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निष्काम भाव से भक्ति करने वाला सर्वश्रेष्ठ

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चातुर्मास व्रत कथा में जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा

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मेदिनीनगर. निगम क्षेत्र के सिंगरा चातुर्मास व्रत कथा में जीयर स्वामी जी ने कहा कि श्रीकृष्ण ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया है. आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी भक्त. इनमें से सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी है. उससे श्रेष्ठ आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु और जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी हैं. आर्त भक्त वह है, जो शारीरिक कष्ट आ जाने पर या धन-वैभव नष्ट होने पर अपना दुख दूर करने के लिए भगवान को पुकारता है. जिज्ञासु भक्त अपने शरीर के पोषण के लिए नहीं वरन संसार को अनित्य जानकर भगवान का तत्व जानने और उन्हें पाने के लिए भजन करता है. अर्थार्थी भक्त वह है, जो भोग, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त करने के लिए भगवान का भजन करता है. उसके लिए भोग पदार्थ व धन मुख्य होता है और भगवान का भजन गौण. ज्ञानी भक्त सदैव निष्काम होता है. वह भगवान को छोड़कर और कुछ नहीं चाहता है. इसलिए भगवान ने ज्ञानी को अपनी आत्मा कहा है. इनमें से जो भक्त परम ज्ञानी है और शुद्ध भाव से भक्ति में लगा रहता है, वह सर्वश्रेष्ठ भक्त है. भजन और कीर्तन में क्या अंतर है : कीर्तन में भगवान के मंत्र को बार-बार गायन करना और भजन में भगवान के नाम, गुण और लीला का गायन करना होता है. जो व्यक्ति भगवान के नामों का स्मरण, कीर्तन, उच्चारण नहीं करता है, वह इस संसार में जीते जी मुर्दा के समान है. अधूरी बात और अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है. किसी भी बात को पूरी सुननी चाहिए. आधा-अधूरा बात सुनकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए. बिना फल की इच्छा से किया गया कार्य एवं बिना फल की इच्छा से किया गया कर्म ही उत्तम है. यदि हमें परम शांति को प्राप्त करना है, तो हमें जो भी कर्म करना है वह सिर्फ भगवान को समर्पित करते जाना है. हमें यह नहीं सोचना है कि उसका फल क्या होगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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