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पाटली के पेड़ से नाम पड़ा ‘पाटलीपुत्र’ आज न के बराबर

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जिस पाटली पेड़ की वजह से पटना का नाम पाटलीपुत्र पड़ा आज वही पेड़ लगभग गुमनाम हो गया है. श

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पटनाजिस पाटली पेड़ की वजह से पटना का नाम पाटलीपुत्र पड़ा आज वही पेड़ लगभग गुमनाम हो गया है. शहर के चिड़ियाघर, इको पार्क, राजभवन, सीएम हाउस, पटना संग्रहालय व अन्य जगहों पर कम संख्या में यह पेड़ है. जबकि करीब 2500 साल पहले पूरे पटना में पाटली का पेड़ लहलहता था. इतिहासकार की मानें तो इसकी बहुलता के कारण ही इस क्षेत्र का नाम पहले पाटलीग्राम और फिर पाटलीपुत्र हुआ.

पाटलीग्राम से नाम बदल कर हुआ पाटलीपुत्र

इतिहासकारों की मानें तो अजातशत्रु के समय वैशाली के वज्जियों से लड़ने के लिए पाटलीग्राम में एक नगर दुर्ग का निर्माण करवाया गया. इससे यह एक कस्बे के रूप में स्थापित हुआ और नाम पाटलीग्राम से पाटलीपुत्र में बदल गया. उन दिनों यह एक कस्बे की तरह था और नगरीकरण की शुरुआत ही हुई थी. अजातशत्रु के पुत्र उदायिन ने मगध साम्राज्य में पाटलीपुत्र की केंद्रीय स्थिति को स्वीकार करते हुए राजधानी को राजगृह से पाटलीपुत्र स्थानांतरित किया. इसी के साथ पाटलीपुत्र नगर का तीव्र विकास शुरू हुआ. मध्यकाल में इस शहर का नाम पाटलीपुत्र से बदल कर पटना हो गया. ‘पटना’ शब्द में भी पाटली के शुरुआती दो अक्षरों का समावेश है, जो इस वृक्ष को शहर से जोड़ता है. अब भी पटना को काफी लोग पाटलिपुत्रा के नाम से ही जानते हैं. परंतु, वर्तमान में पाटली का वृक्ष गुमनाम होने के कगार पर है.

पटना जू में कर सकते हैं पाटली का दीदार

शहर के संजय गांधी जैविक उद्यान में कई वर्ष पुराना पाटली का एक विशाल पेड़ अभी भी संरक्षित है. इसका दीदार आम व्यक्ति भी कर सकते हैं. गेट नंबर एक के नजदीक यह पेड़ है. वहीं, जू में इसके कुछ पौधे लगाए गये हैं. विशेषज्ञों की मानें तो आबादी विस्तार और जलावन के रूप में इस्तेमाल के कारण यह विलुप्त हो गया. उड़ीसा के महानदी डेल्टा और सुंदरवन में अब भी पाटली का पेड़ पर्याप्त संख्या में उपलब्ध बताये जाते हैं.

पृथ्वी के पहरेदार के रूप में काम कर रहे निशांत

शहर के निशांत पृथ्वी के पहरेदार के रूप में काम कर रहे हैं. वह पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी टीम के साथ विलुप्त हो रहे पेड़-पौधों की संख्या फिर से बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं. निशांत बताते हैं कि पटना में सिंदूर का पेड़ केवल बीएन कॉलेज व आइजीआइएमएस कैंपस में है. इसके करीब 20 पौधे तैयार कर सार्वजनिक स्थानों पर लगा चुके हैं. हालांकि, अभी भी पांच से दस पौधे रखे हैं. वहीं, पटना में गुमनाम हुए पाटली को पुन: लगलहाने के लिए इस वृक्ष के इर्द-गिर्द घुम कर साल में करीब 50 दाने इक्ठ्ठा कर चुके हैं. इसके पौधे को पर्यावरण दिवस पर लगायेंगे. उन्होंने बताया कि सीकाकाई, रीठा व सीता अशोक के भी करीब 300 पौधे तैयार किये हैं. निशांत ने कहा कि अशोक का असली पेड़ सीता अशोक ही है. इस प्रजाति के पेड़ पटना साइंस कॉलेज, पटना जू व विधानसभा के आसपास है. इसकी जानकारी मुझे ‘गाछगुछ’ किताब से मिली. बाकि, पेड़-पौधों व पक्षियों पर रिसर्च कर रहे हैं. इस दौरान भी जानकारी मिल जाती है. बता दें कि, पृथ्वी दिवस के अवसर पर निशांत व उनकी टीम मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय में सिंदूर के पौधे लगाएंगे.

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