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IC 814: The Kandahar Hijack: विवादों के घेरे में कंधार हाइजैक वेबसीरीज

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IC 814: The Kandahar Hijack : जब 24 दिसंबर, 1999 को यह सूचना आयी कि काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़े विमान का अपहरण हो गया है, तो देश सन्न रह गया. तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री अजीत पांजा के 15 मार्च, 2000 को संसद में दिये बयान के अनुसार, शाम 4.53 बजे विमान अपह्वत हुआ तथा तीन मिनट बाद दिल्ली एयर ट्रैफिक कंट्रोल को पहली सूचना मिली.

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IC 814: The Kandahar Hijack : लगभग 25 वर्ष पहले हुए आइसी 814 विमान अपहरण की सिहरन भरी स्मृतियां फिर सामने हैं. नेटफ्लिक्स पर आयी सीरीज ‘आइसी 814: द कंधार हाईजैक’ को उस घटना पर आधारित बताया गया है. इसमें कुछ घटनाओं के चित्रण, नामों के प्रयोग आदि से देश में नाराजगी है. इतनी बड़ी आतंकवादी घटना को जासूसी कथानक की तरह प्रस्तुत करना और भारतीय एजेंसियों की छानबीन के विपरीत आइएसआइ की भूमिका को नकारना देश को नागवार गुजरा है. सूचना और प्रसारण मंत्रालय की चेतावनी के बाद डिस्क्लेमर लगा दिये गये हैं, किंतु इतना काफी नहीं है. इस विवाद के दो पहलू हैं. पहला, ओटीटी प्लेटफॉर्म की स्वच्छंदता तथा दूसरा, कंधार विमान अपहरण कांड का सच.

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ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सेंसर बोर्ड की बाधा नहीं

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर न सेंसर बोर्ड की बाधा है और न ही सामान्यतया कोई रोक-टोक. कई वेब शृंखलाओं ने देश को उद्वेलित किया है, पर कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं बनी. यह निश्चित ही विचारणीय विषय है. देश की अभिरुचि दूसरे विषय में इस समय थोड़ी ज्यादा है. इस सीरीज को उस विमान के कैप्टन देवी शरण की 2000 में प्रकाशित पुस्तक ‘फ्लाइट इंटू फीयर’ पर आधारित कहा गया है. उस अपहरण कांड पर अनेक पुस्तक लिखीं गयी हैं और सबका दावा है कि उनके पास सही जानकारी है. कांड से सीधे जुड़े तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने ‘इन सर्विस ऑफ इमरजेंट इंडिया: ए कॉल टू ऑनर में भी इस पर कुछ प्रकाश डाला है.

विमान अपहरण की सूचना से सन्न था देश

जब 24 दिसंबर, 1999 को यह सूचना आयी कि काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़े विमान का अपहरण हो गया है, तो देश सन्न रह गया. तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री अजीत पांजा के 15 मार्च, 2000 को संसद में दिये बयान के अनुसार, शाम 4.53 बजे विमान अपह्वत हुआ तथा तीन मिनट बाद दिल्ली एयर ट्रैफिक कंट्रोल को पहली सूचना मिली. विमान को लाहौर ले जाने की सूचना थी, किंतु शाम सात बजे विमान अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरा. पायलट ने बताया था कि ईंधन कम है. पायलट की बुद्धि काम नहीं आयी और अपहरणकर्ताओं ने इंजन बंद करने से मना कर दिया तथा 7.49 बजे बिना ईंधन भरे अमृतसर से उड़ान भरने के लिए मजबूर किया. सुरक्षा विशेषज्ञों ने माना था कि विमान को वहां किसी तरह घेरना चाहिए था. लाहौर में ईंधन भरने के बाद विमान को काबुल उतरना था, पर बिजली के अभाव में विमान रात में नहीं उतर सकता था. अंततः दुबई के वायुसेना अड्डे पर वह 25 दिसंबर, 1999 को रात 1.32 बजे उतरा. संयुक्त अरब अमीरात से भारत के अच्छे संबंध थे और उन्होंने बातचीत कर 27 महिलाओं और बच्चों को रिहा कराया. उनमें एक रुपिन कात्याल भी थे, जिनकी हत्या अपहरणकर्ताओं ने कर दी थी. सुबह विमान अफगानिस्तान के कंधार हवाई अड्डे पर उतरा. तब से एक सप्ताह तक देश की धड़कनें थमीं रहीं.

