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बोकारो के जंगलों में लगी भीषण आग, तेज लपटों में जलकर खाक हो रहे पेड़-पौधे

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झारखंड के बोकारो जिले के जंगलों में भीषण आग लगी हुई है. इस पर काबू पाने का प्रयास भी किया जा रहा है. तेज लपटों में जलकर पेड़-पौधे खाक हो रहे हैं. इससे वन संपदा को काफी नुकसान पहुंच रहा है.

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बोकारो/फुसरो नगर, सीपी सिंह/उदय गिरि: जंगल की आग पर कवि आशुतोष दुबे की एक कविता है-‘जंगल में आग लगने पर, पेड़ जंगल छोड़ कर भाग नहीं जाते, जब आग उनका माथा चूमती है, उनकी जड़ें मिट्टी नहीं छोड़ देतीं, जब पंछियों के कातर-कलरव से, विदीर्ण हो रहा होता है आसमान, चटकती हैं डालियां, लपटों के महोत्सव में, धधकता है वनस्पतियों का जौहर, उसी समय घोंसले में छूट गये अंडे में, जन्म और मृत्यु से ठीक पहले की जुम्बिश होती है, धुएं, लपट, आंच, चटकती डालियों का हाहाकार, और ऊपर आसमान में पंछियों की चीख-पुकार सच है, और उतनी ही सच है, संसार के द्वार पर एक नन्हीं-सी चोंच की दस्तक.’ बोकारो और बेरमो वन प्रक्षेत्र में लगी आग और इन जंगलों से उठते धुएं बता रहे हैं कि हमारा भविष्य भी जल रहा है, उसे बचाना होगा. इन जंगलों का, हमारी प्रकृति का संरक्षण करना होगा. वर्ना परिणाम अति भयंकर व विनाशकारी होंगे.

सोनाडाली व विशुघाट में लगी आग
वन क्षेत्र को विकसित करने पर प्रत्येक साल लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं. एक पेड़ लगाने पर सरकार कई सौ रुपये खर्च कर देती है. वहीं हर साल हजारों-लाखों पेड़ जल जा रहे हैं, पर कोई देखने वाला नहीं है. प्रत्येक साल अप्रैल-मई माह में जंगलों में भीषण आग लगती है और बड़ा जंगली इलाका जलकर नष्ट हो जाता है. बावजूद वन विभाग के पास ऐसा कोई कारगर उपाय नहीं है कि जंगल की आग पर तत्काल काबू पाया जा सके. आग लगने के कारण, बचाव के उपाय, प्रकृति को होनेवाले नुकसान की भरपाई कैसे हो, इसपर वन विभाग नहीं सोचता है. बेरमो वन क्षेत्र में बेरमो, गोविंदपुर व पेक बीट हैं, जबकि बोकारो रेंज में ढोरी व नावाडीह वन बीट है. नावाडीह व चंद्रपुरा प्रखंड का एक बड़ा भाग वन क्षेत्र है, जिसमें कई स्थानों पर आग लगी हुई है. बताया जाता है कि गर्मी में हीट वेव के कारण भी आग लग जाती है. वहीं कहीं-कहीं महुआ चुनने के दौरान जो आग लगायी जाती है, वह ठीक से नहीं बुझाये जाने के कारण बाद में बढ़ जाती है.

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सोनाडाली से लेकर मथुराहीर-विशुघाट पहाड़ तक के जंगल जल रहे
बोकारो के चंद्रपुरा प्रखंड के सोनाडाली पहाड़ से लेकर मथुराहीर-विशुघाट पहाड़ तक भीषण आग लगी हुई है. आग की तेज लपटों से जंगल खाक हो रहा है. शाम ढलते ही आग की भयावह लपटें दूर से ही दिखायी पड़ने लगती हैं. पिछले दो-तीन दिनों में कई किलोमीटर तक आग का दायरा बढ़ चुका है. रोजाना हजारों पेड़-पौधे जलकर नष्ट हो रहे है. चंद्रपुरा-फुसरो सड़क मार्ग पर सोनाडाली पहाड़ स्थित है. राजाबेड़ा से भंडारीदह तक लगभग तीन-चार किलोमीटर वन क्षेत्र में जगह-जगह आग लगी हुई है. वहीं विशुघाट पहाड़ी इलाका तारमी पंचायत के हेठबेड़ा गांव से सटा है. इस पहाड़ में भी धीरे-धीरे आग बढ़ती जा रही है. यह वन क्षेत्र बोकारो रेंज के ढोरी बीट में तारमी के अधीन आता है.

