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QS World University Ranking में बिहार और झारखंड की यूनिवर्सिटीज क्यों नहीं बना पाती अपनी जगह

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QS World University Ranking: पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय चुनने की प्राथमिकता विद्यार्थी और अभिभावक उनकी रैंकिंग के आधार पर तय़ करते हैं. वैसे तो यूनिवर्सिटी की रैंकिंग कई पैरामीटर पर की जाती है और कई संस्थान भी टॉप यूनिवर्सिटी की लिस्ट जारी करते हैं लेकिन QS World University Ranking ऐसी अग्रणी प्रणाली है जो दुनिया भर के टॉप विश्वविद्यालयों की सूची जारी करती है.

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QS World University Ranking: भारत में विश्वविद्यालयों की रैंकिंग जारी करने वाले कई संस्थान हैं. रैंकिंग जारी करने के कई पैरामीटर भी होते हैं. इनमें कुछ राष्ट्रीय रैंकिंग होती हैं तो कुछ अंतरराष्ट्रीय. इस बीच विद्यार्थियों में विश्वविद्यालयों की रैंकिंग को लेकर काफी चर्चा होती रहती है. विद्यार्थी कन्फ्यूज भी रहते हैं कि किस रैंकिंग को देखकर कौन सी यूनिवर्सिटी में नामांकन कराना चाहिए.

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भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए एनआईआरएफ रैंकिग जरूरी होती है. लेकिन अगर आप दुनियाभर की टॉप यूनिवर्सिटी की सूची देखना चाहते हैं तो ऐसे स्थिति में क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग हर साल दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटी की लिस्ट जारी करती है.

अगर बात बिहार और झारखंड के विश्वविद्यालयों की करें तो यहां की यूनिवर्सिटी वर्ल्ड रैंकिंग में शामिल होने से चूक जाती हैं, क्योंकि क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के मानक दो या तीन क्राइटेरिया में को पूरा नहीं कर पाते. इनमें अंतरराष्ट्रीय शिक्षकों और अंतरराष्ट्रीय छात्रों का अनुपात भी शामिल है. दूसरी ओर बिहार और झारखंड के विश्वविद्यालय में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी होती है. यहां के विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की संख्या भी काफी कम होती है और नए फ्रोफेसर की बहाली न के बराबर होती है. इसके लिए यूजीसी और सरकार को काफी मेहनत और रिफॉर्म करने की जरूरत है.

” बिहार और झारखंड के विश्वविद्यालयों में बहुत बड़े रिफॉर्म की जरूरत है. ये विश्वविद्यालय क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में इस लिए शामिल नहीं हो पाते, क्योंकि यहां पर टीचर्स की भारी मात्रा में कमी रहती है. जितने टीचर्स की जरूरत होती है,उतनी भर्ती विश्वविद्यालय में होती ही नहीं. इसके साथ ही पब्लिक इन्वेस्टमेंट की भी जरूरत है. साथ में नेप 2020 यानी नई शिक्षा नीति को ग्राउंड लेवल पर लागू करने की जरूरत है. तभी जाकर बिहार और झारखंड के विश्वविद्यालय क्यूएस रैंकिंग में शामिल हो पाएंगे.”

रमेश शरण, पूर्व कुलपति, विनोवा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग

कैसे होता है विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन?

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग इन परफॉर्मेंस इंडिकेटर का उपयोग करके विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन करती है. इनमें अकादमिक साख के लिए 40%, नियोक्ता के ब्रांड वैल्यू के ऊपर 10%, छात्र-शिक्षक अनुपात पर 20%, रिसर्च वर्क के उद्धरण पर 20%, वेटेज, अंतरराष्ट्रीय शिक्षकों के अनुपात के लिए 5% और अंतरराष्ट्रीय छात्रों के अनुपात के लिए 5% अंक दिए जाते हैं.

Qs
Qs ranking performance indicator

कैसे बनी यह संस्था

दरअसल, Nunzio Quacquarelli नाम के व्यक्ति ने साल 1990 में ब्रिटिश कंपनी क्यूएस यानी क्वाक्वेरेली साइमंड्स की स्थापना की थी. क्वाक्वेरेली साइमंड्स दुनियाभर के हायर एजुकेशन संस्थानों का एनालिसिस करती है. उसके बाद कई फैक्टर्स के आधार पर बेस्ट यूनिवर्सिटी की लिस्ट जारी करती है.

क्वाक्वेरेली साइमंड्स ने सबसे पहले साल 2004 में QS World University Ranking की शुरुआत की थी. यह कंपनी दुनियाभर के विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन करके कुछ ऐसे विश्वविद्यालयों के नाम आगे करती है, जिनका 51 विभिन्न कोर्सेज के साथ ही 5 फैकल्टी एरिया में भी काफी शानदार परफॉर्मेंस रहता है.

इन बातों पर किसी विश्वविद्यालय को रैंकिंग में किया जाता है शामिल

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में शामिल होने के लिए किसी भी विश्वविद्यालय को कई अध्ययन स्तरों यानी स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों पाठ्यक्रमों में पढ़ाई कराना जरूरी होता है. पांच संभावित संकाय क्षेत्रों जैसे कला और मानविकी, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी तथा सामाजिक विज्ञान और प्रबंधन, नेचुरल साइंस, लाइफ साइंस और मेडिसीन में से कम से कम दो में काम करना पड़ता है.

QS World University Ranking की लिस्ट में शामिल होने पर क्या प्लेसमेंट पर भी पड़ता है असर?

सबसे पहले तो यह जानने की जरूरत है कि यूनिवर्सिटी में दो तरह के प्लेसमेंट होते हैं. एक डोमेस्टिक और दूसरा इंटरनेशनल. अगर क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में कोई भी विश्वविद्यालय शामिल हो जाती है तो जाहिर सी बात है कि उस विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल प्लेसमेंट का स्कोर काफी अच्छा हो जाता है.

क्यूएस यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भारत के कुछ प्रमुख संस्थान हैं जो टॉप 200 में अपनी जगह बनाते हैं. इनमें आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी मद्रास, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी बैंगलुरू शामिल हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि ये रैंकिंग अलग – अलग स्ट्रीम के आधार पर भी जारी की जाती है. आप क्यूएस डॉट कॉम पर जाकर दुनिया के विश्वविद्यालयों के बारे में अधिक जानकारी ले सकते हैं.

एनआईआरएफ रैंकिंग में भी टॉप पर नहीं आते बिहार और झारखंड के विश्वविद्यालय

आपको जानकारी के लिए यह भी बता दें कि बिहार और झारखंड की यूनिवर्सिटी एनआईआरएफ में भी टॉप रैंक में जगह नहीं बना पाती. एनआईआरएफ राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क है, जिसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा मानक मानदंडों के एक सेट के आधार पर संस्थानों को रैंक करने के तरीके के रूप में मंजूरी दी गई है. यह ढांचा देश भर के विभिन्न संस्थानों के बीच उत्कृष्टता को बढ़ावा देने की दृष्टि से वर्ष 2015 में लांच किया गया था. यह सुनिश्चित करता है कि संस्थान अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा और गैर-शैक्षणिक पहलुओं के सभी मापदंडों पर कड़ी मेहनत कर रहा है. किसी भी रैंकिंग में टॉप में आने के लिए बिहार और झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षक की बहाली के साथ ही पाठ्यक्रम में बदलते समय के साथ अपडेशन की भी जरूरत है. इसके लिए सरकार और यूजीसी को मिलकर एक साथ काम करना पड़ेगा.

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