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संक्रमित बीमारियों को लेकर लापरवाह स्वास्थ्य विभाग, भगवान भरोसे मरीज

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जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में न तो टीबी जैसे संक्रमित बीमारियों के मरीजों को भर्ती करने के लिये अलग से कोई विशेष वार्ड की व्यवस्था है और नहीं टीबी तथा एचआईवी जैसे मरीजों के मामले सामने आने के बाद विभाग को इसकी जानकारी चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा दी जाती है.

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मुंगेर. सरकार एक ओर जहां साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने को लेकर लगातार करोड़ों रूपये स्वास्थ्य योजनाओं पर खर्च कर रही है. वहीं एचआईवी जैसे संक्रमित बीमारियों के मरीजों के लिये बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के लिये कई स्वास्थ्य योजनायें चला रही है. लेकिन जिले में संक्रमित बीमारियों को लेकर जिला स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह लापरवाह है. हाल यह है कि जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में न तो टीबी जैसे संक्रमित बीमारियों के मरीजों को भर्ती करने के लिये अलग से कोई विशेष वार्ड की व्यवस्था है और नहीं टीबी तथा एचआईवी जैसे मरीजों के मामले सामने आने के बाद विभाग को इसकी जानकारी चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा दी जाती है. जिसके कारण कई बार इन संक्रमित बीमारियों के मरीजों को सामान्य वार्ड में भर्ती करने से न केवल अन्य मरीजों के संक्रमित होने का खतरा बना रहता है, बल्कि कई बार इन बीमारियों के मरीज इलाज के अभाव में ही दम तोड़ देते हैं.

टीबी मरीजों के लिए अलग से नहीं है वार्ड की व्यवस्था

लगभग 16 लाख जनसंख्या वाले मुंगेर सदर अस्पताल में टीबी मरीजों के लिए अलग से वार्ड तक उपलब्ध नहीं है. इसके कारण सालों से सामान्य वार्डों में ही टीबी के मरीजों को भर्ती किया जा रहा है. यहां उनका इलाज भी सामान्य चिकित्सकों के भरोसे ही होता है. यक्ष्मा विभाग से अधिकारी या कर्मी वार्डों में भर्ती टीबी के मरीजों को देखने तक नहीं आते हैं. हद तो यह है कि यदि किसी टीबी के मरीज के साथ उसके परिजन न हों तो उसके लिये यक्ष्मा विभाग से दवा लाना भी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जिले में टीबी के मरीजों को मिल रही स्वास्थ्य सुविधाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है. सोमवार 29 जुलाई को ही सदर अस्पताल के महिला वार्ड में एमटीडी (मल्टीपल ड्रग ट्यूबोक्लॉसिस) टीबी की एक वृद्धा की मौत इलाज के दौरान हो गयी थी. जबकि वर्तमान में भी सदर अस्पताल के महिला व पुरूष वार्ड में दो-दो टीबी के मरीज भर्ती हैं. इसमें एक मरीज मस्तिष्क के टीबी से पीड़ित है. अब टीबी जैसे संक्रमित मरीजों का सामान्य वार्ड में भर्ती होने से अन्य मरीजों में भी संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है.

प्रसव बाद भी प्रसूता के एचआइवी पॉजिटिव होने जानकारी विभाग को नहीं थी

सदर अस्पताल के प्रसव केंद्र में 27 जुलाई को एक प्रसूता द्वारा बच्चे को जन्म दिया गया था. जिसका नौ माह के गर्भ के दौरान एक बार भी एएनसी जांच नहीं करायी गयी था. जबकि 26 जुलाई को संग्रामपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जांच के दौरान प्रसूता के एचआईवी पाये जाने और उसे सदर अस्पताल रेफर किये जाने के बाद भी स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा इसकी सूचना जिला मुख्यालय को नहीं दी गयी. हद तो यह रही कि प्रसव के बाद बच्चे के एचआईवी होने की आंशका पर परिजन मात्र एक दिन के बच्चे को लेकर अस्पताल के वार्डों का चक्कर लगाते रहे. लेकिन बच्चे के परिजनों को प्रसव केंद्र या अन्य वार्डों के स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा भी एचआईवी विभाग नहीं भेजा गया, हलांकि बाद में यक्ष्मा विभाग के कर्मियों द्वारा प्रसूता, बच्चे और उसके पिता का काउंसलिंग किया गया. जिसमें बच्चे की मां के साथ बच्चे का पिता भी एचआईवी पीड़ित पाया गया.

डेंगू वार्ड में भी भर्ती किये जा रहे अन्य मरीज

डेंगू संक्रमण किस कदर मुंगेर को परेशानी में डाल सकता है. इसका अंदाजा मुंगेर के लोगों को साल 2019 तथा साल 2022 के दौरान जिले में डेंगू संक्रमण के कहर से ही समझ आ गया है. लेकिन इसके बावजूद सदर अस्पताल में डेंगू मरीजों के लिये बनाये गये 6 बेड के स्पेशल वार्ड में डेंगू मरीज के साथ अन्य बीमारियों के मरीजों को भी भर्ती कर दिया जा रहा है. वर्तमान में महिला वार्ड के सामने बने डेंगू वार्ड में खगड़िया जिले के सोनडीहा महद्दीपुर निवासी एक 18 वर्षीय एलाइजा पॉजिटिव डेंगू मरीज भर्ती है. जहां उसके साथ अन्य बीमारियों के भी कई मरीजों को भर्ती कर दिया गया है. अब ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा भी बन गया है.

कहते हैं सिविल सर्जन

सिविल सर्जन डॉ विनोद कुमार सिन्हा ने बताया कि एचआईवी पीड़ित प्रसूता मामले में संग्रामपुर के चिकित्सा पदाधिकारी को पत्र भेजा गया है. जिसमें प्रसूता के संबंध में जानकारी मांगी गयी है. जबकि सदर अस्पताल में भवनों की कमी के कारण टीबी मरीजों के लिये अलग से वार्ड नहीं है. मॉडल अस्पताल बन जाने के बाद वहां टीबी मरीजों के लिये अलग से वार्ड की व्यवस्था की जायेगी.

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