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नदियों को दूषित करना, तो कोई नगर परिषद से सीखे, लो लैंड फिलिंग के नाम पर नदी में बहा रहा शहर का कचरा

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नदियों को दूषित करना, तो कोई नगर परिषद से सीखे, लो लैंड फिलिंग के नाम पर नदी में बहा रहा शहर का कचरा

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प्रतिनिधि, मधेपुरा केंद्र सरकार ने देश के नदियों के संरक्षण व उसकी साफ-सफाई के लिए नमामि गंगे नाम से एक अलग विभाग ही बना दिया है. यह विभाग देश के अलग-अलग हिस्सों में वहां बहने वाली नदियों के अस्तित्व को बचाने और उसे निखारने में जुटी हुई है. मधेपुरा शहर का सौभाग्य है कि यहां तीन ओर से नदियां बहती है. लगभग दो दशक पूर्व तक तीनों नदियों की धारा कल-कल, छल-छल करती लोगों को सुकून देती थी, लेकिन अब दुर्भाग्य यह है कि इन नदियों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है. नगर परिषद की लापरवाही व हठधर्मिता के कारण नदियां दूषित होती जा रही है. नदी का जल उपयोग करने, स्नान-ध्यान या फिर पूजा-पाठ के लायक नहीं रह गया है. दरअसल नगर परिषद पूरे शहर का कचरा इन्हीं नदियों के किनारे डंप कर रहा है.

नदी का स्वरूप अब बड़े नाले में

वर्षों पूर्व नदियां अपनी पावन अस्मिता के साथ अपनी वेग में बहा करती थी. सुबह-सुबह लोग स्नान-ध्यान करने अथवा पूजा-पाठ को यहां नियमित आते थे. बिहार के लोक आस्था का महान पर्व छठ इन नदियों के दोनों किनारे पर मनाया जाता था. वह छटा देखते ही बनती थी. नदियों के किनारे सुबह-शाम सैर करने आते थे, लेकिन बीते कुछ वर्षों से नगर परिषद पूरे शहर का कचरा इन्हीं नदियों के तट पर डाल रहा है. तट से होता हुआ यह कचरा नदियों को ढ़कता जा रहा है. नप के इस विवेकहीन रवैये से नदियां लगातार सिकुड़ती जा रही है. वास्तव में अब इन नदियों का स्वरूप बड़े नाले में तब्दील होता जा रहा है.

नदी के जल में होता है मल बहिश्राव भी

लगातार कचरा फेंके जाने और उसके सड़ने-गलने से नदी इतनी दूषित हो चुकी है कि अब नदी के किनारे छठ मनाता कोई परिवार विरले ही मिलता है. नगर परिषद सहित निजी एजेंसी इन्हीं नदियों में मल बहिश्राव करता है. पानी इतना संक्रमित हो चुका है कि जल हाथ-पैर धोने अथवा आचमन करने योग्य नहीं रह गया है. नदी के जहरीले पानी में अब कहीं भी मछलियां तक नहीं दिखती है. सुबह-शाम सैर करने की बात तो बीते दिनों की बात हो चुकी है. अब नदी के आसपास से गुजरने वाले लोगों को नाक बंद कर जल्दी से पार करने की जल्दबाजी होती है.

हद हो गयी नप के हठधर्मिता की

सविता देवी बताती हैं कि पहले नदी का पानी साफ रहने के कारण हर पर्व में नदी में ही स्नान करने की परंपरा थी, लेकिन कचरा व मल बहिश्राव से नदी का पानी किसी काम का नहीं रहा. अभिषेक कुमार ने बताया कि यदि प्रशासन ने इस ओर ध्यान शीघ्र ध्यान नहीं दिया गया, तो नदी का अस्तित्व खत्म हो जायेगा, लेनिन ने कहा कि समय-समय पर नदी की साफ-सफाई होनी चाहिए. नदी के किनारे कूड़ा फेंकना पर्यावरण के साथ खिलवाड़ है. विनीता भारती कहती हैं कि कचरा फेंके जाने से शहर की जीवन रेखा मानी जाने वाली नदियां अपना अस्तित्व खोती जा रही है. ध्यानी यादव कहते हैं कि हर दिन छोटी-बड़ी गाड़ियों से कचरा नदियों के किनारे गिरायी जा रही है और वह नदी के जल में घुलकर उसे दूषित कर रही है.

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कई बार निर्देश व चेतावनी देने के बाद भी एनजीओ लगातार ऐसी हरकत करता जा रहा है. कचरा डंपिंग के लिए अलग यार्ड चिह्नित है. नदी के किनारे फेंकने से वहां आसपास बसे लोगों को भी परेशानी हो रही है. शीघ्र कार्रवाई की जायेगी.

कविता साह, मुख्य पार्षद, नगर परिषद, मधेपुरा

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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