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करोड़ो की राशि खर्च कर बना कॉलेज, आज तक शुरू नहीं हो सका आइटीआइ की पढ़ाई

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क्षेत्र के सैकड़ों बच्चे तकनीकी पढ़ाई से पीछे छूटे, इसीएल की ओर से सीएसआर की राशि खर्च कर 2016 में बनाया गया था आइटीआइ कॉलेज

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राजमहल कोल परियोजना क्षेत्र के प्रभावित इलाके के बच्चों को तकनीकी शिक्षा देकर उसे रोजगार का अवसर प्रदान करने को लेकर आइटीआइ कॉलेज का निर्माण कराया गया था. 2016 में राजमहल परियोजना ने 2 करोड़ 50 लाख की राशि खर्च कर ललमटिया में आइटीआइ भवन का निर्माण किये जाने के बावजूद अब तक बच्चों की शिक्षा को लेकर पढ़ाई चालू नहीं हो सकी है. परियोजना क्षेत्र के हजारों बच्चे आज तकनीकी शिक्षा से पीछे छूट रहे है. अगर भवन निर्माण के साथ ही शिक्षा देना शुरू हो जाता, तो सैकड़ों की संख्या परियोजना प्रभावित युवाओं को नौकरी व रोजगार के अवसर मिल जाता. बताया जाता है कि परियोजना प्रबंधन की ओर से भवन बनाने की पूरी राशि झारखंड सरकार को दी गयी थी. 2016 में सरकार को दी गयी राशि के बाद टेंडर की प्रक्रिया कर भवन बनाया गया. आज भवन निर्माण के आठ साल बीत जाने के बावजूद अब तक क्षेत्र के बच्चों को तकनीकी शिक्षा देने को लेकर पढ़ाई आरंभ नहीं हो सकी है. ललमटिया का क्षेत्र एक तरफ जहां आदिवासी बाहुल्य है, वहीं इसीएल परियोजना को जमीन देकर आज कोयला उत्खनन में बड़ा सहयोग क्षेत्र के लोगों द्वारा किया गया है. क्षेत्र के प्रभावित परिवार के बच्चों को पैसे के अभाव में बेहतर स्थानों के साथ उच्चस्तरीय शिक्षा नहीं मिल पा रही है. ऐसे में आइटीआइ के आरंभ होने से उन्हें तकनीकी व रोजगार उन्मुख शिक्षा मिल पाती. पढाई आरंभ होने पर प्रत्येक वर्ष 500 बच्चों को तकनीकी शिक्षा मिलती, जो संभव नहीं हो पा रहा है. आइटीआइ कॉलेज में पढ़ाई शुरू होने से आठ साल के दौरान 4000 बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाया जा सकता था. वहीं दूसरी तरफ आइटीआइ की पढ़ाई बच्चों के बीच आरंभ नहीं हो पा रही है. मगर परियोजना व सरकार की ओर से कौशल विकास प्रशिक्षण को लेकर हमेशा क्षेत्र के युवाओं को जागरूक करने के साथ बाहर भेजा जाता है, जिस पर प्रबंधन की ओर से राशि खर्च की जाती है. आइटीआइ की पढ़ाई आरंभ नहीं किये जाने की वजह को दुर्भाग्य बताते हुए नेता रामजी साह, राधा साह, बाबूलाल किस्कू आदि मजदूर नेताओं ने कहा कि भवन बनने के साथ-साथ अब जर्जर होने को चला है. मगर अब तक आइटीआइ की पढ़ाई शुरू नहीं हो पायी है. दो वर्ष पूर्व भवन में आइआरबी के जवानों को रखा गया था. पूरा भवन कैंप में तब्दील था. वर्तमान समय में आदिवासी इंटर कॉलेज के नाम से भवन के बाहर बोर्ड लगाया गया है. फिलहाल भवन का उपयोग नहीं किया गया है. पहले पंचायत चुनाव के दौरान इसका उपयोग किया गया था. क्षेत्र के जनप्रतिनिधि ने भी भवन में पढ़ाई शुरू करने के लिए कोई भी पहल नहीं की है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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