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आज तिरंगा बनाने की भी हैसियत नहीं

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सीवान खादी ग्रामोद्योग संघ अपने मातृ संस्था खादी ग्रामोद्योग संघ मुज्जफरपुर से 1973 में अलग हुआ, तब इसका व्यवसाय करोड़ों में था. आज स्थिति यह है कि सीवान खादी ग्रामोद्योग तिरंगा बनाने की भी स्थिति में नहीं है.

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अमरनाथ शर्मा, सीवान: सीवान खादी ग्रामोद्योग संघ अपने मातृ संस्था खादी ग्रामोद्योग संघ मुज्जफरपुर से 1973 में अलग हुआ, तब इसका व्यवसाय करोड़ों में था. आज स्थिति यह है कि सीवान खादी ग्रामोद्योग तिरंगा बनाने की भी स्थिति में नहीं है. गोरेयाकोठी प्रखंड के लद्दी में एक मात्र बचा करघा भी अब शांत पड़ गया है. पिछले साल तक यहां के बुनकरों द्वारा तैयार किए गए कपड़ों से तिरंगा बनाया जाता था. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के नाम पर स्थापित राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ के अधीन करीब 23 हजार से अधिक कतिन सुत कात कर अपना परिवार को चलाते थे. ग्रामोद्योग संघ द्वारा उत्पादन किए हुए सामान देश के अन्य भागों में बिक्री के लिए जाते थे. लेकिन आज स्थिति काफी दयनीय हो गई है. शहर श्री नगर स्थित खादी ग्रामोद्योग संघ के कर्मचारियों के अनुसार करीब 25 अत्याधुनिक चरखों से सुत कताई का काम होता था लेकिन कोरोना महामारी के दौरान सभी कामबंद हो गये. इसके अधीन काम करने वाले करीब सौ कतिनों के सामने भुखमरी की स्थिति हो गइ् है. 1925 में देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद चरखा संघ के अध्यक्ष हुए तब राज्य के अन्य खादी ग्रामोद्योगों के साथ सीवान खादी ग्रामोद्योग संघ का विकास हुआ. मातृ संस्था से अलग होने के बाद गलत प्रबंधन व कर्मचारियों में लूट खसोट की नीति ने राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ को दिवालिया बना दिया. उत्पादन बंद होने से बर्बाद हो गई लाखों की मशीन राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ में करीब दो दशकों से अधिक समय से सूती कपड़ों, बिस्कुट, सरसों तेल का उत्पादन सहित कई उत्पादन ठप हो गया है. उत्पादन बंद होने से उत्पादन के लिए लगी लाखों की मशीन भी बर्बाद हो गई. बुनकरों द्वारा जब चादर, लुंगी, धोती तथा गमछा बुनकर दिया जाता था तो यहां पर उसकी रंगाई और धुलाई का काम होता था. धुलाई व रंगाई का काम नहीं होने से इसमें लगे बॉयलर खराब हो गए हैं. धोबी घाट जहां हमेशा कपड़ों की धुलाई में मजदूर लगे रहते थे, आज सुनसान पड़ा हुआ है. एक समय था जब जिले में पांच दर्जन से अधिक खादी के कपड़े बुनने के करघे हुआ करते थे. कतिन द्वारा कपास से काते गए सूतों से बुनकर कपड़े बुनने का काम करते थे. जिले के गोरयाकोठी के लधी में एक मात्र करघा बचा था. लेकिन कतिनों को पुनि की आपूर्ति नहीं होने से न तो सुत बन रहा है और न कपड़ा बुना जा रहा है. प्रबंधन के लोग बता रहें है कि पूंजी के अभाव में खादी भंडार का व्यवसाय दिन प्रतिदिन चौपट होता गया. 56 विक्रय केंद्रों में मात्र एक विक्रय केंद्र है संघ के अधीन- अपने सुनहरे समय में जब गोपालगंज, सीवान जिले के राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ के अधीन था तब सूती कपड़े, बिस्कुट तथा सरसों तेल का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था. जिले में उस समय खादी ग्रामोद्योग संघ के करीब 56 विक्रय केंद्र थे. उसमें करीब 172 कर्मचारी काम करते थे. 1990 के आसपास गोपालगंज के सीवान से अलग होने के साथ ही सीवान खादी भंडार की हालत खस्ता हो गई. आज के समय में मात्र 13 विक्रय केंद्र है. जिसमें एक पर राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ का कब्जा है. करीब चार विक्रय केंद्रों में विवाद होने के कारण मुकदमा चल रहा है. इनका नियंत्रण राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ के पास नहीं है. विवादित दुकानों के कर्मचारी या तो डिसमिस हो चुके हैं या सेवानिवृत हो चुके हैं. विवादित दुकानों में करीब तीस लाख से अधिक का गोलमाल किए जाने का मुकदमा दर्ज है. वहीं राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ जो शहर के श्रीनगर मोहल्ले में है. वह करीब तीन एकड़ जमीन में है. लेकिन संघ के गलत प्रबंधन के कारण इसके आधे हिस्सों पर अनाधिकृत लोगों का कब्जा है. इन लोगों का कहना है कि हमारे परिवार के लोग कभी इसमें काम करते थे. उनका हजारों रुपये बकाया संघ के पास है. संघ जब तक पैसे नहीं देगा तब तक वे खाली नहीं करेंगे. फिलहाल करीब आधा दर्जन कर्मचारी बचे है जिनको वेतन मिलता है. इसमें रहने वालें लोग मुफ्त का बिजली व पानी का लाभ उठाते हैं. क्या कहते है जिम्मेदार आज के समय में सीवान खादी ग्रामोद्योग संघ में किसी प्रकार का उत्पादन नहीं हो रहा है. सरकार द्वारा खादी भंडार एवं इससे जुड़े बुनकरों को किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं दे रही है. खादी भंडार में एक मात्र मैं कर्मचारी बचा हूं. कुछ सेवानिवृत कर्मचारियों को रखा गया है. बिहारशरीफ से तिरंगा मंगा कर बिक्री के लिए रखा गया है. वैसे खादी के तिरंगे की मांग नहीं के बराबर है. नागेंद्र गिरी, सचिव, जिला खादी ग्रामोद्योग, सीवान

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