तालिबान से संपर्क करना था मुश्किल


तब तालिबानी शासन का पाकिस्तान और थोड़ा सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात आदि के अलावा किसी से संपर्क नहीं था. तालिबान से संपर्क करना ही एक समस्या थी क्योंकि पाकिस्तान के साथ करगिल युद्ध के बाद से तनाव था. अपहरणकर्ताओं ने पहले 10 भारतीय और पांच विदेशी यात्रियों को छोड़ने के बदले आतंकी मसूद अजहर की रिहाई मांगी. भारत ने सभी यात्रियों की रिहाई की मांग की. इसके बाद उन्होंने अपना पैकेज दिया, जिसमें 20 करोड़ डॉलर और तथा आतंकी सज्जाद अफगानी के शव और मसूद अजहर सहित 36 आतंकियों की रिहाई शामिल थी. अंततः भारत ने तीन आतंकियों को छोड़ने की शर्त मानकर यात्रियों की रिहाई सुनिश्चित की.

जसवंत सिंह आतंकियों को साथ लेकर गए थे

तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह अपने साथ मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर और उमर शेख को लेकर 31 दिसंबर, 1999 को कंधार पहुंचे थे. आज हम उस घटना की आलोचना कर सकते हैं और यह आतंकवाद से संघर्ष के इतिहास में एक ऐसा अध्याय है, जिसे कोई याद करना नहीं चाहेगा. सरकार आरंभ में न तालिबान से बातचीत करने को तैयार थी और न ही आतंकियों की शर्त मानने को. अपहृत लोगों के परिजनों ने दिल्ली में धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया था. प्रधानमंत्री वाजपेयी ने सभी विपक्षी दलों की बैठक बुलायी, जिसमें किसी ने भी नहीं कहा कि चाहे हमारे लोग मार दिये जाएं, आतंकियों की रिहाई नहीं होनी चाहिए.

अल-कायदा या तालिबान से ज्यादा परिचित नहीं था विश्व

वह समय ऐसा था, जब अल-कायदा या तालिबान, हरकतुल मुजाहिद्दीन आदि के बारे में भारत क्या, दुनिया को ज्यादा जानकारी नहीं थी. एक अमेरिकी युद्धपोत पर अल-कायदा ने 2000 में हमला किया तथा फिर अमेरिका में विश्व का सबसे भयानक आतंकवादी हमला 11 सितंबर, 2001 को हुआ. तब दुनिया का ध्यान आतंकवाद के खतरनाक तंत्र पर गया था. वैसे मसूद अजहर पर भी तब भारत में नकली पासपोर्ट और वीजा पर यात्रा करने का ही आरोप था. मसूद अजहर ने बाद में जैशे-मोहम्मद बनाया और 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हमला किया. उसके बाद 26 नवंबर, 2008 को भयानक मुंबई हमला, 2016 पठानकोट हमला एवं फरवरी 2019 के पुलवामा हमले सहित अनेक आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया. जरगर अनंतनाग व पुलवामा हमले का अभियुक्त है.

उमर शेख का नाम अमेरिका के आतंकी हमले में भी आया और उसी ने डेनियल पर्ल की 2000 में पाकिस्तान में हत्या की. तब देश को उनके छोड़ने की गंभीरता का अहसास नहीं था. हमने 190 लोगों की जान बचायी और उसके एवज में न जाने कितने सौ लोगों की जानें गवायीं. उस समय संजीव छिब्बर नाम का एक व्यक्ति नेता बनकर उभरा था. उसके बाद वह व्यक्ति कहां गायब हुआ, आज तक पता नहीं. कुछ लोग बताते हैं कि अनेक रहस्यों से परदा नहीं उठा है. कभी जसवंत सिंह के साथ गये काले बैग की चर्चा होती है, तो कभी विमान में पड़े लाल बैग की. सिंह ने अपनी पुस्तक में बताया है कि लाल बैग में विस्फोटक थे.


नेटफ्लिक्स सीरीज के विपरीत छह जनवरी, 2000 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी वक्तव्य में बताया गया था कि आइएसआइ के चार एजेंटों- मोहम्मद रेहान, मोहम्मद इकबाल, युसूफ नेपाली और अब्दुल लतीफ को गिरफ्तार किया गया था, जो आतंकियों के मददगार थे. इन्हीं आतंकियों ने अपहरणकर्ताओं- इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर सईद, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जरूर इब्राहिम और शाकिर के नाम बताते हुए जानकारी दी कि सभी पाकिस्तानी थे. आतंकवादी स्वयं को चीफ, डॉक्टर, बर्गर, भोला और शंकर नाम से पुकारते थे और सीरीज में यही नाम हैं, जिनसे गलतफहमी पैदा होती है. इसमें उनके असली नाम बताये जाने चाहिए थे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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