15.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 08:27 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

1957 के आम चुनाव की कहानी, तब के पीठासीन अधिकारी सरदार गुरुचरण सिंह की जुबानी

Advertisement

चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने के लिए एक महीने पहले से आवागमन बाधित हो जाती थी. इसके साथ ही जनता पर चुनाव खर्च का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता था.

Audio Book

ऑडियो सुनें

सिंदरी (धनबाद), अजय उपाध्याय : सरदार गुरुचण सिंह 90 बसंत देख चुके हैं. 20 साल की उम्र में चंडीगढ़ से सिंदरी आए. फर्टिलाइजर कंपनी में फोरमैन थे. 1957 के दूसरे आम चुनाव में पीठासीन अधिकारी की भूमिका निभाई.

- Advertisement -

चुनाव के बारे में लोगों को पता भी नहीं होता था

कहते हैं कि तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. पहले अधिकतर लोगों को अगले हफ्ते के मतदान का भी पता नहीं होता था. आम लोगों के लिए संचार का कोई साधन नहीं था. नेताओं से ही जनता को पता चलता था कि कब वोट डाले जाना है. प्रभात खबर संवाददाता से बातचीत में उन्होंने पहले और अब के चुनाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

जनता तक संदेश पहुंचाने के लिए नेताओं के पास होता था कम समय

गुरुचरण सिंह ने बताया कि उस वक्त के आम चुनाव में जनता तक नेताओं के संदेश पहुंचाने का एकमात्र जरिया सघन जनसंपर्क अभियान ही था. वोट से पहले अब उम्मीदवार को महीनों समय मिल रहा है, लेकिन पहले 10 दिन का समय काफी रहता था. चुनाव और उसके परिणाम आने में कई दिन लग जाते थे.

एक महीने पहले चुनाव की वजह से बाधित हो जाता था आवागमन

चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने के लिए एक महीने पहले से आवागमन बाधित हो जाती थी. इसके साथ ही जनता पर चुनाव खर्च का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता था. चुनाव कराने में भी बैलेट पेपर सहित कई मशीनों को सघन दूर स्थानों पर ले जाने और चुनाव कराकर सुरक्षित पहुंचाने तक की प्रक्रिया काफी बोझिल करने वाली थी.

अखबार और टेलीविजन से प्रत्याशियों को प्रचार में हुई सहूलियत

उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे चुनाव प्रचार में अखबार और उसके बाद टेलीविजन ने इस पर अपना कब्जा जमाया. चुनाव प्रचार में प्रत्याशियों को थोड़ी राहत मिली. परंतु इवीएम प्रक्रिया के आने से चुनाव कराने और उसे सुरक्षित पहुंचाने में आसानी हो गई. इसके साथ ही परिणाम जल्द आने लगे. उन्होंने कहा कि डिजिटल प्रक्रिया से देश का समय के साथ आर्थिक फायदा भी हुआ है.

60 के दशक में क्या थे प्रचार के साधन?

प्रचार-प्रसार के लिए आज के दिनों में उमीदवार को लाऊडस्पीकर के साथ वाहन से प्रचार करने की सुविधा मिल रही है, लेकिन 60 के दशक में एक-दूसरे के घर जाकर अपना चुनाव चिन्ह बता कर लोग मतदान के लिए लोगो को अपील करते थे ।

शांतपूर्ण चुनावों के लिए एनसीसी कैडेट की ली जाती थी मदद

अभी पूरे देश में जिला प्रशासन पुलिस बल ,सीआरपीएफ, आर्मी, बलों के प्रयोग से शान्ति पूर्ण चुनाव कराने का प्रयास कर रहा है. फिर भी कहीं न कहीं कुछ घटना घट जा रही है, उस समय शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए एनसीसी कैडेटों की सेवा ली जाती थी.

इसे भी पढ़ें : Dhanbad Lok Sabha: धनबाद में खामोश मतदाताओं ने बढ़ाई प्रत्याशियों की टेंशन

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें