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बोर्ड परीक्षा में 90% आने के बाद भी खुश नहीं कुछ बच्चे व अभिभावक, एक्सपर्ट से जानें क्या करें?

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आजकल ज्यादातर पेरेंट्स मार्क्स के आधार पर ही बच्चों की इंटेलिजेंस का अंदाजा लगाने लगते हैं, जो किसी भी तरह से ठीक नहीं है. हाल ही में जारी हुए सीबीएसइ और आइसीएसइ बोर्ड परीक्षा 10वीं-12वीं के परिणाम आने के बाद यह बातें सामने आयी हैं कि, कई बच्चे व अभिभावक 90% अंक आने के बाद भी खुश नहीं हैं. ऐसे में शिक्षा जगत से जुड़े एक्सपर्ट कहते हैं-‘करियर में परीक्षाएं पड़ाव हैं, मंजिल नहीं. परीक्षा पास कर पड़ाव पार करना होता है. स्कूली परीक्षा के प्राप्तांक, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता की गारंटी नहीं देते हैं’. इसलिए तनाव को छोड़कर बच्चों को इस लायक बनाएं कि वे जीवन में आने वाली किसी भी चुनौतियों से लड़ सकें.

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जूही स्मिता,पटना

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पिछले दो महीनों में कई बोर्ड परीक्षाओं की रिजल्ट की घोषणा हुई है. ऐसे में 10वीं- 12वीं क्लास में बच्चा अगर 90 फीसदी मार्क्स लाया है, तो ज्यादातर पेरेंट्स के लिए यह खुशी की बात होती है, लेकिन इस बार जब 10वीं-12वीं का परिणाम सामने आया, तो कुछ बच्चों के पेरेंट्स निराश नजर आये. क्योंकि उनके बच्चे कड़ी मेहनत कर मात्र 85-90 फीसदी मार्क्स ही ला पाये हैं. इसमें सबके अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर 90 फीसदी मार्क्स पर भी पेरेंट्स संतुष्ट क्यों नहीं हैं?

क्या उन्हें बच्चों की मेहनत नजर नहीं आती? या अब बच्चे की सफलता मापने का पैमाना सिर्फ 100 फीसदी मार्क्स हो गया है? यदि ऐसा है, तो यह बिल्कुल सही नहीं है. क्योंकि आपका रिजल्ट आपके भविष्य को तय नहीं करता है. ऐसा इसलिए कि कई बार देखा गया है कि जिन बच्चों को बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंक नहीं मिले हैं, लेकिन उन्होंने जिंदगी की परीक्षा में एक बेहतर मुकाम हासिल किया है. उन सभी ने अपने कम अंक को चुनौती की तरह लिया और आज एक बेहतर मुकाम पर हैं.

सोसाइटी में स्टेटस सिंबल बन रहा बच्चों का मार्क्स

हर बच्चे की अपनी खूबी होती है. इसलिए किसी एक परीक्षा के दम पर बच्चे की सफलता को मापना ठीक नहीं है. पैरेंट्स भी यह बात मानते हैं, लेकिन तब तक जब तक बात दूसरे के बच्चे की हो रही है. एक अभिभावक जिनकी बेटी को इस बोर्ड परीक्षा में 90 फीसदी मार्क्स आये है, वह बताते हैं कि मेरी बेटी ने मेहनत की है तो उसके मार्क्स 90 फीसदी आये है, लेकिन अगर वह थोड़ी मेहनत कर लेती तो उसके 95 फीसदी तक मार्क्स आ जाते. आखिर वे अपनी बेटी के मार्क्स से खुश क्यों नहीं है?

पूछने पर उन्होंने जवाब दिया-‘पिछले साल मेरे रिश्तेदार ने अपने बच्चों के मार्क्स बताये, जो 93 फीसदी थे, मेरे सोसाइटी के बच्चों को भी ऐसे ही मार्क्स आते हैं. तो अगर हमारे बच्चे के मार्क्स अच्छे आते, तो लोगों को बताना आसान हो जाता. सोशल मीडिया पर भी कुछ पैरेंट्स बच्चों के मार्क्स को शेयर करते हैं. वे खुश होने के साथ यह जताते हैं कि उनके बच्चे बेस्ट हैं.

अभिभावकों को काउंसलिंग की जरूरत

करियर काउंसलर आशीष आदर्श कहते हैं, जब हम यह बोलते हैं कि हर बच्चा अपने आप में अनोखा, अनूठा व अद्वितीय है. हमारे परीक्षा तंत्र ने सभी को एक जैसे ही आंकना शुरू कर दिया है. यह प्रतियोगिता बच्चों से उनका अनूठापन व अनोखापन छीन रही है. ऐसे में अब बच्चों को नहीं बल्कि अभिभावकों को भी काउंसलिंग की जरूरत है.

समझने की जरूरत है कि करियर की शुरुआत में ही अगर हम सांस फुला कर बैठ गये, फिर आगे दौड़ेंगे कैसे? हम दौड़ते रहें, इसके लिए ध्यान रखना जरूरी है कि हमारी आने वाली पीढ़ी की सांसे न फूलें. इसलिए तनाव को छोड़कर बच्चों को हम इस लायक बनाएं कि वे जीवन में आने वाली किसी भी चुनौती से लड़ सकें व हमेशा दौड़ सकें.

