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Bihari Geeta In Folk Language : अंगिका में गीता रचकर बिहार-झारखंड में लाखोंं को बताया जीवन का राज, जानिए कौन सा काम छोड़ गए अधूरा 

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जटाधर दुबे के जाने के बाद लोकभाषा अंगिका क्या शास्त्रीय़ भाषा का स्वरूप ग्रहण कर पाएगी? कौन उठाएगा यह जिम्मेवारी ?

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Bihari Geeta In Folk Language

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आत्मा नै जनमै छै कहियो, मरै भी नै छै।

बढ़ै घटै के कोय विकार एकरा में नै छै।।  

जन्मरहित छै, सबदिन छेलै, सबदिन रहतै। 

देहो के मारी देलें भी है न मरै छै।।

-अंगिका गीता 

डाॅ० जटाधर दुबे

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।

अजो नित्यः शाश्वतोयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।

(श्री मद्भगवदगीता अध्याय-2, श्लोक-20)

ऊपर महान दर्शन ग्रंथ गीता का श्लोक है. इसमें आत्मा की महिमा बताई गई है. उससे भी ऊपर आत्मा से संबंधित इस गूढ़ ज्ञान को अंगिका में इस कदर बताया गया है कि यह लाखों अंगिका भाषियों की जुबान पर तैर रहा है.

 क्योंकि, गीता को बिहार की लोकभाषा में जन-जन तक पहुंचाने वाले महान अंगिका साहित्यकार जटाधर दुबे खुद ही जैविक स्वरूप को छोड़कर केवल आत्मा के रूप में सूक्ष्म जगत में विद्यमान हो गए हैं.

अंगिका गीता
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Bihari Geeta In Folk Language : अंगिका को दर्शन की भाषा की ऊंचाइयों पर ले गये

जटाधर दुबे की महत्ता इस बात को लेकर नहीं है कि उन्होंने अंगिका भाषा में विपुल साहित्य का सृजन किया, बल्कि उन्होंने अंगिका को बोली से लोकभाषा में विकसित होते स्वरूप का साक्षात्कार किया. फिर इस लोकभाषा को दर्शन की भाषा के रूप में विकसित करने में महती भूमिका निभायी. अंगिका भाषा में दो खंडों में दर्शन ग्रंथावली लिखी. उसके कई और खंड लिखे जाने थे. परंतु, उनके निधन से यह कार्य अधूरा रह गया. 

हरिया और अनुभूति जैसे संग्रहों के प्रकाशन के बाद जटाधर दुबे और भी कई साहित्यिक परियोजनाओं पर काम कर रहे थे. इसका मकसद झारखंड और बिहार में बोली जाने वाली लाखों लोगों की भाषा को समृद्ध करना था. ताकि लोग ज्ञान के बड़े संसार से सहज रूप में परिचित हो सकें. 

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Bihari Geeta In Folk Language : फिजिक्स के प्रोफेसर होते हुए भी माटी की भाषा से था लगाव

डॉ. जटाधर दुबे विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. परंतु उनका जन्म गोड्डा जिले के वंदनवार गांव में हुआ था. उनकी मातृभाषा अंगिका थी. अंगिका से लगाव ही उन्हें विज्ञान के खुरदुरी यथार्थ से साहित्य के सहज संसार की ओर खींच ले गई थी. फिजिक्स के विद्वान होते हुए भी अंगिका ही इनके सपनों का संसार थी. 

पुरातत्वविद और साहित्यकार पंडित अनूप कुमार बाजपेयी कहते हैं कि जटाधर दुबे का जाना अंगिका साहित्य जगत के लिये निःसंदेह एक बड़ी क्षति है. विशेषकर श्रीमद्भागवत गीता का अंगिका पद्यानुवाद के लिए वे हमेशा याद किये जायेंगे. उनकी अनेक रचनाएं अभी आनी थी. इससे अंगिका साहित्य और समृद्ध होता. 

Hariya
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