जंगल रोको अभियान से बचे जंगल, आग से नहीं पनप पा रहे नये पौधे
ढोरी सब बीट में तारमी के चंद्रपुरा-भंडारीदह से सटे सोनाडाली व विशुघाट पहाड़ी जंगल के अलावा इन क्षेत्रों में कतरामबेड़ा, गोहालपहरी, धोवाबेड़ा, बगजोबरा, कुकुरमरवा जंगल क्षेत्र है, जो अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं. इन जंगलों में ग्रामीणों द्वारा जंगल रोको अभियान पिछले 10-15 वर्षों से चलाया जा रहा है. इस कारण कोई भी ग्रामीण जंगल में मनचाही लकड़ी नहीं काट सकता है. लेकिन अगलगी के कारण प्रत्येक वर्ष जंगल में जो नये पौधे लगते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं. जंगलों में खासकर सखुआ, सीधा, धोवा, पुतर, कारी, महुआ, बांस, शीमल, डोका, करम आदि प्रजाति के पेड़-पौधे पाये जाते हैं. आग से 5-10 फीट के छोटे पौधों की मौत असमय हो जा रही है.

वनक्षेत्र में मोर व जंगली सूअरों की भरमार
सोनाडाली, विशुघाट, कतारामबेड़ा, गोहालपहरी के जंगलों में पिछले 10 सालों में सबसे अधिक मोर की संख्या बढ़ी है. हजारों की संख्या में मोर हैं. इसके अलावा जंगली सूअरों की भी संख्या काफी बढ़ी है. खरगोश, तीतर सहित कई तरह के अन्य पशु-पक्षी भी हैं, जो अक्सर दिख जाते हैं. मोर तो इतनी अधिक संख्या में हैं कि सुबह-सुबह एक साथ सड़कों पर विचरण करते दिखाई पड़ते हैं. अब गांवों तक चारे-पानी की तलाश में मोर पहुंचने लगे हैं. खेतों में लगे धान को भी खाने के लिए मोर आ धमकते हैं.

बनायी गयी है फायर फाइटिंग टीम
बेरमो वन विभाग के वनरक्षी अजीत कुमार मुर्मू व ढोरी वन नावाडीह-चंद्रपुरा के वनरक्षी मुकेश कुमार महतो कहते हैं कि वैसे तो वन विभाग में कर्मियों व संसाधनों की कमी है. बावजूद नावाडीह व ढोरी वन क्षेत्र में छह लोगों की एक प्राइवेट फायर फाइटिंग टीम वन विभाग ने बनायी है. अगलगी की सूचना पर आग बुझाने जाते हैं. सीसीएल ढोरी व बीएंडके प्रबंधन के फायर विभाग की टीम का भी सहयोग लिया जाता है.

क्या बोले चंद्रपुरा के बीडीओ ईश्वर दयाल महतो
चंद्रपुरा के बीडीओ ईश्वर दयाल महतो ने कहा कि सोनाडाली जंगल में आग की सूचना मिली है. संबंधित लोगों को सूचित किया गया है. अगर आग नहीं बुझती है, तो स्थानीय ग्रामीणों का भी सहयोग लिया जायेगा.

धधक रहे बोकारो के जंगल
बोकारो का तापमान हर दिन नया रिकॉर्ड बना रहा है. रविवार को तापमान 42 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया. बढ़ती गर्मी के बीच हर कोई पर्यावरण संरक्षण की बात कर रहा है. पिछले दिनों पृथ्वी दिवस का आयोजन दर्जनों जगह किया गया. पर्यावरण को सुरक्षित व संरक्षित रखने को लेकर लंबा-लंबा भाषण दिया गया. लेकिन, जमीन पर हकीकत कुछ और ही है. बोकारो के जंगल आग से धधक रहे हैं, पेड़-पौधे, जीव-जंतु आग से झुलस रहे हैं. पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है, लेकिन जंगल को आग से बचाने का जो प्रयास किया जा रहा है, वह नाकाफी है.

