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Prabhat Khabar 40 Years : आदिवासियों के लिए क्या है प्रभात खबर के मायने, बुद्धिजीवियों ने साझा की यादें

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प्रभात खबर के साथ झारखंड के आदिवासी समुदाय के साहित्यकार, लेखक, बुद्धिजीवी, आंदोलनकारियों के साथ कैसा संबंध रहा है, इस पर उन्होंने अपने विचार प्रकट किये हैं. इस समुदाय का मानना है कि प्रभात खबर उनके लिए वॉइस ऑफ द वॉइसलेस बना है.

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रांची : सफर में प्रभात खबर हाशिए पर पड़े उन लोगों की भी आवाज बना, जिनकी आवाज दबा दी जाती थी. झारखंड के जनजातीय समुदाय के मुद्दे, उनकी कला, संस्कृति, पर्व त्योहार, उनके संघर्ष और आंदोलनों में प्रभात खबर ने सहभागी की भूमिका निभायी है. आज आदिवासी समुदाय के साहित्यकार, लेखक, बुद्धिजीवी, आंदोलनकारी और युवाओं के विचार प्रकाशित किये जा रहे हैं. इस समुदाय का मानना है कि प्रभात खबर उनके लिए वॉइस ऑफ द वॉइसलेस बना है.

झारखंड के मुद्दों को लेकर एक लकीर खींची है : पुष्पा टेटे

झारखंड एक्सप्रेस की कार्यकारी संपादक पुष्पा टेटे ने कहा कि प्रभात खबर ने झारखंड के मुद्दों पर एक लकीर खींची है. विस्थापन का मुद्दा ही लें, तो इस पर काफी विस्तार से आंकड़ों के साथ रिपोर्ट आयी हैं. एक रिपोर्ट जिसमें बोकारो, धनबाद, रांची में कितने लोग किन परियोजनाओं से विस्थापित हुए वह छपी थी. यह सभी ज्ञानवर्धक सामग्री थी. इस तरह की कई रिपोर्ट आयी, जो शोधकर्ताओं, परीक्षार्थियों के लिए उपयोगी है. साथ ही आदिवासी मूलवासी मुद्दों को लेकर अखबार अच्छा काम कर रहा है.

झारखंडी मुद्दों को लेकर काफी मुखर है प्रभात खबर : हलधर

पाहन महासंघ के महासचिव हलधर चंदन पालन ने कहा कि प्रभात खबर से खास लगाव है. यह जल, जंगल, जमीन सहित झारखंड के अन्य मुद्दों को मुखरता से उठाता रहा है. इन सबसे जुड़ी खबरों को सबसे पहले प्रभात खबर में ही देखने का मिलता है. साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार जैसी खबरों को भी प्रमुखता से प्रकाशित की जाती है. प्रभात खबर की एक और खासियत है कि यह नये लेखकों को बढ़ावा देता है. उन्हें भी लिखने, जानने और समझने का मौका मिलता है.

झारखंड की क्षेत्रीय छवि बनाने में भूमिका निभायें : महादेव टोप्पो

साहित्यकार महादेव टोप्पो कहते हैं कि अपने शुरुआती समय से ही अखबार ने एक अच्छी भूमिका निभायी है. अभी भी माय माटी जैसा एक पूरा पेज है, जो झारखंडी मुद्दों पर केंद्रित है. इसमें झारखंड के कई लेखकों और कवियों को मौका मिलता है. किसी राज्य को बनाने में क्षेत्रीय अखबारों को बड़ा योगदान रहा है. बंगाल की छवि बनाने में बांग्ला अखबारों का, ओडिशा की छवि बनाने में ओडिया अखबारों का बड़ा योगदान है. उम्मीद करता हूं कि झारखंड की क्षेत्रीय छवि बनाने में प्रभात खबर का वैसा ही योगदान रहेगा.

