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श्रीमद्भागवत कथा में जीयर स्वामी ने कहा

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मेदिनीनगर. निगम क्षेत्र के सिंगरा अमानत नदी तट पर चातुर्मास व्रत के दौरान श्री लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा में कहा कि राजा परीक्षित अभिमन्यु के पुत्र थे. राजा परीक्षित को जब ये मालूम हुआ कि अगले सात दिन के बाद उनकी मृत्यु तक्षक नाग के डंसने से होगी, तब परीक्षित ने इन सात दिनों में शुकदेव जी से श्रीमद् भागवत कथा सुनी थी. सातवें दिन तक्षक सांप के डंसने पर परीक्षित की मृत्यु हुई. स्वामी जी ने कहा कि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास महर्षि पराशर और माता सत्यवती के पुत्र हैं. शास्त्रों के अनुसार महर्षि वेदव्यास त्रिकालज्ञ थे तथा उन्होंने दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलियुग में धर्म क्षीण हो जायेगा. धर्म के क्षीण होने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जायेगा. एक विशाल वेद का अध्ययन उनके सामर्थ्य से बाहर हो जायेगा. इसीलिए महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया. जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरण शक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें. व्यास जी ने उनका नाम रखा ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद. वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेदव्यास के नाम से जगत विख्यात हुए. स्वामी जी ने कथा के दौरान कहा कि कुल नाश भय से माता सत्यवती को एक दिन अचानक अपने पुत्र वेदव्यास का स्मरण आया. स्मरण करते ही वेदव्यास वहां उपस्थित हो गये. सत्यवती उन्हें देख कर बोलीं, तुम्हारे सभी भाई निःसंतान ही स्वर्गवासी हो गये. वंश का नाश होने से बचाने के लिए मैं तुम्हें आज्ञा देती हूं कि तुम उनकी पत्नियों को अपनी तपस्या-साधना व योग विद्या से संतान उत्पन्न करो. इस पर वेदव्यास ने कहा कि रानियों से कह दीजिये कि वे एक वर्ष तक नियम व्रत का पालन करते रहें तभी उनको गर्भ धारण होगा. एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वेदव्यास ने सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका को बुलाया. अम्बिका ने उनके तेज से डर कर अपने नेत्र बंद कर लिये. वेदव्यास लौट कर माता से बोले, माता अम्बिका का बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा. किंतु नेत्र बंद करने के दोष के कारण वह अंधा होगा. सत्यवती को यह सुन कर अत्यंत दुःख हुआ और उन्होंने वेदव्यास के पास छोटी रानी अम्बालिका को भेजा. अम्बालिका वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गयी. उसके कक्ष से लौटने पर वेदव्यास ने सत्यवती से कहा माता अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र होगा. स्वामी जी महाराज ने कहा कि इससे माता सत्यवती को और भी दुःख हुआ और उन्होंने बड़ी रानी अम्बिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया. इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जाकर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया. इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आ कर कहा माते इस दासी के गर्भ से वेद-वेदांत में पारंगत अत्यंत नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा. इतना कह कर वेदव्यास पुनः तपस्या करने चले गये. समय आने पर अम्बिका के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पीलिया रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ. इसीलिए कहा जाता है कि परमात्मा जिसकी रक्षा करना चाहें, तो वो कहीं न कहीं रक्षित हो ही जाता है.

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