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झारखंड की तीन आदिवासी महिलाओं पर आधारित है ‘लड़ाई छोड़ब नाही’ की कहानी, दो चर्चित फिल्म फेस्टिवल के लिए हुआ है चयन

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फिल्म ‘लड़ाई छोड़ब नाही’ की कहानी तीन आदिवासी महिलाओं पर आधारित है जो अपने समुदायों पर खनन गतिविधियों के गहरे प्रभावों का सामना करती है.

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रांची : फिल्म ‘लड़ाई छोड़ब नाही’ का चयन दो चर्चित फिल्म फेस्टिवल में हुआ है. इंडियन शॉर्ट एंड डॉक्यूमेंट्री ​फिल्म फेस्टिवल व साइन फिल्म फेस्टिवल में फिल्म प्रदर्शित होगी. ये फिल्म केरल में आयोजित होंगी. ऐसे में लोगों की इस बात में दिलचस्पी है कि इस फिल्म की कहानी क्या है. यह फिल्म किस पर आधारित है. तो आज आपको इस फिल्म के बारे में बताने जा रहे हैं.

तीन आदिवासी महिलाओं पर आधारित है फिल्म

दरअसल यह फिल्म झारखंड की तीन आदिवासी महिलाओं पर आधारित है जो अपने समुदायों पर खनन गतिविधियों के गहरे प्रभावों का सामना करती है. इसमें पहली महिला किरदार सितमनी देवी है जो उरीमारी पंचायत की जल सहायिका और आशा कार्यकर्ता है. वह कोयले पर निर्भरता और भूमि क्षरण के बीच अपने क्षेत्र में जल संकट की गंभीरता पर प्रकाश डालती है. उनका काम जल की शुद्धता की जांच करना है, जो क्षेत्र के पर्यावरणीय पतन के कारण कठिन होता जा रहा है. वहीं, इस फिल्म की दूसरी किरदार बिगन कुजूर है. वह एक उद्यमी हैं. जो कि पौष्टिक चावल की बियर ‘हांडिया’ के उत्पादन और बिक्री करती है. यह आदिवासी संस्कृति का अभिन्न अंग है. उनकी कहानी जीविका और संघर्ष की है, जहां वे अपने परिवार की देखभाल करती हैं.

बसंती सरदार है फिल्म की तिसरी किरदार

वहीं तीसरी किरदार बसंती सरदार, अपने 30 के दशक में एक सक्रिय कार्यकर्ता, भुमिज समुदाय के जल, जंगल और जमीन (जल, जंगल, जमीन) के अधिकारों के लिए लड़ती हैं. वह मानती हैं कि अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी आदिवासी लोगों के लिए एक बड़ी बाधा है. बसंती रील बनाने, फिल्में देखने और खरीदारी का भी आनंद लेती हैं, जिससे फिल्म में परंपरा और आधुनिकता का संगम दिखता है.

आदिवासी महिलाओं की समस्याओं पर डाली गयी है रोशनी

कुल मिलाकर ये कहानी विस्थापन, पर्यावरणीय क्षरण और सामाजिक-आर्थिक हाशिए पर खड़ी महिलाओं के साझा संघर्ष उजागर करती है. फिल्म के माध्यम से, आदिवासी महिलाओं की अनदेखी समस्याओं पर रोशनी डाली जाती है.

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