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बकरीद आज, नमाज के समय का हुआ एलान

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ईदगाहों की हुई सफाई

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अररिया. ईद उल अजहा अर्थात बकरीद का पर्व 17 जून को मनाया जायेगा. इस मौके पर जिले के विभिन्न मस्जिदों व ईदगाहों में बकरीद की नमाज काफी उत्साह व श्रद्धा के साथ अदा की जायेगी. अररिया शहर के ऐतिहासिक जामा मस्जिद के इमाम व खतीब मौलाना आफताब आलम मुजाहिरी ने नमाज के समय का एलान जुमा के दिन नमाज के बाद किया. इस बार जामा मस्जिद अररिया में बकरीद की नमाज सुबह 6 बजकर 30 मिनट में अदा की जायेगी. इसके अलावा आजाद एकेडमी स्कूल मैदान में सुबह 7 बजे, इस्लाम नगर ईदगाह में 8 बजे, खरय्या बस्ती ईदगाह में साढ़े आठ बजे, कोसकीपुर ईदगाह में आठ बजे, गैय्यारि ईदगाह में साढ़े आठ बजे व रजोखर ईदगाह मैदान में सुबह नौ बजे बकरीद की नमाज अदा की जायेगी. नमाज के बाद ही लोग अपने व अपने परिजनों के नाम से जानवर की कुर्बानी देते हैं. बकरीद का पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है. नमाज को लेकर विभिन्न मस्जिदों व ईदगाहों की सफाई व रंग रोगन किया जा रहा है.

हज इस्लाम का पांचवां अरकान, जीवन में एक बार है फर्ज

अररिया.

हज मजहबे इस्लाम का पांचवां व अंतिम स्तंभ है. इसका महत्व व प्रभाव सबसे अधिक है. यह हर मुस्लिम के जीवन में सिर्फ एक बार फर्ज है जो मक्का यात्रा की शक्ति रखता हो. जिसके पास इतना धन हो कि इस यात्रा का पूरा खर्च कर सके. फारबिसगंज प्रखंड के डोरिया निवासी अल्हाज अब्दुल करीम जो वर्तमान में आजाद नगर अररिया में रहते हैं ने हज के फजीलत व उसकी अहमियत पर जानकारी देते हुए बताया कि इस्लाम की पांच अरकान में हज भी एक अहम अरकान है, जो हर साहिबे निसाब अर्थात जो आर्थिक रूप में सबल हो जिंदगी में एक बार फर्ज है, उसके बाद अपनी सलाहियत के मुताबिक जितनी बार चाहें हज कर सकते हैं. अल्हाज अब्दुल करीम ने बताया कि नमाज पढ़ने, रोजा रखने में इंसान को पत्नी, संतान, घर गृहस्थी, रिश्तेदार, व्यवसाय को नहीं छोड़ना पड़ता है, लेकिन हज के लिए इन सब का परित्याग करना पड़ता है. ईश्वर प्रेम में वह ऐसी भावना होती है जो मनुष्य को समस्त प्रिय वस्तु को छोड़ देने के लिए तैयार कर देता है. उन्होंने बताया कि हज नमाज, जकात व रोजे का प्रभाव व्यक्ति, समाज, नगर व देश पर पड़ता है लेकिन हज का प्रभाव सारे संसार पर पड़ता है. हज के दौरान दुनिया के कोने-कोने में बसने वाले मुसलमान इस्लाम के केंद्र बिंदु मक्का के काबा में एकत्र होते हैं, एक दूसरे से मिलते जुलते व परिचित होते हैं. हज के दौरान सामूहिक रूप से सब एक हीं लिबास धारण कर एक साथ पुकारते हैं उपस्थित हूं मेरे अल्लाह उपस्थित हूं.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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