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बारिश में त्रिपाल बना बिरहोर परिवारों का सहारा

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जंगल में रहने वाले बिरहोर जनजाति का अस्तित्व आज भी खतरे में है.

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20 साल पहले बने घर आज हो चुके हैं जर्जर, बारिश में माथे पर टपकता है पानी

कटकमसांडी.

आदिम काल से जंगल में रहने वाले बिरहोर जनजाति का अस्तित्व आज भी खतरे में है. सरकार की ओर से इस प्रजाति को बचाने के लिए तरह-तरह के दावे किये जाते हैं, लेकिन इनकी वास्तविक सच्चाई उसके बिल्कुल उलट है. इस जनजाति को बचाने के लिए कई तरह की महत्वाकांक्षी योजना सरकार की ओर से चलाई जा रही है, लेकिन धरातल पर इसकी वास्तविक स्थिति हकीकत से परे हैं. कटकमसांडी और कटकमदाग के चार विभिन्न जगहों पर करीब 100 से अधिक बिरहोर परिवार रहते हैं. पिछले 20 साल पूर्व बिरसा आवास कॉलोनी का निर्माण किया गया था. इसकी स्थिति आज काफी जर्जर हो चुकी है. बिरसा आवास कॉलोनी की छत पर लगी क्रिकेट सीट जगह-जगह जंग लगने के कारण टूट चुकी है. बारिश के दिनों में पानी की धार उनके घरों के अंदर प्रवेश करती है. प्लास्टिक के त्रिपाल आदि ढककर बिरहोर जनजाति के लोग किसी तरह अपना गुजर-बसर कर रहे हैं. उनके पास रहने को घर तो है लेकिन उस पर छत नहीं है. खाने को महीना में जन वितरण प्रणाली दुकान से अनाज दिया जाता है, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिलता. पीने के लिए थोड़ी बहुत पानी की व्यवस्था की गई है. लेकिन खेती के लिए उन्हें भूमि तक नहीं मिल पाया है. कई बिरहोर परिवारों ने कहा कि किसी की तबीयत बिगड़ जाती है तो सरकार के भरोसे पर रहना पड़ता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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