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Hindi Journalism Day: 198 साल पुराना है हिन्दी पत्रकारिता दिवस का इतिहास, आप भी जानें

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Hindi Journalism Day: हर साल 30 मई के दिन हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है. इस खास दिन को सेलिब्रेट करते हुए अब करीबन दो सौ साल होने को है. चलिए इस खास दिन के बारे में विस्तार से जानते हैं.

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Hindi Journalism Day: हर साल 30 मई के दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. आपको शायद यह बात जानकर काफी हैरानी होगी कि इस साल 30 मई 2024 को इसके पूरे 198 साल हो जाएंगे. हिंदी पत्रकारिता दिवस के इस अवसर पर हम आज आपको इस खास दिन की शुरुआती दौर के बारे में बताने जा रहे हैं. इस खास दिन से जुड़ी जो भी जानकारी हमारे सामने है उससे पता चलता है कि इस दिन की शुरुआत हिंदी पत्रकरिता का उद्धव यानी कि उदन्त मार्तण्ड के साथ हुआ था. 30 मई यानी कि आज के ही दिन 1826 को इस हिंदी अखबार का पहला पब्लिकेशन कोलकाता से शुरू हुआ था. अगर आप इस बात को नहीं जानते हैं तो बता दें उदन्त मार्तण्ड वीकली मैगज़ीन के रूप में पेश किया गया था. इसके सम्पादक कानपुर जिले में जन्मे और पेशे से वकील पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे.

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क्रांतिकारी अखबार के रूम में जाना जाता था उदन्त मार्तण्ड

आपको यह बात जानकार काफी हैरानी और गर्व होगा कि उस जमाने में उदन्त मार्तण्ड को क्रांतिकारी अखबारों के रूप में जाना जाता था. यह वीकली मैगज़ीन ईस्ट इंडिया कंपनी के दबाने वाली नीतियों के बारे में खुलकर लिखता था. यह मैगज़ीन हर मंगलवार को आती थी और इसमें कुल 8 पन्ने होते थे. जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया कि यह मैगज़ीन काफी बुलंद होकर और खुलकर ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लिखती थी जिस वजह से इस पर करि बार रोक लगाने की भी कोशिश की गयी थी. रोक लगाने की तमाम कोशिशों के बाद भी पंडित जुगल किशोर शुक्ल अंग्रेजों के सामने नहीं झुके और लगातार अंग्रेजों के खिलाफ लिखते रहे.

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पहले अंक में छपी 500 कॉपियां

जितनी भी जानकारियां उदन्त मार्तण्ड से जुड़ी हमारे सामने है उससे यह पता चलता है कि जब इसके पहले अंक को पब्लिश किया गया था तो इसके कुल 500 कॉपियां छपी थीं. उस समय इस वीकली मैगज़ीन के ज्यादा पढ़ने वाले नहीं थे. ज्यादा रीडर्स न होने के पीछे एक मुख्य कारण यह भी था कि यह मैगज़ीन हिंदी में आती थी और कोलकाता में हिंदी पढ़ने वाले ज्यादा थे नहीं. ज्यादा रीडर्स न होने के बावजूद पंडित जुगल किशोर इसे रीडर्स तक लगातार पहुंचने की कोशिश करते रहे. इस मैगज़ीन को उन्होंने कई अन्य राज्यों में भी भेजने की कोशिश की. क्रांतिकारी रवैय्या होने की वजह से अंग्रेजी सरकार ने इसे डाक के माद्यम से बहार भेजने की कोशिश पर भी कई तरह के रोक लगाने शुरू कर दिए. ऐसा होने की वजह से इसे कई तरह को परेशानियों का सामना करना पड़ा. करीबन 19 महीनो के संघर्ष के बाद आखिरकार इस अखबार को बंद करना पड़ा. 19 दिसंबर 1827 को इस मैगज़ीन को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया.

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