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गुरुदेव ने बोलचाल की भाषा में किया बंगला का विकास

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गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने बोलचाल की भाषा में बंगला का विकास किया. वे देशज संस्कृति के उदबोधक थे.

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गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने बोलचाल की भाषा में बंगला का विकास किया. वे देशज संस्कृति के उदबोधक थे. वे भारतीय राष्ट्र को विविध उपराष्ट्रीयताओं का समुच्चय मानते थे. उनकी सास्कृतिक दृष्टि सभी समुदाय, क्षेत्र, भाषा के सम्मान पर आधारित था. उनका कला संसार इसी सांस्कृतिक दृष्टि पर आधारित था।उनका प्रसिद्ध नाटक ”””” मुक्तो धारा ”””” नदियों के अविरल प्रवाह को बांध बना कर रोकने के खिलाफ था. उक्त बातें परिधि के निदेशक उदय ने बुधवार को कला केंद्र में परिधि सृजन मेला के मुख्य समारोह में कही. मुख्य समारोह का आगाज गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर जयंती समारोह हुआ. भारत के पहले नोबल पुरस्कार विजेता कवि, चित्रकार, कहानी- उपन्यासकार, नाटककार गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती पर परिधि सृजन मेला के प्रदर्शनी खंड का उद्घाटन हुआ. रवींद्रनाथ टैगोर की विशाल प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गयी. इससे पहले कार्यक्रम का उद्घाटन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ सोमेन चटर्जी ने किया और कहा कि आज मेरे जीवन का अभिन्न क्षण है, पहले कभी नहीं आया. यहां की कला प्रतिभाओं को देखा तो अभिभूत हो गया. शिक्षकों को नमन करता हूं. . बिहार बंगाली समिति, भागलपुर शाखा की ओर से गुरुदेव को समर्पित नृत्य व संगीत प्रस्तुत किया गया. निरुपम कांति पाल के निर्देशन में रविंद्र संगीत पर नृत्य जीवन दर्शन कृतिका मंजरी और निधि बनर्जी ने प्रस्तुत किया. मोमो चिट्टे नीते निते की प्रस्तुति अनन्या दास ने कर रविंद्र रंगमंच को जीवंत कर दिया. लीना दत्त ने आनंद लोके नच की प्रस्तुति दी. डॉ सोमेन चटर्जी ने गुरुदेव की मशहूर अंग्रेजी कविता का पाठ किया. कलाकेंद्र के प्राचार्य राजीव कुमार सिंह उर्फ राहुल ने कहा कि गुरुदेव ने जिस उद्देश्य से विश्वभारती शांतिनिकेतन की स्थापना बोलपुर, बंगाल में की थी,उसी भावना के अनुरूप कलाकेंद्र की स्थापना बंकिमचंद्र बनर्जी ने भागलपुर मे की.

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