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Buddha Purnima 2024: भगवान बुद्ध ने दिखाई रिचुअल से स्पिरिचुअल की राह

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Buddha Purnima 2024 बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. उत्तर प्रदेश पर्यटन और संस्कृति विभाग के सहयोग से निबंध प्रतियोगिता, सांस्कृति कार्यक्रम और प्रदर्शनी लगायी गई.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश पर्यटन, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान और संस्कृति विभाग ने बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima 2024) के मौके पर गुरुवार को प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति मुकेश कुमार मेश्राम ने कहा कि आज ही के दिन लुंबनी (वर्तमान में नेपाल) में महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था. यह दिन इसलिए खास है कि पूर्णिमा को ही बुद्ध का जन्म हुआ, इसी दिन बोधगया (बिहार) में ज्ञान की प्राप्ति हुई और पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में परिनिर्वाण प्राप्त हुआ. इसलिए इस दिवस को ‘त्रिविध’ कहते हैं.

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क्यों जानें बुद्ध को
प्रमुख सचिव ने युद्ध नहीं बुद्ध (Buddha Purnima 2024) विषय पर आयोजित परिचर्चा में कहा कि आखिर वर्तमान समय में बुद्ध को क्यों जानें? उन्हें जानना इसलिए जरूरी है कि आज जिस तरह विश्व में अशांति, निराशा, गुस्सा, ईर्ष्या, हताशा और चिंता का भाव है, उससे निजात हमें बुद्ध के वचनों से ही मिल सकता है. वैश्विक नकारात्मकता के भाव पर नियंत्रण के लिए तथागत के उपदेश अहम हैं. मुकेश मेश्राम ने कहा, बौद्ध धर्म समाज के हर वर्ग, हर वर्ण के लोगों को शांति का पाठ पढ़ाता है. उन्होंने कहा कि ‘तथागत ने हमेशा ‘जो प्राप्त हुआ, वही पर्याप्त है’ का भाव रखना दुनिया को सिखाया. भगवान बुद्ध ने ‘रिचुअल से स्पिरिचुअल’ की राह दिखायी. इस मौके पर प्रमुख सचिव मुकेश कुमार मेश्राम ने व अन्य अतिथियों ‘सिद्धार्थ से बुद्ध’ नामक पुस्तक का विमोचन किया.

राग, द्वेष, मोह, माया का करें त्याग
विद्यारत्न विश्वविद्यालय श्रीलंका के डॉ. बेन जूल्मपीटिये ने (Buddha Purnima 2024) कहा कि तथागत ने परिवार और आसपास सांसारिक मोह माया में फंसे लोगों को करीब से देखा. अंदर से बाहर के ‘युद्ध’ को महसूस किया. उन परिस्थितियों ने बुद्ध को अंदर से बाहर तक झकझोर दिया. अंतर्मन की सुनकर सिद्धार्थ, बुद्ध बन गए.’ केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय त्रिपुरा के प्रो. अवधेश कुमार चौबे ने कहा कि महात्मा बुद्ध ने राग, द्वेष, मोह, माया को त्याग बेहतर समाज बनाने का संदेश दिया. नव नालंदा विश्वविद्यालय के प्रो. राम नक्षत्र प्रसाद ने कहा कि युद्ध और बुद्ध विपरीत विचारधारा है. महात्मा बुद्ध को ‘रण छोड़’ भी कहा जाता है, अर्थात उन्हें युद्ध का त्याग किया. प्रो. यूएस व्यास ने त्रिविध की चर्चा करते हुए कहा कि तीन बड़ी घटनाएं एक ही तिथि को होना सामान्य नहीं है. आज का आयोजन ख़ुशी प्रदान करता है, खासकर तब जबकि श्रावस्ती लखनऊ से ज्यादा दूर नहीं है, जहां बुद्ध ने सबसे अधिक समय व्यतीत किया था.

निबंध और चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन
कार्यक्रम में निबंध और चित्रकला प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया. निबंध प्रतियोगिता का विषय वर्तमान समय में विश्व में बौद्ध दर्शन (Buddha Purnima 2024) की प्रासंगिकता और चित्रकला प्रतियोगिता का विषय भगवान बुद्ध की जीवन यात्रा से संबंधित उत्तर प्रदेश के बौद्ध तीर्थ स्थल निर्धारित किया गया था. इसमें वर्धमान इंटर कॉलेज तकरोही, एसबीएम पब्लिक स्कूल, आइडियल पब्लिक स्कूल, सरस्वती शिशु मंदिर तकरोही से आए छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया. प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कार व प्रमाण पत्र दिया गया. इसके अलावा अन्य बच्चों को सांत्वना पुरस्कार दिया गया. एसबीएम पब्लिक स्कूल की कक्षा आठ की छात्रा सृष्टि बरनवाल को अंगवस्त्र और बुद्ध क्वाइन देकर सम्मानित किया गया.

दृष्टिबाधित कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया
नवभारत निर्माण ट्रस्ट गोरखपुर के बैनर तले दृष्टिबाधित कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए. सीतापुर से दिलीप, पंकज कुमार व राजीव प्रजापति, गाजीपुर से विपिन, सिद्धार्थनगर से प्रदीप व शिकमा, बलिया से सकीबा इसमें शामिल थे. उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार संस्कृति विभाग की ओर से महात्मा बुद्ध के जीवन, दर्शन एवं पुरातात्विक अवशेषों से संबंधित अभिलेख प्रदर्शनी भी लगाई गई. सिद्धार्थ से बुद्ध तक विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी में लोगों की भीड़ लगी रही.

भगवान बुद्ध कपिलवस्तु में रहे 29 वर्ष
उत्तर प्रदेश में भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddha) के जीवन से जुड़े प्रमुख छह स्थल हैं. सिद्धार्थनगर जिले में स्थित कपिलवस्तु में सिद्धार्थ गौतम ने शुरुआती 29 साल व्यतीत किए. यहीं पर वृद्ध, बीमार, शव, संन्यासी देखकर उद्विग्न हुए और राज-महल त्यागकर सत्य की खोज में निकल पड़े. श्रावस्ती वह स्थान है, जहां गौतम बुद्ध ने जेतवन में पच्चीस वर्ष व्यतीत किए. संकिसा में भगवान बुद्ध देवलोक से पृथ्वी पर अवतरित हुए थे. कौशांबी में बुद्ध ने बुद्धत्व के छठे और नौवें वर्ष व्यतीत किये. वाराणसी जिले में स्थित सारनाथ, जहां 2,500 साल पहले भगवान बुद्ध ने अपने पहले पांच शिष्यों को ‘चार आर्य सत्य’ का प्रथम धर्म उपदेश दिया था, जो 21वीं सदी में कई समस्याओं के समाधान के लिए प्रासंगिक है. कुशीनगर वह स्थान है, जहां गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था. जिला महराजगंज में स्थित रामग्राम कोलिय साम्राज्य का प्रमुख नगर था. मान्यता है कि रामग्राम स्तूप में भगवान् बुद्ध के अवशेष मौजूद हैं. उत्तर प्रदेश के जिला महराजगंज में स्थित देवदह की पहचान, रानी मायादेवी, प्रजापति गौतमी और राजकुमारी यशोधरा के मायके के रूप में की जाती है. बुद्धिस्ट सर्किट में स्थित पर्यटन स्थलों पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. उत्तर प्रदेश पर्यटन की ओर से यहां पर्यटन सुविधाओं का विकास किया जा रहा है. सारनाथ, संकिसा, कुशीनगर समेत अन्य स्थलों पर सुविधाएं विकसित की जा रही हैं.

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