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यूनियन नेताओं की प्रेस मीट से मुश्किल में तृणमूल

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अंतर्कलह. भाकपा, माकपा व इंटक श्रमिक संगठन के नेताओं ने तृणमूल व भाजपा को एक साथ घेरा

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आसनसोल.

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खिलाफ 41 विपक्षी पार्टियों की भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेसी गठबंधन (आइएनडीआइए) के नेताओं का बंगाल में आपसी तालमेल नहीं होना तृणमूल के लिए खतरे का संकेत है. सोमवार को माकपा, भाकपा और कांग्रेस से जुड़ी श्रमिक संगठनों सीटू, एटक और इंटक नेताओं ने पत्रकार सम्मेलन में भाजपा और तृणमूल दोनों को अपने निशाने पर रखा. इंटक नेता चंडी बनर्जी, एटक नेता गुरुदास चटर्जी और सीटू नेता जीके श्रीवास्तव ने आसनसोल सीट से भाजपा उम्मीदवार एसएस अहलूवालिया के एक बयान का खंडन करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2015 को कोल माइन्स नेशनलाईजेशन एक्ट को बदल कर कोल माइन्स स्पेशल प्रोविजन एक्ट 2015 को संसद में पेश किया. लोकसभा में मौजूद भाजपा नेताओं ने इस एक्ट के समर्थन किया और तृणमूल नेता संसद से वाकआऊट कर गये. भाजपा ने इसका प्रत्यक्ष रूप से तो तृणमूल ने इसका परोक्ष रूप से समर्थन किया. जिसके बाद से ही कोयला खदानों के निजीकरण का रास्ता पूरी तरह से खुल गया. जिसके खिलाफ लगातार आंदोलन चल रहा है. कोयला खदानों के निजीकरण के खिलाफ देशव्यापी एक दिवसीय हड़ताल का भजपा और तृणमूल ने विरोध किया था. गौरतलब है कि श्री अहलूवालिया ने कुछ दिनों पूर्व एक पत्रकार सम्मेलन में कहा था कि कोयला खदानों के निजीकरण के मुद्दे पर ट्रेड यूनियनों ने सरकार के साथ एक समझौता पर हस्ताक्षर किया है. श्री अहलूवालिया के इसी बयान का खंडन करते हुए उक्त श्रमिक संगठन नेताओं ने पत्रकार सम्मेलन करके भाजपा और तृणमूल दोनों पर हमला किया. नेताओं ने कहा कि श्री अहलूवालिया के इस बयान का हमलोग विरोध करते हैं. इस तरह का कोई समझौता वे नहीं दिखा पायेंगे. सिर्फ राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस प्रकार तथ्यहीन बयान दे रहे हैं. निजीकरण के खिलाफ यूनियनों का धारावाहिक रूप से देशव्यापी आंदोलन चल रहा है. कुछ बड़े आंदोलनों में 16 अप्रैल 2018 को बर्दवान से चित्तरंजन तक पदयात्रा, कोयला खदानों में एफडीआइ के खिलाफ दो से चार जुलाई 2020 को तीन दिवसीय हड़ताल, कोयला खदानों को बेसरकारी करने के विरोध में 16 फरवरी 2024 को एक दिवसीय हड़ताल किया गया. तृणमूल और भाजपा दोनों ने ही इसका विरोध किया था.

एचएमएस को छोड़ खदानों की आउटसोर्सिंग के पक्ष में सभी यूनियनों ने किया था हस्ताक्षर

आसनसोल. वर्ष 1998 से 2005 तक इसीएल बीआईएफआर में रही. उस दौरान इसीएल के पुनरुद्धार को लेकर बीआईएफआर में लावतर सुनवाई चल रही थी. नौ खदानों को आउटसोर्सिंग में चलाने के समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले तत्कालीन खान श्रमिक कांग्रेस (बीएमएस) के उपाध्यक्ष जयनाथ चौबे ने बताया कि कंपनी को बीआईएफआर से बाहर निकालने के लिए प्रबंधन ने 14 खदानों को आउटसोर्सिंग में चलाने का प्रस्ताव दिया था. जिसमें से यूनियन नेताओं ने नौ खदानों को आउटसोर्सिंग में चलाने की अपनी मंजूरी दी थी और अपना हस्ताक्षर किया था. जिसमें बीएमएस, सीटू, एटक और इंटक के नेता शामिल थे. एचएमएस ने इसका विरोध किया और उसके नेता इसपर हस्ताक्षर नहीं किये. वर्ष 2005 में कंपनी बीआईएफआर से बाहर आ गयी. कोल माइन्स स्पेशल प्रोविजन एक्ट 2015 लागू होने के बाद कोयला खदानों में निजीकरण का रास्ता साफ हो गया. संसद में भाजपा नेताओं ने प्रत्यक्ष तो तृणमूल नेताओंने परोक्ष रूप से इसका समर्थन किया था. जिसके परिणाम स्वरूप ही कोयला खदानों पर संकट छा गया है.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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