21.2 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 07:16 pm
21.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

Documentary Film Ranchi : अंडमान में बसे झारखंडियों की त्रासदी को बयां करती फिल्म टापू राजी

Advertisement

अंडमान में झारखंडियों की तीसरी-चौथी पीढ़ी निवास कर रही है. इन्हें अंडमान में 'रांची वाला' या 'रांचीयर' कहा जाता है. यह फिल्म इन्हीं की कहानी बयां करती है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

रांची (प्रवीण मुंडा). इतिहास में दर्ज है कि 1918 में पहली बार झारखंड के 400 गिरमिटिया मजदूरों का पहला जत्था अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भेजा गया था. इन परिश्रमी लोगों को वहां जंगलों को साफ करने और सड़क बनाने के काम के लिए ले जाया गया था. इन मजदूरों का छह महीने का एग्रीमेंट होता था. अवधि पूरी होने के बाद वापस भेज दिया जाता था. उनकी जगह लेने के लिए और दूसरे लोगों को भेजा जाता. कई लोग वापस नहीं लौटे और वहीं बस गये. आज अंडमान में झारखंडियों की तीसरी-चौथी पीढ़ी निवास कर रही है. वर्तमान में इनकी आबादी है लगभग एक लाख. इन्हें अंडमान में ”रांची वाला” या ”रांचीयर” कहा जाता है. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान की डॉक्यूमेंटरी ”टापू राजी” इन्हीं ”रांचीयर” की त्रासदी को बयां करती है. राजी टापू एक घंटे की फिल्म है, जिसके निर्देशक हैं बीजू टोप्पो. मार्गदर्शन मेघनाथ का है और एडीटिंग की है युवा फिल्मकार रूपेश साहू ने.

आज भी लड़ रहे हैं अपनी पहचान की लड़ाई

फिल्म दिखाती है कि कैसे 100 वर्ष से भी पहले कैसे झारखंड के लोगों का अंडमान में गिरमिटिया मजदूरों के रूप में जाना हुआ. झारखंड के मजदूरों ने अंडमान में जंगलों को साफ किया. आवागमन के लिए सड़कें बनीं और फिर इंसानी बस्तियां बसीं. भारत के अलग-अलग राज्यों, बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, झारखंड, पंजाब से लोग वहां जाकर बसे. पर आज सिर्फ झारखंडी ही हैं, जो वहां आज भी अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. इन्हें आदिवासी का दर्जा प्राप्त नहीं है. नौकरियों में आरक्षण नहीं है. पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है. इनके बच्चों को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य मयस्सर नहीं है. फिल्म यह भी दिखाती है कि कैसे एक लंबे अरसे से अंडमान के झारखंडी अपने हक-अधिकार के लिए आंदोलन कर रहे हैं. लेकिन इन आंदोलनों की आवाज अभी भी मुख्यभूमि तक नहीं पहुंची है. आंदोलनकारी आगापीती कुजूर के नेतृत्व में लगभग 40 वर्षों तक आंदोलन चला. अब आंदोलन की कमान सिलवेस्ट भेंगरा सहित कुछ अन्य लोगों ने संभाल ली है. यह फिल्म उन झारखंडियों के दर्द, आवाज और संघर्ष को संवेदनशीलता के साथ दिखाती है.

- Advertisement -

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें