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World Environment Day : झारखंड की पद्मश्री जमुना टुडू और चामी मुर्मू ने जंगल माफिया से लड़ी लड़ाई, पढ़ें लेडी टार्जन की कहानी

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कोल्हान की दो महिलाओं के जुनून और जज्बा को झारखंड समेत पूरा देश सलाम करता है. पांच जून 2024 को दुनिया जब विश्व पर्यावरण दिवस मनायेगा, तो पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतरीन कार्य करने वाली झारखंड की इन दो आदिवासी महिलाओं पद्मश्री जमुना टुडू और चामी मुर्मू को जरूर याद किया जायेगा.

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चाकुलिया , राकेश सिंह : पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड की सोनाहातू पंचायत की मुटूरखाम बाड़ेडीह टोला निवासी पद्मश्री जमुना टुडू जंगल बचाओ आंदोलन की अगुवा रही हैं. वह लेडी टार्जन के नाम से विख्यात हैं. वन व पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य के लिए वह पद्मश्री समेत अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं. वह लोगों को जंगल बचाने का संदेश देती है और पौधरोपण के कार्य में जुटी हैं. जंगल बचाने की शिक्षा जमुना को विरासत में मिली है. उनके पिता भी प्रकृति प्रेमी थे और पेड़-पौधे लगाना और जंगलों को काटने से बचाना उनका शौक था. ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर की जमुना टुडू का वर्ष 1998 में चाकुलिया के बाड़ेडीह टोला के मानसिंह टुडू से शादी हुई. ससुराल के समीप ही मुटुरखाम पहाड़ है, जहां पेड़-पौधे तो थे, लेकिन काफी कम थे. परंपरा के मुताबिक, आदिवासी समुदाय के लोग अपनी जरूरत के लिए इसी पहाड़ से पेड़ काटकर उसकी लकड़ी का इस्तेमाल घरों में करते थे, जो जमुना के मन को कचोटता था. महिलाओं को भी जंगल से लकड़ी काट कर लाना होता था. जमुना ने इसका विरोध शुरू किया. उन्होंने तो पहले अपने ससुराल वालों को समझाया कि पहाड़ यदि हरा-भरा रहा तो आजीवन हमें सुख और शांति मिलेगी. फिर गांव वालों को समझाया. धीरे-धीरे गांव की महिलाओं का साथ उन्हें मिलने लगा.

गांव की महिलाओं की टोली बनाकर कटारी और कुल्हाड़ी लेकर बचाया जंगल

जमुना टुडू गांव की महिलाओं के साथ हाथ में कटारी और कुल्हाड़ी लेकर जंगल की रक्षा करने लगी. माफियाओं के पेड़ काटने की आवाज सुनते ही महिलाओं का झुंड पहाड़ की ओर दौड़ पड़ता था. कई बार माफियाओं से मुठभेड़ हुई. माफियाओं ने जमुना पर जानलेवा हमला भी किया. इसके बावजूद वह डरी नहीं और माफियाओं से लड़ती रहीं. धीरे-धीरे पेड़-पौधों से वीरान और बंजर पहाड़ हरे-भरे साल के पेड़ों से लहलहाने लगा. जंगलों को बचाने के लिए जमुना के रौद्र रूप के कारण उन्हें लेडी टार्जन के नाम से जाना जाने लगा. चाकुलिया वन विभाग का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिला. जंगल बचाने के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करने के लिए जमुना को कई पुरस्कार मिले. तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें वर्ष 2019 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा. वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जमुना के कार्य की कई बार सराहना की है.

पेड़-पौधों को भाई मान रक्षाबंधन पर बांधती हैं राखी

जमुना टुडू वर्तमान में वन संरक्षण सह प्रबंध महासमिति की अध्यक्ष बनाकर पूरे राज्य में जंगल बचाने का संदेश दे रही हैं. पेड़-पौधों को बचाने के लिए वह उससे रिश्ता जोड़ने के लिए भी लोगों को प्रेरित करती हैं. प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के अवसर पर पेड़-पौधों को भाई मानकर उन्हें राखी बांधती हैं और उन्हें बचाने का संकल्प भी लेती हैं. जमुना टुडू कहती हैं कि वर्तमान परिदृश्य में पेड़-पौधों की बेतरतीब कटाई का ही नतीजा है कि पूरा देश भीषण गर्मी झेलने को मजबूर है. इस स्थिति से निपटने के लिए पेड़-पौधे लगाना ही एकमात्र विकल्प है. उन्होंने क्षेत्र के लोगों को संदेश देते हुए कहा कि हर खुशी और जश्न में पेड़-पौधों को शामिल करें. बच्चों का जन्म हो, जन्मदिन मनाना हो, विवाह उत्सव मनाना हो, सालगिरह मनाना हो, हर मौके पर कम से कम पांच पेड़ प्रत्येक व्यक्ति लगाएं. पौधरोपण का कोई विकल्प नहीं है.

