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Hindi Diwas 2024: क्या हिंदी एक वोट से जीती थी राजभाषा की सीट? कितनी है सच्चाई

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क्या था मुंशी-आयंगर फॉर्मूला, जिसके कारण हिंदी बनी केंद्रीय कामकाज की भाषा

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Hindi Diwas 2024 : सोशल मीडिया पर यह जंग तो पुरानी है कि हिंदी राजभाषा है या राष्ट्रभाषा? इस पर कई बार आम से लेकर खास तक गफलत में रहते हैं. सरकारी दस्तावेजों के अध्येता ही अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है. वहीं हिंदी राजभाषाओं की सूची में शामिल एक भाषा है. 

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हिंदी को 14 सितंबर 1949 को केंद्र सरकार की कामकाज की भाषा के रूप में भारत की संविधान सभा ने स्वीकार किया. परंतु इसके साथ शर्त रख दी गई कि संविधान लागू होने के 15 साल बाद तक अंग्रेजी ही केंद्रीय कामकाज की मुख्य भाषा रहेगी. उसके बाद अंग्रेजी को हटाकर हिंदी को वह स्थान दिया जाएगा. लेकिन दक्षिण भारतीय राज्यों के विरोध के कारण अभी तक हिंदी को वह स्थान नहीं दिया जा सका है.

कथित रूप से देश पर हिंदी थोपने का आरोप लगाने वालों का  प्रलाप रहता है कि संविधान सभा में मत विभाजन के दौरान हिंदी को केवल एक वोट अधिक मिले और उसे केंद्र सरकार के कामकाज की मुख्य भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया. परंतु संविधान सभा की बहस के दस्तावेजों से इसकी पुष्टि नहीं होती है.

Hindi Diwas 2024: कहां से आई धारणा, हिंदी को केवल एक वोट ज्यादा मिले

लाख टके का सवाल यह भी है कि 12-14 सितंबर 1949 तक हिंदी को केंद्र सरकार के कामकाज की भाषा रखने के लिए चली बहस की कार्यवाही से जब यह पता नहीं चलता है कि हिंदी को केवल एक वोट ज्यादा मिले तो फिर बात कहां से आई?

भारत सरकार के राजभाषा विभाग की पत्रिका राजभाषा भारती के अप्रैल-मई 1995 के अंक में इस पर पर्याप्त स्पष्टीकरण दिया गया है. इसे साहित्यकार और सांसद रहे शंकरदयाल सिंह ने लिखा है. इसमें हिंदी को केंद्रीय कामकाज की भाषा बनाने के लिए हुए घटनाक्रम पर पर्याप्त रोशनी डाली गई है. 

Hindi Diwas 2024: क्या लिखा है बाबा साहब आंबेडकर ने 

बाबा साहब आंबेडकर अपनी पुस्तक थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स में लिखते हैं कि हिंदी को लेकर संविधान सभा में सबसे अधिक गरमागरमी हुई. विवाद के बाद इस प्रश्न पर मतदान हुआ तो दोनों पक्ष में 78-78 मत थे. पुनर्विचार के बाद जब पुनः मतदान हुआ तो हिंदी के पक्ष में 78 और विपक्ष में 77 मत थे.

सेठ गोविंद दास ने भी अपनी आत्मकथा में इसी तरह की बात का उल्लेख किया है. वे लिखते हैं कि पटियाला के काका भगवंत राय हिंदी के पक्ष में अपना मत देकर और यह जानकर कि मतदान उनके पक्ष में हुआ है बाहर चले गए. शंकर दयाल सिह का दावा है कि दोनों लेखकों ने जिस घटना का जिक्र किया है, वह 26 अगस्त को कांग्रेस पार्टी मीटिंग की घटना है, संविधान सभा की नहीं. 

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Hindi Diwas 2024: विवाद केवल हिंदी और अंग्रेजी अंकों को लेकर था ?

शंकर दयाल सिंह लिखते हैं कि दो सितंबर की शाम को मुंशी-आयंगर सूत्र पर विचार विमर्श हुआ. अध्यक्षता डॉ. पट्टाभि सीतारमैया कर रहे थे. यहां तथाकथित जो भी बहस थी, वह अंतर्राष्ट्रीय अंकों के लेकर थी और कोई भी निर्णय नहीं हो सका. 

12 सितंबर को फिर से बहस शुरू हुई. 14 सितंबर को एक बजे तक कोई हल नहीं निकला. शाम पांच बजे से पट्टाभि सीतारमैया की अध्यक्षता में फिर से बैठक शुरू हुई. कुछ सदस्यों ने सर्वसमम्त समाधान तक पहुंचने के लिए एक घंटे का समय मांगा. 

6 बजे तक सभी पहलुओं पर विचार कर मुंशी-आयंगर फॉर्मूला में सुधार कर दिया गया. सभी सदस्यों ने राहत की सांस ली. इस तरह 71 सदस्यों के तीन दिन तक बहस के बाद देवनागरी लिपि और अंग्रेजी अंकों के साथ कुछ और शर्तों को स्वीकार करते हुए हिंदी को केंद्र सरकार की कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार लिया गया. कन्हैया लाल मुंशी और गोपाल स्वामी आयंगर का फॉर्मूला यही था कि हिंदी को देश भर में सहज स्वीकार्य होने तक राष्ट्रभाषा की जगह फिलहाल राजाभाषा ही रहने दिया जाय. साथ ही राज्यों के प्रशासन की भाषा की जिम्मेवारी आगे गठित होने वाले राज्य विधानमंडलों पर छोड़ दिया जाय.

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