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बेरमो माइंस : सीसीएल व डीवीसी के पेंच में शुरू नहीं हो पा रहा उत्पादन

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बेरमो माइंस : सीसीएल व डीवीसी के पेंच में शुरू नहीं हो पा रहा उत्पादन

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राकेश वर्मा, बेरमो : सीसीएल व डीवीसी के अधिकारियों का दौरा होता है, डीवीसी बेरमो माइंस चालू करने की बात कही जाती है, लेकिन इस दिशा में पहल सकारात्मक नहीं दिखती है. यह माइंस आठ साल से बंद है. 20 अप्रैल को डीवीसी के चेयरमैन एस सुरेश कुमार ने माइंस का निरीक्षण किया और कहा कि इस माइंस को कुछ वर्ष पूर्व सीसीएल को हस्तांतरण किया गया था. परंतु सीसीएल द्वारा हस्तांतरण के बाद कई ऐसी प्रक्रियाएं पूरी नहीं की जा रही है और इसके कारण कोयला खनन शुरू नहीं हो पा रहा है. माइंस से जल्द कोयला उत्पादन शुरू हो, इसको लेकर डीवीसी गंभीर है. इसके लिए जल्द पहल की जायेगी. गत वर्ष डीवीसी के चंद्रपुरा व बोकारो थर्मल दौर पर आये डीवीसी के तत्कालीन चेयरमैन राम नरेश सिंह ने कहा था कि साल के अंत तक इस माइंस को चलाने की सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली जायेंगी. इसके पूर्व सात फरवरी 2023 को डीवीसी के मेंबर टेक्निकल एम रघु राम तथा सीसीएल के पूर्व निदेशक तकनीकी (योजना एवं परियोजना) बी साई राम ने इस माइंस का दौरा कर सीसीएल व डीवीसी के अन्य अधिकारियों के साथ बैठक की थी तथा प्लान को अंतिम रूप दिया था. डीवीसी के मेंबर टेक्निकल ने कहा था कि इस माइंस को अब सीसीएल चलायेगी. सीसीएल के डीटी (पीएंडपी) ने कहा था कि सीसीएल इस माइंस को चलायेगी और इस पर सैद्यांतिक सहमति बन चुकी है. जानकारी के अनुसार इस माइंस से सीसीएल को आने वाले 27 साल तक सालाना 26.5 लाख टन कोयला उत्पादन कर डीवीसी के पावर प्लांटों को आपूर्ति करना है, ऐसा रोड मैप तैयार किया गया है. इस माइंस को चालू करने को लेकर सीसीएल के पूर्व सीएमडी गोपाल सिंह के कार्यकाल में वर्ष 2019 में शिलान्यास कार्यक्रम भी हुआ था. इसमें डीवीसी के तत्कालीन सेक्रेटरी भी मौजूद थे.

एक मई 2018 को उर्जा मंत्रालय व कोयला मंत्रालय के बीच हुआ था करार

मालूम हो कि डीवीसी बेरमो माइंस डीवीसी की एकमात्र कैप्टिव कोल माइंस है जो करीब सात दशक पुरानी है. दिल्ली में एक मई 2018 को उर्जा मंत्रालय व कोयला मंत्रालय के बीच करार हुआ था, जिसके तहत इस माइंस को कोल इंडिया को देने का निर्णय लिया गया था. बाद में उर्जा मंत्रालय की ओर से इस माइंस को खुद फिर से चलाने की बात कही गयी. लेकिन 13 अक्टूबर 2019 को विधिवत रूप से डीवीसी ने कोल इंडिया की कंपनी सीसीएल को इस माइंस को हस्तांतरित कर दिया. लेकिन चार साल बाद भी सीसीएल ने यहां से उत्पादन शुरू नहीं किया. दिसंबर 2021 में हुई डीवीसी बोर्ड की बैठक में निर्णय लिया गया था कि अब इस माइंस को सीसीएल ही चलायेगी. डीवीसी का कहना था कि माइंस की पूरी प्रोपर्टी डीवीसी की रहेगी, सीसीएल के जिम्मे सिर्फ माइनिंग रहेगी, लेकिन अब पूर्ण रूप से यह माइंस सीसीएल को दे दी जायेगी.

अगस्त 2017 से ठप है कोयला उत्पादन तथा रेजिंग

डीवीसी बेरमो माइंस से कोयला उत्पादन तथा रेजिंग अगस्त 2017 से पूरी तरह ठप है. 2016 से ओबी निस्तारण का कार्य बंद है. माइंस के कोल यार्ड में वर्ष 2017 से वाशरी ग्रेड चार का 60 हजार टन तथा माइंस के फेस में लगभग दो लाख टन कोयला एक्सपोज पड़ा है. माइंस के ऊपर सीम में आठ लाख टन कोयला है. नीचे कारो सीम में लगभग 120 मिलियन टन वाशरी ग्रेड चार का कोल रिजर्व है. डीवीसी ने वर्ष 1951 में इस माइंस को चालू किया था. सोच थी कि डीवीसी के बोकारो थर्मल पावर प्लांट को इसी माइंस से कोयला आपूर्ति की जायेगी. बोकारो थर्मल के पुराने ए प्लांट के बंद होने के पूर्व तक इसी माइंस से रोपवे के माध्यम से कोयला की आपूर्ति की जाती थी.

वर्ष 1951 के पहले रेलवे की थी यह माइंस

वर्ष 1951 के पहले डीवीसी बेरमो माइंस रेलवे की थी और सीसीएल के करगली कोलियरी के अधीन संचालित थी. करगली कोलियरी का तीन हजार एकड़ लीज होल्ड एरिया था. तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसमें से 413 एकड़ जमीन डीवीसी को माइंस चलाने के लिए 35 साल के लिए लीज पर दी थी. 31 दिसंबर 1986 को लीज अवधि खत्म होने के बाद तत्कालीन बिहार सरकार ने डीवीसी को पुन: 30 साल का लीज दिया. यह लीज अवधि 31 दिसंबर 2015 को समाप्त हो गयी. वर्ष 2014 में डीवीसी ने झारखंड सरकार को 20 साल के लिए लीज की मांग को लेकर माइन प्लान तथा इनवायरमेंटल क्लीयरेंस के साथ आवेदन दिया. फिलहाल लीज का मामला लटका है. लेकिन डीवीसी के अधिकारियों के अनुसार भारत सरकार का 2021 का जो गजट आया है उसमें अब किसी भी माइंस के लिए लीज की अवधि 50 साल तक के लिए कर दी गयी है तथा 31 मार्च 2030 तक या फिर इसके बाद भी माइंस चलाने की अनुमति लेने में अब कोई परेशानी नहीं होगी. लेकिन अब इस माइंस को सीसीएल को चलाना है, इसलिए डीवीसी के लिए अब लीज का कोई मामला नहीं रह गया है.

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