआत सुबह पांच बजे मॉर्निंग वॉक से होती है. फिर संगीत साधना और आर्ट क्लास. आप कल्पना नहीं कर सकते कि जब सुबह में अपने हमउम्र के साथ संगीत साधना होती है, कुछ गुनगुनाते हैं, तो सारा दिन तरोताजा रहते हैं. फिर आर्ट स्कूल में बच्चों को कैनवास पर दुनिया उतारना सिखाना और कुछ अलग कलाकृति बनाना नवजीवन समान है. दोपहर का समय घर के लिए होता है. फिर रात में आठ से दस बजे तक दोस्तों संग संगीत की महफिल में पुराने गीतों पर सुर-ताल मिलते हैं. अब ऐसे में भला उम्र की क्या बिसात कि वह पास आये.

अभी तो आगे बढ़ना है, कई कीर्तिमान गढ़ने हैं : बीएन सिंह

74 साल के उद्योगपति बीएन सिंह 25 सालों से इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स की बागडोर संभाल रहे हैं. वह इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स एसोसिएशन का काम देखने के साथ अपने इंडस्ट्रीज में भी समय देते हैं. जिंदगी का मूलमंत्र सादगी व अनुशासन को मानते हैं. रोज सुबह मॉर्निंग वॉक, भजन व न्यूज से दिन की शुरुआत होती है. समय की पाबंदी के सब कायल हैं. कहते हैं कि रिटायरमेंट तो मन का वहम है, आप चाहें तो रिटायर हो जायें, ना चाहें तो अगली पारी में शतक लगायें. कहते हैं कि जोश के साथ सामाजिक कार्यों व व्यवसाय को समय दें, तो कभी उम्र हावी नहीं होगी. अपना मूलमंत्र मानते हैं सदैव आगे बढ़ना.

जिंदगी जिंदादिली का नाम है : दुलेराय चावड़ा

बैंक मोड़ करबला रोड गुजराती मुहल्ला के 83 वर्षीय दुलेराय चावड़ा की दिनचर्या मुहल्ले और समाज के साथ शुरू होती है. सुबह पांच बजे हाथ में झाडू लेकर वह अपने मुहल्ले की सफाई पर निकल जाते हैं. नाली से लेकर गली तक की सफाई करने के बाद अपने काम में जुटते हैं. इन सबके बाद जो समय मिलता है उसे समाज के लोगों को देते हैं. फिलहाल गुजराती स्कूल में होने वाले रास गरबा की तैयारी में जुटे हैं. कहते हैं कि जब निगम की गाड़ियां गली-मुहल्लाें में नहीं पहुंचती थीं, तब अपने स्कूटर पर मुहल्लों का कचरा लेकर फेंकने जाते थे. एक बार नगर निगम ने उन्हें ब्रांड एंबेसडर भी बनाया था.

फिट रहना है, तो मन को खुश रहना सीखें : लता पांडेय

जीवन को चलने का नाम मानती हैं 72 साल की लता पांडे. उम्र के इस पड़ाव में भी ना केवल घर का दायित्व संभालती हैं, बल्कि बाहरी दुनिया के साथ भी कदमताल करती हैं. कहती हैं कि उनके दिन की शुरुआत गार्डनिंग, मार्निंग वॉक व पूजा पाठ के साथ होती है. साहित्य रचना में रुचि होने के कारण रोज कुछ ना कुछ लिखती हैं. इनके द्वारा रचित दोहे धनबाद के साहित्य जगत में खूब पसंद किये जाते है. इतना ही नहीं साहित्यिक सम्मेलनों में भी इनकी भागीदारी रहती है. कहती हैं कि खाली समय नकारात्मकता पैदा करता है. फिट व सकारात्मक रहने के लिए मन को खुश रखना जरूरी है, तन वैसे ही खुशहाल रहेगा.

दूसरों के लिए जीना ही जिंदगी है : रामानुज प्रसाद

अवकाश प्राप्त कोल अधिकारी हैं रामानुज प्रसाद 80 साल के हैं. इस उम्र भी अपने दिन की शुरुआत अवकाश प्राप्त कोलकर्मियों व अधिकारियों के लिए काम करने से करते हैं. कहते हैं कि खुद का काम तो हर कोई करता है, पर दूसरों के लिए जीना ही तो जिंदगी है. कोल सेक्टर की समस्याओं के दोचार होने के बाद घर के काम में समय देते हैं. कहते हैं कि बच्चों व सहकर्मियों के साथ रहने से कभी उम्र का एहसास नहीं हुआ. कोल पेंशनर्स का पेंशन रिवाइज कराने की कोशिश में लगा हूं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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