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मिशन के क्रम में देर रात में मुश्किल से मिलता था डेढ़ से दो लीटर पानी

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पूरे हर्षोउल्लास के साथ कारगिल विजय मनाया जा रहा है. लेकिन देश की सरहदों पर तैनात मिलिट्री के फौज को वर्ष 1999 में कारगिल विजय प्राप्त करने में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और देश को क्या-क्या कुर्बानियां देनी पड़ी, यह कारगिल मिशन में शामिल कोई फौजी ही समझ सकता है

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बेनीपट्टी. पूरे हर्षोउल्लास के साथ कारगिल विजय मनाया जा रहा है. लेकिन देश की सरहदों पर तैनात मिलिट्री के फौज को वर्ष 1999 में कारगिल विजय प्राप्त करने में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और देश को क्या-क्या कुर्बानियां देनी पड़ी, यह कारगिल मिशन में शामिल कोई फौजी ही समझ सकता है. ये बातें बेनीपट्टी प्रखंड के नागदह गांव निवासी और कारगिल युद्ध में भाग लिये उस समय शिवाजी के 12 वां रेजिमेंट के सूबेदार मेजर कृष्ण कुमार झा ने कही. उन्होंने कारगिल युद्ध की आपबीती सुनाते हुए बताया कि कारगिल युद्ध की सफलता की कहानी सुनने में बहुत ही आनंद आता है. लेकिन मोर्चे पर डटे फौजियों को जो भुगतना पड़ रहा था, वह मिशन में शामिल कोई फौजी ही समझ सकता है. बहुत ही मुश्किल से देर रात में डेढ़ से दो लीटर पानी और दाल भरी 8 पूरियां खाने को मिलती थी. जवानों को स्नान किये कई दिन बीत चुके थे. कपड़ों से दुर्गंध आने लगी थी. बताया कि श्रीनगर से लेह लद्दाख तक जाने वाली लाइफ लाइन हाइवे जाती है. जहां सोनामार्ग, द्रास, पुतखरगु व कारगिल की पहाड़ियां है. ये सभी काफी ऊंचाई वाली पहाड़िया है. कारगिल और द्रास के बीच वाले लेह लद्दाख में उस समय अधिक बर्फ गिरता था. पाक और भारतीय दोनों फौजों में समझौता था कि जब वर्फ़ अधिक गिरता था तो फोर्स पीछे हट जाया करती थी. फिर बर्फ के पिघल जाने के बाद दोनों देश की फौज युद्ध करने लगती थी. इसी क्रम में जब बर्फ पिघलने के वजह से भारतीय फौज पीछे हट गई तो पाकिस्तानी घुसपैठिये और पाकिस्तानी फौज पाकिस्तान के जनरल परवेज मुशर्रफ के कहने पर बंकर पर कब्जा कर लिया. बताया कि इस लाइफलाइन हाइवे में श्रीनगर के बाद सोनामार्ग, उसके बाद द्रास फिर पुतखरगु और पुतखरगु के बाद कारगिल की पहाड़ी है. इसी क्रम में कारगिल में भेड़ बकरी चरा रहे कुछ गड़ेरिया आया और कारगिल के कमांडर को सूचना दिया कि पहाड़ पर कुछ पाकिस्तानी फौज दिखाई दिया है. तब बर्फ हल्का-हल्का पिघलने लगा था. इसके बाद सबसे पहले कैप्टन कालिया का एक ट्रूप्स पेट्रोलिंग के लिये पहाड़ पर गया. जहां कैप्टन कालिया सहित पूरे ट्रूप्स को घुसपैठिए और पाक फौज ने विभत्स रूप से हत्या कर दी. सभी शहीद जवानों का शव अमृतसर के बासा सीमा से प्राप्त किया गया. इसके बाद आर्मी द्वारा सरकार को सूचना दी गई कि अपनी ही जमीन पर लिमिटेड लड़ाई चल रही है. इसके बाद पूरा मामला स्पष्ट हो गया और लड़ाई डिक्लियर हो गया. उस समय श्री झा शिवाजी रेजिमेंट के 12 वीं बटालियन के सूबेदार थे और सागर स्थित सेंटर में ड्यूटी पर तैनात थे. पाक आक्रमणकारियों के पहाड़ की ऊंचाई पर होने और भारतीय फौज को नीचले भाग में होने के कारण लड़ाई की शुरुआत में पहले हमले के दौरान भारतीय फौज के एक कंपनी के 10 जवान शहीद हो गये. करीब 35 से 40 की संख्या में जवान घायल भी हो गये. कुल मिलाकर आधी कंपनी खाली हो गई. जिसके बाद तुरंत रिफिल के लिये लेफ्टिनेंट जनरल भास्कर के साथ 72 जवानों को द्रास में शपथ दिलाकर शहीद व घायल जवानों के स्थान पर क्षतिपूर्ति के लिये भेजा गया. जिसमें श्री झा भी शामिल थे. इसके बाद द्रोरोलीन, टाइगर हिल और मास्को घाटी इन तीनों मोर्चे पर एक साथ लड़ाई शुरू हो गई. उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध में शहीद हुए परमवीर चक्र से सम्मानित विक्रम बत्रा द्रास सेक्टर से डेढ़ से 2 किलोमीटर की दूरी पर सामने वाला द्रोरोलीन पहाड़ी पर लोहा लेने के दौरान शहीद हो गये. द्रोरोलीन व टाइगर हिल को सागर से सीधे देखा जा सकता और युद्ध के दौरान तमाम मीडिया कवरेज भी इसी जगह से हुआ था. मास्को घाटी व टाइगर हिल के बांये भाग में डेढ़ से दो किलोमीटर पीछे-पीछे दो नागा रेजिमेंट, 12 शिवाजी रेजिमेंट और 17 जाट रेजिमेंट के जवान उस इलाके में जा घुसे और स्टेप बाई स्टेप 200 से 40 मीटर तक के भाग को क्लियर कराते-कराते टाइगर हिल को घेर लिया और पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के लिये राशन आने वाले रास्ते को रोक लिया. इसी क्रम में पहले से भंडारण किये राशन को बीएसएफ के जवान वायुयान से नष्ट कर दिया. जिसके बाद रास्ता कट अप हो गया और भारतीय बंकर पर पुनः भारत का कब्जा हो सका. बताया कि इस मिशन के दौरान भारतीय फौज पाकिस्तान की सीमा के भीतर तक प्रवेश कर चुकी थी लेकिन सरकार द्वारा लाइन ऑफ कंट्रोल पर आने को कहा गया तो वापस आ गये.

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