आदिवासी समाज की खबरें प्रमुखता से छपती हैं : सोमा उरांव

जनजाति सुरक्षा मंच के सोमा उरांव ने कहा कि आदिवासी समाज की रीति-रिवाज और परंपरा पर अच्छी खबरें आती हैं : जनजातियों की रीति रिवाज और प्रथा आदि से जुड़ी खबरों को भी प्रभात खबर प्रमुखता से छापता है. इसके अलावा अखबार में आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक और विकास से संबंधित खबरें भी देखने को मिलती हैं. आदिवासी समाज का प्रभात खबर से लगाव काफी गहरा है. क्योंकि यह उनको अपना अखबार लगता है. जनजाति समाज की समस्याओं पर भी विस्तार से खबरें रहती हैं.

प्रभात अखबार अपना धर्म निभा रहा है : जगलाल

हातमा के जगलाल पाहन ने कहा कि प्रभात खबर ऐसा अखबार है जो अपना धर्म निभा रहा है. आदिवासी समुदाय से जुड़े मुद्दे अखबार में प्रमुखता के साथ प्रकाशित होते हैं. यह अच्छी बात है. झारखंडी मुद्दों को लेकर अखबार हमेशा सजग रहा है. झारखंड में लोग इसे पसंद करते हैं और इस अखबार ने अपना एक स्थान बनाया है. सरहुल, करमा जैसे पर्व त्योहारों पर काफी अच्छा कवरेज रहता है. अखबार अपनी इन विशेषताओं को हमेशा कायम रखे, यही कामना है.

आदिवासी मूलवासियों का हितैषी है अखबार : शिवा

केंद्रीय सरना संघर्ष समिति के अध्यक्ष शिवा कच्छप कहते हैं : प्रभात खबर आदिवासी मूलवासी समुदाय के बीच सबसे लोकप्रिय है. इसका एक कारण यह है कि इन समुदायों के हित में, आदिवासी समुदाय से जुड़े मामलों में अखबार ने सकारात्मक पहल की है. मैं प्रभात खबर 20-25 वर्षों से पढ़ रहा हूं. हमलोग भी समाज के लिए काम करते हैं और हमलोगों की छोटी से छोटी खबरें भी छपती हैं, इससे समाज हित में काम करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है. अखबार भविष्य में भी अपनी इस भूमिका को बरकरार रखे.

तीन पीढ़ियों के लोग प्रभात खबर पढ़ते हैं : अभय

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक अभय सागर मिंज ने कहा कि आज हमारी तीन पीढ़ियों के सदस्य हर सुबह प्रभात खबर पढ़ते हैं. झारखंड के आदिवासी मूलवासियों के लिए समर्पित माय माटी जैसा विशेष संपादकीय अंक प्रभात खबर के मिट्टी से जुड़ाव का बेहतरीन प्रमाण है. यह एक अभूतपूर्व विजन और दृष्टिकोण है, जो शायद झारखंड के अन्य अखबारों में नहीं है. झारखंड के इस अखबार ने सही मायने में मिट्टी का फर्ज अदा किया है.

20 वर्षों से प्रभात खबर का नियमित पाठक हूं : डॉ हरि उरांव

जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के सेवानिवृत विभागाध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा कि पिछले 20 वर्षों से हर रोज इस अखबार को पढ़ रहा हूं. मेरी और मेरे परिवार की सुबह की शुरुआत प्रभात खबर के साथ होती है. झारखंड की कला संस्कृति, भाषा और झारखंड के मुद्दों को जिस तरह से प्रभात खबर ने स्थान दिया है, वह किसी और ने नहीं दिया. प्रभात खबर को अपनी इस पहचान को बरकरार रखना होगा. माय माटी जैसा पेज किसी भी दूसरे अखबार में नहीं है. झारखंड के मुद्दे पर आगे भी इस अखबार को काम करते रहना चाहिए.

मेरी खींची तस्वीरों को भी अखबार में स्थान मिला : बीजू टोप्पो

डॉक्यूमेंटरी निर्माता बीजू टोप्पो ने कहा कि प्रभात खबर में कई सकारात्मक चीजें हैं. झारखंड बनने के बाद कई मोटे-मोटे सप्लीमेंट निकाले गये थे, जिसे कई लोगों ने आज भी सहेजकर रखा है. झारखंड आंदोलन, नेतरहाट आंदोलन पर भी प्रभात अखबार ने काफी अच्छा कवरेज दिया था. उस समय मेरे भी कई फोटोग्राफ का प्रभात खबर ने इस्तेमाल किया था. वर्तमान में भी अखबार अपनी उस परंपरा में आगे बढ़ रहा है. माय माटी जैसा पेज काफी अच्छा है. इसमें झारखंड से जुड़ी सामग्रियां रहती हैं. आज भी समाज के ज्वलंत मुद्दों को अच्छी जगह दी जाती है.

