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बुद्धदेव भट्टाचार्य ने दो कमरे के ही घर में गुजार दी जिंदगी

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पूर्व मुख्यमंत्री और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के कद्दावर नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य को इतिहास में एक व्यावहारिक कम्युनिस्ट के रूप में याद किया जायेगा.

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संवाददाता, कोलकाता

पूर्व मुख्यमंत्री और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के कद्दावर नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य को इतिहास में एक व्यावहारिक कम्युनिस्ट के रूप में याद किया जायेगा. जीवन के आखिरी सांस तक दो कमरे के एक घर में रहने वाले भट्टाचार्य राज्य में औद्योगीकरण के लिए पूंजीवादियों को लुभाने के वास्ते अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता तक की परवाह नहीं की थी. भट्टाचार्य ने एक ऐसे युग का अंत देखा, जिसमें उन्होंने सबसे लंबे समय तक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गयी कम्युनिस्ट सरकार का नेतृत्व किया, लेकिन राजनीतिक रूप से अत्यधिक ध्रुवीकृत राज्य में वाममोर्चा को लगातार आठवीं बार जीत दिलाने में असफल रहे. भट्टाचार्य ने पार्टी की उद्योग विरोधी छवि को बदलने व बंगाल की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के उद्देश्य से जी-तोड़ मेहनत की थी. वह युवाओं के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने के मुख्य लक्ष्य के साथ राज्य में कल-कारखाने स्थापित करने के लिए निवेशकों और बड़े पूंजीवादियों को लुभाने में सक्रिय रूप से लगे रहे.

बंद और हड़ताल पर अपनाया था सख्त रुख

माकपा के शक्तिशाली पोलित ब्यूरो का सदस्य होने के बावजूद उन्होंने निडरता से ‘बंद’ (हड़ताल) की राजनीति का विरोध किया. तब, जबकि वामपंथी दल विभिन्न मुद्दों पर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए बात-बात में बंद का इस्तेमाल करते थे. बंद पर नया रुख अपनाने के चलते पार्टी के अंदर और बाहर भट्टाचार्य की घोर आलोचना और प्रशंसा, दोनों हुई. हालांकि, तेजी से औद्योगीकरण की महत्वाकांक्षा उनके और माकपा, दोनों के लिए नासूर बन गयी. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने कारखानों के लिए भूमि अधिग्रहण विरोधी प्रदर्शनों का चतुराई से फायदा उठाया. इन विरोध प्रदर्शनों ने माकपा सरकार की ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया. तृणमूल कांग्रेस ने 2011 में वाम दलों की 34 वर्ष पुरानी गठबंधन सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंका. राज्य की राजनीति में कम्युनिस्टों को हाशिये पर धकेल दिया.

जीवन परिचय

बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म एक मार्च 1944 को हुआ था. उत्तर कोलकाता में एक विद्वान पृष्ठभूमि वाले परिवार में. उनके पितामह कृष्ण चंद्र स्मृति तीर्थ संस्कृत के विद्वान थे.

बुद्धदेव ने पुरोहितों व पुजारियों के लिए कर्मकांड आधारित एक पुस्तक भी लिखी थी.

भट्टाचार्य प्रसिद्ध बंगाली कवि सुकांत भट्टाचार्य के रिश्तेदार थे. बांग्ला में प्रेसिडेंसी कॉलेज से स्नातक करने के बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पूरी तरह से राजनीति में आने से पहले एक शिक्षक के रूप में काम किया और 1960 के दशक के मध्य में माकपा में शामिल हो गये थे.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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