New Orleans massacre: 30 जुलाई का दिन अमेरिका के इतिहास में एक ऐसा दिन है जिसे शायद ही भुलाया जा सके. यह दिन उन भयावय दिनों में से एक है, जो अमेरिका में नस्लीय भेदभाव और अत्याचार की कहानी को पुनः जीवंत करता है. साल था 1866, और मंच था न्यू ऑरलियन्स.अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय के लोग अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन अचानक यह प्रदर्शन एक भयानक मोड़ लेता है.
30 जुलाई 1866 का यह काला दिन आज भी हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता और समानता की लड़ाई लड़नी पड़ती है न कि खैरात में मिलती है.यह दिन उन अनगिनत लोगों की कुर्बानी की गवाही देता है, जिन्होंने एक बेहतर और समान समाज की उम्मीद में अपने प्राणों की आहुति दी.
1864 लुइसियाना संवैधानिक सम्मेलन
1864 में, लुइसियाना के संवैधानिक सम्मेलन में 25 राज्य प्रतिनिधि पुनः एकत्र हुए. राज्य का नया संविधान पहले ही दासप्रथा को समाप्त कर चुका था, लेकिन राज्य विधानमंडल ने दासता से मुक्त हुए लोगों के अधिकारों को सीमित करने वाले कानून पारित कर दिए. रेडिकल रिपब्लिकन संविधान में सुधार करना चाहते थे ताकि स्वतंत्र नागरिकों को मतदान का अधिकार मिल सके. साथ ही, उनका उद्देश्य ब्लैक कोड्स को समाप्त करना था.
नेताओं की साजिश
न्यु ऑरलियंस के मुख्यत दो नेता थे – मेयर जॉन. टी. मोनरो , एक संघि समर्थक और शेरिफ हैरी टी. हेज, पूर्व संघि जनरल. दोनों ही नए संवैधानिक कानून का कड़ा विरोध करते थे. 27 जुलाई की एक राजनैतिक रैली के बाद , हेज ने कुछ श्वेत अफसरों को एकत्रित किया ताकि वे सब मिलकर सम्मेलन का बर्बाद कर सके.
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न्यु ऑरलियंस में हुए जनसंहार को न्यू ऑरलियंस दंगों के रूप में भी जाना जाता है, 30 जुलाई 1866 को मैकेनिक्स इंस्टीट्यूट के बाहर प्रदर्शनकारियों की भीड़ जमा होना शुरू हो गई. जिसमें लगभग 200 निहत्थे अशेवत प्रदर्शनकारी शामिल थे, जो शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए थे इनमें ज्यादातर संघ के दिग्गज लोग थे. जैसे ही उन्होंने बिल्डिंग के पास जाना शुरू किया वैसे ही वहां पर खड़े लोगों ने उनसे बदतमीजी करनी शुरू कर दी और बाद में हातापाई में उतर गए.
मैकेनिक्स इंस्टीट्यूट बना मौत का घर
![New Orleans Massacre: 1866 का वो भयावय हत्याकांड जिसने लगाया अमेरिका के इतिहास में दाग 1 New Orleans Massacre](https://www.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/2024/07/Untitled-design-137-1024x1024.png)
हेज और उसके साथियों ने मैकेनिक्स इंस्टीट्यूट को मौत का घर बना दिया. अधिकारियों ने बेकसूर लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दिया, कुछ लोगों ने वही पे अपना दम तोड़ दिया जबकि कुछ बिल्डिंग के अंदर अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसान मरने वाले अफ़्रीकन अमेरिकन की संख्या तकरीबन 35 थी जबकि 119 से अधिक लोग घायल हो गए. जबकि 3 अमेरिकी अधिकारियों की मौत हुई और 17 घायल हुए.
विचार कीजिए
क्या अमेरिका में अब भी रंगभेद का जहर घुला हुआ है? क्या दुनिया को ज्ञान देने वाला अमेरिका कभी अपने गिरेबान में झांक कर सच्चाई देखता है?