भाषा को लेकर विशेष अंक निकाले : वंदना टेटे

भाषा साहित्य पर काम करनेवाली अखड़ा की वंदना टेटे ने कहा कि प्रभात खबर ने 40 वर्षों से झारखंड के मुद्दों को लेकर महत्वपूर्ण काम किया है. कई जन आंदोलनों को इस अखबार ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है. हूल दिवस जैसे झारखंड के महत्वपूर्ण सवालों को उठाया है. पर अब मुझे लगता है कि आज की बदलती परिस्थिति में अखबार में कुछ बदलाव हुए हैं. मेरा सुझाव होगा कि 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस होता है ,उस पर अखबार को विशेष अंक निकालना चाहिए.

लगाव प्रभात खबर के साथ ही रहा : सुशील उरांव

आदिवासी छात्र संघ के अध्यक्ष सुशील उरांव ने कहा कि 20 वर्षों से भी ज्यादा समय से प्रभात खबर सुबह का साथी रहा है. इस अखबार ने जो स्थान बनाया है वह काफी सराहनीय है. राज्य बनने के बाद कई अखबार आये. तरह-तरह की स्कीम का लालच दिया, लेकिन प्रभात खबर का स्थान नहीं ले सके. हमारे आंदोलनों की खबरों को भी बराबर स्थान मिलता रहा है. झारखंड से जुड़े आंदोलन, जन मुद्दों को अखबार बराबर स्थान देता है. आगे भी इसी विश्वास पर खरा उतरे, हमलोग यहीं चाहते हैं.

हाशिए पर पड़े मुद्दों को केंद्र में लाया : लक्ष्मीनारायण

आदिवासी समन्वय समिति के संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहा कि समाज के मुद्दे जो हाशिए पर थे, उसे प्रभात खबर ने केंद्र में लाया. दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि प्रभात खबर ने यह पहल की कि आदिवासी समाज और झारखंड के मुद्दों को प्रमुखता से छापे. इसका काफी अच्छा प्रभाव भी पड़ा है. प्रभात खबर ने आदिवासियों से जुड़े मुद्दों को जनांदोलनों में तब्दील करने का काम किया है. यहीं उम्मीद करते हैं कि प्रभात खबर अपनी यह भूमिका को हमेशा समझे और आगे भी निभाये.

अखबार ने जनपक्षीय छवि बनायी है : जेम्स

लातेहार पलामू क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज कहते हैं : प्रभात खबर का टैगलाइन है अखबार नहीं आंदोलन. इस टैगलाइन को अखबार ने चरितार्थ किया है. झारखंड में कई जनआंदोलन चले, उन सभी में अखबार ने सकारात्मक भूमिका निभायी है. अखबार आदिवासियों से जुड़े मुद्दों को लेकर लगातार मुखर रहा है. आंदोलनों की जमीनी स्तर पर रिपोर्टिंग हुई है. प्रभात खबर ने अपनी जनपक्षीय छवि बनायी है. हमलोगों के भी कार्यों को अखबार में जगह मिलती रही है.

जन आंदोलनों की आवाज बना : पिंकी खोया

जनजाति सुरक्षा मंच की सदस्य पिंकी खोया ने कहा कि प्रभात खबर ने शुरू से ही झारखंड के मुद्दों पर जिस तरह से काम किया है वह सराहनीय है. राज्य बनने से पहले भी और राज्य बनने के बाद भी कई जनांदोलनों को जिस तरह से इस अखबार में स्थान मिला है वह अहम है. अव भी आदिवासी समाज से जुड़े कई नवीन मुद्दे जैसे ट्राइबल एंटरप्रेन्योर जैसे कॉलम हैं, जिससे आदिवासी समाज की एक सकारात्मक छवि उभरती है. अखबार इस तरह अपनी जिम्मेदारियों को आगे भी निभाये.

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