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सादगी व ईमानदारी ने मजदूर नेता रामदास सिंह को पहुंचाया था सदन तक

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सादगी व ईमानदारी ने मजदूर नेता रामदास सिंह को पहुंचाया था सदन तक

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राकेश वर्मा, बेरमो : बेरमो के समाजवादी व मजदूर नेता स्व रामदास सिंह ने गिरिडीह लोकसभा सीट से दो बार चुनाव जीता था. पहली बार वर्ष 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर तथा दूसरी बार वर्ष 1989 में भाजपा के टिकट पर. रामदास सिंह 40-50 के दशक में एचएमएस से संबद्ध कोयला मजदूर यूनियन के बड़े नेता हुआ करते थे. सादगी एवं इमानदारी के कारण आम जनता व कोयला मजदूरों का इनके प्रति विश्वास था. 1977 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में लगे आपातकाल के दौरान उन्हें मीसा के तहत गिरफ्तार कर हजारीबाग केंद्रीय कारा भेज दिया गया था. यहां करीब 18 माह जेल में रहने के बाद एक महीने के लिए पैरोल पर बाहर निकले थे. आपातकाल के तुरंत बाद 1977 में आम चुनाव की घोषणा हो गयी थी. जयप्रकाश नारायण सहित कई समाजवादी नेताओं के करीबी रहे रामदास सिंह को 1977 के संसदीय चुनाव में गिरिडीह लोकसभा सीट से जनता पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया. उस वक्त जनता पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष सत्येंद्र नारायण सिंह ने उन्हें टिकट दिये जाने की घोषणा की थी. उस वक्त रामदास सिंह के पास एक पुरानी एंबेस्डर कार नंबर बीआरवी 5467 थी. आर्थिक रूप से कमजोर स्व सिंह के नॉमिनेशन से लेकर चुनाव प्रचार का रखर्च आम लोगों व कोयला मजदूरों ने अपने पैसे से उनका उठाया था. उनके समर्थन में टुंडी के सत्यानारायण दुधानी, डुमरी के मदन जायसवाल, गोमिया के छत्रुराम महतो, कुंज बिहार, सत्येंद्र नारायण सिंह, चतरोचट्टी के भीम सिंह, ऊपरघाट में शिव प्रसाद सिंह के अलावा बेरमो के पूर्व विधायक मिथिलेश सिन्हा, मधुसूदन सिंह, जगनारायण सिंह, मेघराज सिंह, ईश्वरी सिंह, रघुवंश सहाय, रामपदारथ पांडेय, मुक्तिनाथ तिवारी, केडी सिंह, डॉ प्रह्लाद वर्णवाल, सूर्यनाथ सिंह, केपी सिंह, देवनारायण सिंह, रामचंद्र वर्मा आदि सक्रिय रूप से चुनाव प्रचार अभियान में लगे रहे. गिरिडीह के झंडा चौक मैदान में डॉ मुरली मनोहर जोशी तथा जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सिकंदर बख्त की चुनावी सभा भी उनके समर्थन में हुई थी. कहते हैं रामदास सिंह ने जो अपना रिटर्न फाइल किया था, उसमें चार लाख रुपया चुनावी खर्च दर्शाया था. सांसद बनने के बाद क्षेत्र की समस्याओं के अलावा कोयला मजदूरों की आवाज को उन्होंने सदन में बुलंद की थी. उन्होंने सदन में कोयला मजदूरों के बोनस, वेज रिविजन के अलावा संसदीय क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में लिफ्ट एरिगेशन का मामला उठाया. साथ ही पावर प्लांट लगाने का भी मामला उठाया. इसके बाद बेरमो के चापी में स्थल चयन के लिए मिट्टी जांच की गयी, लेकिन रिपोर्ट सही नहीं मिलने पर बाद में ललपनिया में पावर प्लांट लगा, जो टीटीपीएस के रूप में जाना जाता है.

पुराने लोग बताते हैं कि चुनाव लड़ रहे रामदास सिंह को कोयला मजदूर आपस में चंदा इक्ट्ठा कर दिया करते थे. वह चुनाव प्रचार के दौरान दिन भर घर से बाहर रहते थे. कोयला मजदूर अपने-अपने दंगल का नाम लिख कर तथा जमा की गयी राशि एक कागज में लपेटकर ढोरी जीएम कॉलोनी स्थित उनके पुराने आवास की खिड़की से फेंक देते थे. चुनाव जीत जाने के बाद महिला व पुरुष कोलकटरों ने उनके घर जाकर उनके पैरों पर नारियल चढ़ाया था और उनकी आरती की थी.

1977 और 1989 के चुनाव में जीते थे चुनाव

1977 के चुनाव में रामदास सिंह ने कांग्रेस के डॉ इम्तियाज अहमद को करीब 80 हजार मतों के अंतर से पराजित किया था. रामदास सिंह को 1,54,120 और इम्तियाज अहमद को 85843 मत मिले थे. तीसरे नंबर पर रहे जेएमएम के बिनोद बिहारी महतो को 24,350 मत मिले थे. इसके बाद वर्ष 1989 के चुनाव में रामदास सिंह को 164543 तथा दूसरे नंबर पर रहे जेएमएम के बिनोद बिहारी महतो को 156391 मत मिले थे. तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के सरफराज अहमद को 133703 मत मिले थे.

अंग्रेज दारोगा की पिटाई के बाद आये थे बेरमो

बेरमो के समाजवादी व श्रमिक नेता स्व रामदास सिंह वर्ष 1942 के आंदोलन में बिहार के औरंगाबाद में हुए एक अंग्रेज दारोगा की पिटाई के बाद भाग कर पलामू के हिंदेगिरी आ गये थे. इसके बाद कोडरमा में यमुनाखट्टी के यहां काफी दिनों तक रहे थे. बाद में बेरमो आ गये तथा यहां चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गये. एक बार जरीडीह बाजार में स्वतंत्रता सेनानी बिंदेश्वरी सिंह, लक्ष्मण भगत, रामचंद्र महतो, रामदास सिंह आदि गुप्त बैठक कर रहे थे. इसी बीच अंग्रेज दारोगा ने छापा मारा तो बिंदेश्वरी सिंह जरीडीह बाजार स्थित दामोदर नदी में कूद कर नदी की दूसरे छोर चलकरी निकल गये थे.

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