एक्सपर्ट बोले

  • मार्क्स किसी प्रतिभा का पैमाना नहीं
    • पटना विश्वविद्यालय के वीसी प्रो केसी सिन्हा कहते हैं, मार्क्स किसी प्रतिभा का पैमाना नहीं है. मार्क्स सिर्फ एक यार्डस्टिक है, लेकिन यह कहना कि जिसे मार्क्स अधिक आयेंगे वही सफल होंगे, यह गलत है. क्योंकि करियर में परीक्षाएं पड़ाव हैं, मंजिल नहीं हैं. हम परीक्षा पास कर पड़ाव का पार करते हैं. आइंस्टाइन और रामानुजन जैसे कई उदाहरण हैं, जिन्हें अच्छे मार्क्स नहीं आते थे, लेकिन उनकी रूचि ने एक बेहतर मुकाम दिलवाया. अभिभावकों को ये समझना होगा कि बच्चों के मार्क्स को मापदंड न बनाएं. उनकी तुलना अन्य बच्चों से न करें और न ही अपनी आकांक्षाएं उन पर थोंपे. सभी का अपना व्यक्तित्व होता है और हमें इसे एक्सेप्ट करना होगा.
  • आपकी काबिलियत ही आपका साथ देती है
    • पटना यूनिवर्सिटी की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट निधि सिंह कहती हैं, जीवन की ये न तो पहली और न ही आखिरी परीक्षा है. इसे एक सामान्य घटना की तरह लें. कई बार हम देखते हैं कि कुछ पैरेंट्स मार्क्स के आधार पर ही बच्चे की इंटेलिजेंस का अंदाजा लगाते हैं और जब ऐसा नहीं होता है तो बच्चों पर प्रेशर डालने लगते हैं. सभी को समझना होगा कि मार्क्स आपका भविष्य तय नहीं करता है. आपकी काबिलियत ही आपको एक बेहतर मुकाम दिलायेगी. अभिभावकों से कहना चाहती हूं वह अपने बच्चों को शाबाशी दें, उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं.
  • मार्क्स जीवन की दशा व दिशा तय नहीं करते
    • करियर काउंसलर आशीष आदर्श कहते हैं, उदाहरण के तौर मैं बताना चाहता हूं कि सीबीआइ के डायरेक्टर जोगेंद्र सिंह जो अब नहीं रहे, उनका मैट्रिक सेकेंड और प्लस टू थर्ड डिविजन से था, लेकिन उन्होंने सिविल सर्विसेज को क्रैक किया. सीबीआइ के डायरेक्टर बने. ठीक ऐसे ही बिल गेट्स को हावर्ड यूनिवर्सिटी में कम अंक की वजह से एमबीए में एडमिशन नहीं मिला था. उसके बाद उन्होंने तय किया कि मैं ऐसी कंपनी बनाऊंगा जिसमें हावर्ड के ग्रेजुएट काम करेंगे और उन्होंने इस सपने को सच कर दिखाया. इसलिए अभी जो अंक आये हैं वे जीवन की दशा व दिशा को तय नहीं कर सकते. इसलिए जरूरी है कि पैरेंट्स अपने बच्चों पर विश्वास रखें.

इन्हें बनाएं अपनी प्रेरणा : कम अंक आने के बावजूद भी पाया मुकाम, कमाया नाम

1. हार नहीं माना, अपने लक्ष्य पर डटा रहा : डॉ गोपाल शर्मा

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के ज्वाइंट डायरेक्टर रह चुके डॉ गोपाल शर्मा बताते हैं कि बोर्ड का परिणाम हमारे जिंदगी में बस एक पड़ाव है. मैं जब पटना साइंस कॉलेज से इंटर की पढ़ाई कर रहा था उस वक्त मुझे 59% अंक आये थे. जबकि दसवीं में 87 प्रतिशत से ज्यादा मार्क्स था. फिर भी मैने साइंस में ग्रेजुएशन और पीजी किया. इतना ही नहीं पीयू से गंगा के डॉल्फिन पर पीएचडी भी किया. इस दौरान मैंने गंगा की इकोलॉजी और एनिमल डायवर्सिटी पर शोध भी किया. 2004 में सिविल सर्विसेस में मेरा चयन साइंटिस्ट के तौर पर हो गया. आज मुझे लोग मेरे काम और मेहनत से जानते हैं न कि मेरे मार्क्स से.

2. मेरा एक ही सपना था देश की सेवा करना : रानी कुमारी

कोतवाली में एसआइ पद पर स्थापित रानी कुमारी कहती हैं, दसवीं बोर्ड में उनका अंक ज्यादा था और वह फर्स्ट डिवीजन आयी थीं. इंटर की परीक्षा में उन्हें सेकंड डिविजन आया था. दसवीं के मुकाबले 12वीं में कम अंक होने की वजह से मैंने खुद का आत्मविश्वास कम होने नहीं दिया. माता-पिता ने भी कभी मेरे मार्क्स के लिए जिम्मेदार न ठहराया. मैंने आगे की पढ़ाई के साथ बच्चों को ट्यूशन दिया. हमेशा से देश सेवा की भावना थी, तो मैंने बीपीएसएससी की तैयारी शुरू की. छह महीने की कड़ी मेहनत से मैं इसमें उत्तीर्ण हुई. आज मैं एसआइ के पद पर कार्यरत हूं और देश की सेवा में योगदान दे रही हूं.  

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