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विदेशों में भारतीय छात्रों की बढ़ती मुश्किलें

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वर्ल्ड वाइड एजुकेशन फॉर फ्यूचर इंडेक्स के अनुसार गुणवत्ता युक्त शिक्षा मामले में भारत 2020 में दुनिया में 33वें, 2019 में 35वें और 2018 में 40वें स्थान पर था.

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भले ही भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, परंतु अभी भी भारत में गुणवत्ता युक्त उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पर्याप्त विकल्प एवं अवसर उपलब्ध नहीं हैं. न ही शिक्षा और योग्यता के अनुसार देश में रोजगार उपलब्ध हैं. हालांकि, आजादी के बाद से शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधार हुए हैं, जिससे रोजगार व अनुसंधान परिदृश्य, साक्षरता दर आदि में उल्लेखनीय सुधार हुआ है.

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आज देशभर में 1000 से अधिक विश्वविद्यालय और 42,000 से अधिक कॉलेज उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. परंतु इनके पास अभी भी पर्याप्त पूंजी, कुशल शिक्षक और आधारभूत संरचना की कमी है. हालांकि शोध कार्यों में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय तेजी आयी है. भारत में उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों का प्रतिशत महज 13 है, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह प्रतिशत 28 से 90 के बीच है.

वर्ल्ड वाइड एजुकेशन फॉर फ्यूचर इंडेक्स के अनुसार गुणवत्ता युक्त शिक्षा उपलब्ध कराने के मामले में भारत 2020 में दुनिया में 33वें, 2019 में 35वें और 2018 में 40वें स्थान पर था. भारत का कोई कॉलेज या विश्वविद्यालय आज भी दुनिया में शीर्ष 10 स्थानों में नहीं है. उच्च शिक्षा के स्तर का विश्लेषण करने वाली संस्था क्वाक्वेरेली साइमंड्स (क्यूएस), लंदन द्वारा घोषित विश्वविद्यालय रैंकिंग, 2024 के अनुसार, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद व्यवसाय एवं प्रबंधन श्रेणी में दुनिया के शीर्ष 25 प्रबंधन संस्थानों में से एक है, भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरु और कोलकाता दुनिया के शीर्ष 50 व्यवसाय प्रबंधन संस्थानों में से एक हैं.

विश्वविद्यालय श्रेणी में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दुनिया के शीर्ष 20 विश्वविद्यालयों में से एक है. विदेश में बड़ी संख्या में छात्रों द्वारा शिक्षा ग्रहण के कारण भारत से पूंजी का बहाव विदेशों में होने के साथ ही प्रतिभा का पलायन भी हो रहा है. विदेश मंत्रालय के अनुसार, जनवरी 2023 तक 15 लाख भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ाई कर रहे थे, जबकि 2022 में यह संख्या 13 लाख थी और 2024 में इसके 24 लाख पहुंचने की संभावना है.

वर्ष 2020 से 2021 के दौरान विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई. विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों में से 20 प्रतिशत ही अपनी पढ़ाई पूरी कर विदेश से भारत वापस लौटना चाहते हैं. ऐसी स्थिति में बदलाव के लिए, विदेश के नामचीन कॉलेज और विश्वविद्यालय की शाखाएं भारत में खोली गयी हैं, परंतु भारतीय छात्र इनमें दाखिला लेने में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं.

विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों में 35 प्रतिशत अमेरिका में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. कोरोना महामारी के शुरू होने से पहले विदेशों में अध्ययनरत छात्रों ने विदेश की अर्थव्यवस्थाओं में 24 अरब डॉलर व्यय किया था, जो भारत के जीडीपी का एक प्रतिशत था. वर्ष 2024 में इस राशि के बढ़कर 80 अरब डॉलर पहुंचने का अनुमान है. आंकड़ों के अनुसार, चीन के बाद भारत से सबसे अधिक छात्र विदेश पढ़ने जाते हैं.

मेडिकल की डिग्री के लिए भारतीय छात्र लगभग तीन दशकों से रूस, चीन, यूक्रेन, किर्गिस्तान, कजाखस्तान, फिलीपींस जा रहे हैं, क्योंकि भारत में मेडिकल सीट कम है और पढ़ाई बहुत महंगी. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 में देशभर में महज 596 मेडिकल कॉलेज थे, जहां कुल मेडिकल सीटों की संख्या महज 88,120 थी. बीते कई वर्षों से विदेशों में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की हत्या और उनके साथ भेदभाव हो रहा है, परंतु कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद विदेश में अध्ययनरत छात्रों की सुरक्षा को लेकर ज्यादा चिंता महसूस की गयी.

महामारी के दौरान ऑस्ट्रेलिया के शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों के लिए वहां की सरकार ने देश की सीमाएं भी बंद कर दी थीं. वहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरुआती दौर में यूक्रेन में 20,000 से अधिक छात्र फंस गये थे. कुछ महीने पहले भी कनाडा में कुछ कॉलेजों के बंद होने के कारण सैकड़ों भारतीय छात्र प्रभावित हुए थे. कुछ दिनों पूर्व किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में कुछ भारतीय छात्रों पर जानलेवा हमला हुआ.

फरवरी 2024 में अमेरिका के सेंट लुईस स्थित वाशिंगटन विश्वविद्यालय के छात्र अमरनाथ घोष की हत्या कर दी गयी. विदेश मंत्रालय के अनुसार, 2018 से अब तक विदेशों में पढ़ रहे 400 से अधिक छात्रों की मौत हो चुकी है, जिनमें कुछ प्राकृतिक मौत थी तो कुछ हत्या.

भारतीय छात्रों की विदेश में की जा रही हत्या, उन पर किये जा रहे जानलेवा हमले, नस्ली टिप्पणी या भेदभाव की स्थिति में सुधार के लिए सरकार को अंतरराष्ट्रीय संधि की संख्या बढ़ाने के साथ सरकारी मेडिकल व इंजीनियरिंग कालेजों में सीटों की संख्या बढ़ानी चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर सुधार एवं अधिकाधिक निवेश, नवोन्मेष और अनुसंधान को बढ़ावा देने की जरूरत है. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कभी विदेश में पढ़ रहे भारतीय छात्रों को देश का ब्रांड एंबेसडर कहा था. इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने वहां पढाई कर रहे भारतीय छात्रों को दोनों देशों के बीच का जीवंत सेतु माना था. परंतु आज इन भारतीय छात्रों की जान वैश्विक स्तर पर सांसत में फंसी हुई है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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