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Bihar: खुदाई में मिली थी सती की दाहिनी भुजा, 350 साल पहले बना कात्याय़नी शक्ति पीठ

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Bihar: 51 शक्तिपीठ में से एक मां कात्यायनी भगवती की दांयी भुजा आज भी इस मंदिर में मौजूद है. जिसकी पूजा वर्षों बरस से होती आ रही है. नवरात्रा के समय में मंदिर की अलौलिक छंटा नजर आती है.

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Bihar: आयुष कुमार. सहरसा के सिमरी बख्तयारपुर. सहरसा-मानसी रेलखंड अंतर्गत धमारा घाट स्टेशन से कुछ दूरी पर नदियों के बीच सुदूर फरकिया इलाके में बसे मां कात्यायनी के दरबार की महिमा अपार है. मां दुर्गा के छठे रुप में जानी जाने वाली मां कात्यायनी के इस सुप्रसिद्ध मंदिर की ख्याति दूर देश तक है. मूल रुप से खगड़िया जिले के फरकिया इलाके में स्थित धमारा घाट रेलवे स्टेशन के समीप माता रानी विराजमान हैं. 51 शक्तिपीठ में से एक मां कात्यायनी भगवती की दांयी भुजा आज भी इस मंदिर में मौजूद है. जिसकी पूजा वर्षों बरस से होती आ रही है. नवरात्रा के समय में मंदिर की अलौलिक छंटा नजर आती है. लोग दूध व दही लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं. दूध का अर्पण करने के बाद दही चूड़ा का भोजन खुद भी करते हैं और दूसरों को भी कराने की परंपरा आज भी यहां कायम है.

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मां ने दिया था दर्शन

पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर की चर्चा स्कंद पुराण में भी की गयी है. इसके अनुसार कालांतर में कात्यायन ऋषि कोसी नदी के तट पर रहते थे. जो प्रत्येक दिन कोसी नदी में स्नान-ध्यान कर मां कात्यायनी की आराधना किया करते थे. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर मां भगवती ने दर्शन दिया. तब से यह मंदिर मां कात्यायनी मंदिर के रुप में विख्यात हो गया. इस मंदिर में मां भगवती की दांयी भूजा विराजमान है. जिसकी आराधना की अलग परंपरा है. इस मंदिर में देश के विभिन्न भागों के अलावा विदेशों के भी श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं.

लाखों गाय लेकर आये थे महाराज

कालांतर में इस इलाके में राजा मंगल सिंह का शासन हुआ करता था. इसी काल में बीड़ीगमैली निवासी सीरपत महाराज अपने लाखों गाय को लेकर इस इलाके में आये. इसी क्रम में चौथम राज के राजा मंगल सिंह से उनकी मित्रता हुई. जिसके बाद राजा मंगल सिंह ने यह इलाका सीरपत (श्रीपत) महाराज को अपने गायों की देखभाल के लिये दे दिया. गायों की देखभाल के क्रम में सीरपत महाराज ने देखा कि प्रत्येक दिन एक गाय एक निश्चित स्थान पर पहुंचती है तो स्वत: उसके स्तन से दूध निकलने लगता है. धीरे-धीरे यह बात राजा के कानों तक पहुंची. राजा ने स्वयं जब यह दृश्य देखा तो दंग रह गये. स्थल की खुदाई हुई तो वहां मां की दांयी भुजा मिली. जिसे स्थापित कर पूजा अर्चना की जाने लगी. जो आज कल मां कात्यायनी स्थान के नाम से विख्यात है.

दूध से होती है पूजा

यहां गायों के दूध से मां कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती है. जिसके बाद लोग यहां पर चूड़ा, दही व बताशे का भोग लगा कर ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन कराते हैं. यह परंपरा आज भी इस मंदिर में कायम है. भयानक बाढ़ में भी मंदिर की चौखट पार नहीं कर पायी.नदियों से घिरा माता रानी के मंदिर का इलाका बाढ़ ग्रस्त है. हर साल बाढ़ से यहां के लोग जूझते हैं, लेकिन इसे मां की महिमा कहें या कुछ और भयानक से भयानक बाढ़ में भी नदियों का पानी मां के मंदिर की चौखट पार नहीं कर पाया है.

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