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पश्चिम बंगाल : राज्य सरकार की शिशु साथी योजना हुई बीमार,बच्चों की जिंदगी दांव पर

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पश्चिम बंगाल : स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, केंद्र व राज्य सरकार संयुक्त रूप से इस योजना पर आने वाले खर्च को वहन करती है. 60 फीसदी खर्च केंद्र और 40 फीसदी राज्य सरकार वहन करती है. जानकारी के अनुसार इस योजना को चलाने के लिए फंड की कमी नहीं है.

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पश्चिम बंगाल : राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) आयुष, जिसे पश्चिम बंगाल में शिशु साथी के नाम से भी जाना जाता है. यह नाम खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिया है. ऐसे में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) आयुष योजना के तहत 452 पद रिक्त होने के कारण पिछले करीब पांच वर्षों से राज्य में 128 मोबाइल हेल्थ टीम बंद हैं. इससे सीधे बच्चों की सेहत पर असर पड़ रहा है. विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे बच्चों की पहचान नहीं हो पा रही है. जानकारी के अनुसार, राज्य में आरबीएसके (आयुष) योजना के तहत मेडिकल अधिकारियों के स्वीकृत पदों की संख्या 1,656 है.

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आरबीएसके आयुष डॉक्टरों के 452 पद हैं रिक्त

इनमें से 452 रिक्त हैं. वहीं, रिक्त पदों में से आयुर्वेद के 216 खाली हैं. विदित हो कि आरबीएसके आयुष योजना के तहत मेडिकल ऑफिसर के तौर पर आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी मेडिकल ऑफिसर को नियुक्ति किया जाता है. वहीं, प्रत्येक ब्लॉक में दो और नगर निकाय क्षेत्रों में एक मोबाइल हेल्थ टीम को नियुक्त किया जाता है. हर टीम में एक महिला व एक पुरुष मेडिकल ऑफिसर, एक फार्मासिस्ट व एक नर्स को नियुक्त किये जाने का निर्देश है. ज्ञात हो कि राज्य में 360 ब्लॉक और 128 नगर निकाय क्षेत्र हैं.

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रिक्त पदों की संख्या

आरबीएसके, आयुष योजना के तहत मेडिकल अधिकारियों के कुल 452 पद रिक्त हैं. इसके अलावा नर्सिंग स्टॉफ के छह और फार्मासिस्ट के 618 पद रिक्त पड़े हुए हैं. वर्ष 2019 से ही ये सभी पद रिक्त हैं.

क्या करते हैं आरबीएसके आयुष चिकित्सक

आरबीएसके, आयुष योजना के तहत कार्यरत चिकित्सक आंगनबाड़ी, प्राथमिक विद्यालय, हाइस्कूल, मदरसा, एमएसके व एसएसके के साथ केंद्र सरकार द्वारा संचालित विद्यालयों में 0-18 वर्ष तक के बच्चों की जांच करते हैं. जांच के दौरान बच्चों की जन्मजात बीमारी, कुपोषण, विटामिन की कमी, शारीरिक विकास से संबंधित विकार, आंख, नाक, कान, त्वचा से संबंधित बीमारियों की पहचान कर बच्चों को इलाज के लिए संबंधित अस्पताल में रेफर करना का कार्य आयुष चिकित्सक करते हैं. इसके अलावा, आयरन व फोलिक एसिड की कमी से जूझने वाले बच्चों को विस (डब्ल्यूआइएसएस) दवा की टैबलेट दी जाती है. ऐसे में ये चिकित्सक इसकी भी मॉनिटरिंग करते हैं कि उक्त विकार से जूझ रहे बच्चों को यह दवा खिलायी जा रही है या नहीं. दवा का स्टॉक स्वास्थ्य केंद्रों में उपलब्ध है या नहीं.

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फंड की कमी नहीं

स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, केंद्र व राज्य सरकार संयुक्त रूप से इस योजना पर आने वाले खर्च को वहन करती है. 60 फीसदी खर्च केंद्र और 40 फीसदी राज्य सरकार वहन करती है. जानकारी के अनुसार इस योजना को चलाने के लिए फंड की कमी नहीं है. वित्त वर्ष 2024-25 में इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा लगभग 255 करोड़ रुपये आवंटित की गयी है. केवल राज्य सरकार की उदासीनता के कारण इन चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं हो रही है. इस कारण 128 मेबाइल हेल्थ टीम बंद हैं.

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क्या कहते हैं अधिकारी

इस संबंध में राज्य स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि, बंगाल में आयुष चिकित्सा के विस्तार के लिए राज्य सरकार कई योजनाओं पर कार्य कर रही है. पर अभी लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा के उप चुनाव संपन्न हुए हैं. उधर, कोरोना के कारण कार्य ठप थे. सरकार जल्द ही उक्त योजना के तहत नये चिकित्सकों सह अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को नियुक्त करेगी. डॉ सुमेरु शेखर सेठ, अध्यक्ष, आयुष मेडिकल ऑफिसर आरबीएसके एएमएसोसिएशन राज्य सरकार को बच्चों की देखभाल के लिए सभी रिक्त पदों को तत्काल चिकित्सक व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को नियुक्त करना चाहिए, क्योंकि कोरोना से बच्चों की सेहत पर काफी प्रभाव पड़ा है. समस्याएं बढ़ी हैं.

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