वन क्षेत्र में लगी आग, उत्सर्जित हो रहा है कार्बन डाईऑक्साइड
बोकारो जिले के सभी प्रमुख वन क्षेत्र में आग लगी हुई है. चाहे गोमिया प्रखंड का लुगुबुरू हो या फिर चंद्रपुरा प्रखंड का सोनाडाली पहाड़. चाहे जरीडीह प्रखंड का भस्की जंगल हो या फिर कसमार प्रखंड अंतर्गत दुर्गापुर पंचायत के डुंडाडीह स्थित जंगल. हर जगह जंगल में आग फैल रही है, लेकिन बचाव का समुचित प्रयास नहीं हो रहा है. जंगल में आग लगने के पीछे कई कारण बताया जाता है. कई बार जंगल में लगी आग को महुआ से जोड़ कर देखा जाता है. लेकिन, वर्तमान में महुआ बिछने का काम बंद है. फरवरी-मार्च में तेज हवा चलने के कारण महुआ के फल पर असर हुआ था. इस साल बहुत कम उपज महुआ की हुई है. ऐसे में महुआ बिछने के नाम पर जंगल में आग लगने-लगाने की वजह स्पष्ट नहीं हो रही है. जंगल में आग का दूसरा कारण गर्म हवा को माना जा रहा है. पिछले दो सप्ताह से गरमी का प्रकोप बढ़ा हुआ है. 08 से 18 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गर्म हवाएं चल रही है. गरम हवा के कारण पत्तियों में घर्षण के कारण आग की संभावना हो सकती है. वहीं कई बार शरारती तत्वों के कारण भी जंगल में आग लगने की सूचना मिलती है.

वजह जो भी, लेकिन नुकसान हमारा-आपका
जंगल में आग लगने का कारण चाहे जो भी हो, लेकिन नुकसान हमारा-आपका ही है. जंगल में आग लगने के कारण भारी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. वर्तमान में जंगल में लगी आग से हर दिन कई टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है. निचली क्षेत्र में यह परेशानी का कारण भी बन रहा है. साथ ही मिट्टी धुसर हो जाती है. मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. इस कारण पेड़ से प्राप्त बीज को अंकुरित होने में ज्यादा समय लगता है. इसके अलावा कई औषधीय पौधा नष्ट हो जाता है. जंगल की सघनता कम होती है. जंगली जानवर बेवजह मारे जाते हैं.

कर्मियों की कमी से जूझ रहा है विभाग
एक ओर जंगल में आग लगने की घटना हो रही है. वन संपत्ति को आग से नुकसान पहुंच रहा है. दूसरी ओर वन विभाग में कर्मियों की भारी कमी से जूझ रहा है. वन कर्मियों की संख्या 58 होनी चाहिए, लेकिन जिला में मात्र 23 वन कर्मी है. वहीं 28 फोरेस्टर की जगह एक भी तैनाती नहीं है. 06 रेंज ऑफिसर्स के बदले सिर्फ 02 की तैनाती है. जिला में एक भी एसीएफ नहीं है.

विभाग चलाता है अभियान, असर नहीं के बराबर
विभाग की ओर से जंगल को आग से बचाने के लिए जंगल से सटे गांव व जंगल से जीविकोपार्जन करने वाले लोगों से संबंधित गांव में जागरूकता अभियान चलाया जाता है. यह अभियान सालों-साल से चल रहा है. गरमी का मौसम व महुआ का सीजन आने से पहले से ही अभियान की शुरुआत हो जाती है. लेकिन, हर साल जंगल में आग लगती है.

चुनाव का मौसम, बड़े-बड़े वादे-दावे…मेनिफेस्टो में पर्यावरण को भी जगह
वर्तमान में चुनाव का मौसम चल रहा है. विभिन्न राजनीतिक दल की ओर से दावा व वादा का खेल चल रहा है. इस साल के चुनावी रण में पर्यावरण को भी कांग्रेस व भाजपा की ओर से जगह दी गयी है. लेकिन, अभी तक बोकारो जिला में किसी नेता ने उन मैनिफेस्टो का जिक्र भाषण में नहीं किया है.

जागरूकता से बचेगा जंगल
बोकारो के डीएफओ रजनीश कुमार ने कहा कि जंगल में आग लगने के कई कारण हैं. आग रोकने को लेकर हर संभव प्रयास किया जा रहा है. शनिवार को पूरी रात चंद्रपुरा प्रखंड की जंगल में लगी आग का बुझाने का काम हुआ. लोगों को जागरूक होना होगा. जंगल की अहमियत को समझना होगा.

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