पर्यावरण संरक्षण और महिला शक्तीकरण के लिए अंतिम सांस तक काम करती रहूंगी : चामी मुर्मू

जमशेदपुर, दशमत सोरेन : सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड के बगराईसाई गांव निवासी पर्यावरणविद् व पद्मश्री चामी मुर्मू (52 वर्ष) ने कहा है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण और समाज सेवा को समर्पित कर दिया है. इसलिए जब तक शरीर में जान है और सांस चलेगी, तब तक पर्यावरण के प्रति प्रेम कम नहीं होगा. पर्यावरण संरक्षण, पौधरोपण, महिला सशक्तीकरण, तालाब व जलस्रोत का निर्माण का काम करती रहेंगी. उन्होंने सामाजिक दायित्व के तहत पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तीकरण के लिए घर से बाहर कदम रखा था, न कि पुरस्कार पाने के उद्देश्य से. लेकिन भारत सरकार और झारखंड सरकार ने उनके काम को सराहा और सम्मानित किया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों सम्मानित होकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर खुद को काफी गौरान्वित महसूस की.उन्होंने कहा कि वन पर्यावरण बचेगा, तभी धरती पर जीवन का वजूद रहेगा. इसलिए हरेक व्यक्ति को पौधरोपण और वन संरक्षण को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए. वन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता है. इसके लिए पूरा मानव समाज ही दोषी है. इसके संरक्षण के लिए सभी को आगे आना होगा.

शुरुआती दौर में लोगों के काफी ताने सुनने पड़े, लेकिन हिम्मत नहीं हारी

चामी मुर्मू ने बताया कि वर्ष 1990 में उन्होंने ‘सहयोगी महिला’ नामक एनजीओ की स्थापना की. इसके माध्यम से उन्होंने 2300 से भी अधिक महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन किया. इन समूहों के माध्यम से महिलाओं को बैंक से ऋण दिलाकर उन्हें स्वावलंबी बनने में मदद की. दलमा के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आदिम जनजाति की महिलाओं और बालिकाओं के उत्थान के लिए भी कई कार्य किये हैं. वह बताती हैं कि 1990 की दौर में जब वह महिलाओं से मिलने के लिए गांव-गांव जाती थीं, तो समाज के लोग उन्हें तरह-तरह के ताने सुनाते थे. दरअसल उस समय किसी महिला का घर से बाहर कदम रखने को गलत माना जाता था. लेकिन वह लोगों के तानों को अनसुना कर दिन-रात पर्यावरण और महिला सशक्तीकरण के लिए कार्य करती रहीं. आज वही लोग अपना कहने से थकते नहीं हैं.

मदर टेरेसा को मानती हैं रोल मॉडल

मदर टेरेसा को अपना रोल मॉडल मानने वाली चामी मुर्मू ने वर्ष 1990 में समाज सेवा की शुरुआत की. वह अविवाहित हैं और अपने जीवन को महिला सशक्तीकरण और पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर चुकी हैं. समाज में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने मई 2024 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया. चामी मुर्मू ने बताया कि तकरीबन 34 सालों से वह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रही हैं. अब तक उनके नेतृत्व में 30 लाख से अधिक पौधे लगाये हैं और महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय काम की हैं. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब और जल स्रोत निर्माण में सहयोग कर लोगों को इसके लिए जागरूक किया है.

नारी शक्ति और इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्षमित्र पुरस्कार से हो चुकी हैं सम्मानित

चामी मुर्मू का जन्म 1973 में हुआ था. वर्ष 1996 में उन्होंने पेड़ लगाना शुरू किया. उनके महिला संगठन में 3,000 सदस्य हैं. मार्च 2020 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नयी दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया. वर्ष 1996 में उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

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