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योग मानवीय व्यवहारों की सबसे विकसित और मूल्यवान अभिव्यक्ति

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मगध विश्वविद्यालय स्थित दर्शनशास्त्र विभाग के सेमिनार हॉल में श्रीश्रीआनंदमूर्तिजी के दर्शन के तीन पहलू आध्यात्मिक, नव्य मानवतावाद और सामाजिक आर्थिक सिद्धांत विषय पर एक दिवसीय विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया.

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बोधगया. मगध विश्वविद्यालय स्थित दर्शनशास्त्र विभाग के सेमिनार हॉल में श्रीश्रीआनंदमूर्तिजी के दर्शन के तीन पहलू आध्यात्मिक, नव्य मानवतावाद और सामाजिक आर्थिक सिद्धांत विषय पर एक दिवसीय विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया. आचार्य दिव्य चेतनानंद अवधूत, केंद्रीय जनसंपर्क सचिव, आनंद मार्ग प्रचारक संघ, कोलकाता मुख्य वक्ता थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता बौद्ध अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर गौतम कुमार सिन्हा ने की. विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर जावेद अंजुम ने विषय प्रवेश कराया. मगध विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह व डॉ प्रियंका तिवारी ने कार्यक्रम का आयोजन किया. आचार्य दिव्य चेतनानंद अवधूत ने श्रीश्री आनंदमूर्तिजी के दर्शनशास्त्र के तीन पहलुओं की व्याख्या की. उन्होंने कहा कि जब मनुष्य ने उस परम सत्ता की खोज में, उस परम आनंद की खोज में अपना आंदोलन शुरू किया, तो मनुष्य सबसे पहले अध्यात्म के संपर्क में आया और जैसे-जैसे अध्यात्म अनंत के संपर्क में आता है, यानी सीमित अनंत के संपर्क में आता है, उसे योग कहा जाता है. अब जहां प्रारंभिक बिंदु सौंदर्य स्वाद या सौंदर्य विज्ञान है, वहां चरम बिंदु से परम आकर्षण की गति शुरू होती है और आत्मा के साथ इस आंदोलन में परम आकर्षण के लक्ष्य के साथ मनुष्य उस परम सत्ता के साथ एक हो जाता है, जिसका आसन मानव अस्तित्व के शिखर से ऊपर है. योग मानवीय व्यवहारों की सबसे विकसित और सबसे मूल्यवान अभिव्यक्ति है. इसलिए यह योग का पहला चरण है कि व्यक्ति इतनी सारी कलाओं और विज्ञानों के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त करता है, क्योंकि सभी कलात्मक आंदोलनों का अंतिम बिंदु और सभी विज्ञानों का भी अंतिम बिंदु सर्वोच्च स्रोत है.

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