Lok Sabha Election: दर्द उनका जो वोट बैंक नहीं.…लोकसभा चुनाव में कहां और किधर…..? बिहार के ईसाई समुदाय़ के किसी भी सदस्य से यह सवाल करते ही जवाब का लब्बोलुवाब एक ही मिलता है- क्योंकि…….जम्हूरियत में…. ‘बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते’. ऐसे में हम कहां जाएं और कोई हमें क्यों पूछेगा. हमारी आबादी इतनी कम है कि राजनीतिक दल हमसे वोट मांगने के प्रति भी उदासीन रहते हैं. बात सौ फीसदी सच है. आजादी के बाद से बिहार में किसी प्रमुख राजनीतिक दल ने किसी भी ईसाई समुदाय के व्यक्ति को लोकसभा चुनाव तो छोड़ दीजिए, विधानसभा चुनाव में भी उम्मीदवार नहीं बनाया है. जॉर्ज फर्नांडीस की चर्चा इस समुदाय के राजनेता के रूप में भले ही गाहे-बगाहे की जाती है, लेकिन सियासत के जानकार मानते हैं कि वे नास्तिक थे. बिहार में ईसाइयों के प्रति राजनीतिक दलों की उपेक्षा का आलम यह है कि बोर्ड-निगम और आयोगों में भी शायद ही कभी इन्हें अवसर मिल पाता है.
बिहार के ईसाइय़ों को निराशा
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बिहार के 13 करोड़ की आबादी में 0.0576 फीसदी यानी 75,238 की जनसंख्या वाले ईसाई समुदाय को अब यह चुभने लगा है कि बिहार के अंदर लोकतंत्र के किसी भी निर्वाचित निकाय में उनकी आवाज उठाने वाला कोई नहीं होता है. हालांकि, जातीय जनगणना से आए आंकड़ों पर भी इस समुदाय को यकीन नहीं है. इनका दावा है कि बिहार में इनकी तादाद कम से कम ढाई लाख है. माइनॉरिटी क्रिश्चियन एजुकेशन सोसाइटी के सचिव ग्लेन गॉल्स्टोन कहते हैं कि आर्टिकल 334 बी के तहत क्रिश्चियन माइनॉरिटी समुदाय से बिहार विधानसभा में सदस्य के रूप में मनोनयन का प्रावधान होने केे बावजूद अवसर नहीं दिया जाता है. इसके अलावा राज्य के अल्पसंख्यक आयोग में भी ईसाई समुदाय के लोगों को सदस्य नहीं बनाया गया है. इस तरह की राजनीतिक अनदेखी ने बिहार के ईसाइय़ों को निराशा से भर दिया है.
बेतिया में आधी हो गई आबादी, अच्छे दिनों का है इंतजार
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बिहार में बेतिय़ा को ईसाई समुदाय़ का गढ़ माना जाता है. यहां पहले पांच हजार से अधिक ईसाई परिवार रहते थे. अब केवल ढाई हजार परिवार ही य़हां बसते हैं. इनका प्रमुख एजेंडा बेहतर शिक्षा ग्रहण कर अपने बच्चों को सरकारी नौकरियों में शामिल करना है. समुदाय के लोगों का मानना है कि राजनीतिक दलों के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठों में भी मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही तरजीह दी जाती हैं. केआर हाई स्कूल के वरीय शिक्षक जेम्स माइकल कहते हैं कि हमारे समाज में लगभग 95 फीसदी लोग ही पढ़े-लिखे हैं. परंतु राजनीति में अधिकतर मजबूत आर्थिक पक्ष वाले लोग ही जा पाते हैं. हमारे समुदाय के ज्यादातर लोग नौकरी करते हैं, इसे छोड़ने पर उनका घर-परिवार नहीं चल सकता है. हम किसी प्रत्याशी को जिताने-हराने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए राजनीति में हमें तवज्जो नहीं मिलता है. जेम्स कहते हैं कि बिहार भाजपा में बेतिया के प्रतीक एडविन शर्मा, पटना के राजन क्लेमेंट साह तथा कांग्रेस में पटना के सिसिल शाह राजनीति में सक्रिय हैं. लेकिन इन्हें विधानसभा का टिकट तक कभी नहीं मिला है. क्योंकि राजनीतिक दलों को मालूम है कि हमारे पास वोट बैंक का आधार नहीं है.
समुदाय की संख्या बेहद कम
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बेतिया शहर में शिक्षाविद के रूप में अपनी पहचान बना चुके प्रतीक एडविन फिलहाल भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य हैं. उन्हें भाजपा ने बिहार, मणिपुर और केरल का प्रभारी भी बनाया है. प्रतीक बताते हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य में उनके समुदाय की संख्या बेहद कम है, ऐसे में वह राजनीतिक पार्टी की बैठकों में तो दिखते हैं, लेकिन मंचों से गायब रहते हैं. प्रतीक का मानना है कि आने वाले दिनों में बदलाव दिख सकता है. बिहार से भी ईसाई समुदाय की विधानसभा व लोकसभा में भागीदारी देखने को मिल सकती है.
भागलपुर में भी ईसाई समुदाय पार्टियों की प्राथमिकता से बाहर
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भागलपुर लोकसभा सीट के तहत ईसाई मतावलंबियों की संख्या 10 हजार से अधिक है. फिर भी किसी पार्टी या प्रत्याशी की वोट मांगने की प्राथमिकता सूची से ये नदारद हैं. इस समुदाय की समस्याएं जानने की कोशिश भी नहीं हो रही है. भागलपुर में ईसाई समुदाय के बुद्धिजीवी दिलीप कुमार जॉन कहते हैं कि किसी भी पार्टी या प्रत्याशी के एजेंडे में ईसाई समुदाय नहीं है. जॉन कहते हैं कि ईसाई समुदाय के लोग जाति व धर्म से ऊपर उठकर देश की उन्नति के लिए मतदान में विश्वास रखते हैं. इसलिए चाहते हैं कि भागलपुर का अगला सांसद समग्र विकास करने वाला हो.
बोर्ड-आयोग में भी तो कम से कम अवसर मिले
पटना में ईसाई समुदाय की मुखर आवाज और इंटरनेशनल ह्यूमन राइट काउंसिल के जेनरल सेक्रेटरी एसके लॉरेंस कहते हैं कि ईसाई समाज की जरूरत जानने के लिए समुदाय से जुड़े लोगों को भी सियासत और सत्ता में मौका दिया जाना चाहिए. कम से कम पार्टिय़ों के माइनॉरिटी सेल के माध्यम से भी तो ईसाई समुदाय को राजनीति में भागीदारी करने का मौका मिले. बिहार के अल्पसंख्यक आयोग में भी ईसाई समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने की जरूरत है.
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अगुवों का क्या है कहना
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सरकार की ओर से मिलने वाली योजनाओं के लाभ में पारदर्शिता होनी चाहिये. ईसाई समुदाय के लोगों को भी बराबरी का हक मिलना चाहिये. पार्टिय़ों के माइनॉरिटी सेल और विधान परिषद में भी ईसाई लोगों को मेंबर बनाने की जरूरत है, ताकि वे अपने समुदाय से जुड़े लोगों की बात कह सकें.
– सेबेस्टियन कल्लुपुरा, आर्चबिशप, पटना
सभी धर्मों के लोगों को अपने धार्मिक अनुष्ठान में किसी तरह की कोई दिक्कत न हो इसे देखना भी सरकार की जिम्मेदारी है. ईसाई समुदाय द्वारा आयोजित प्रार्थना सभाओं पर लगाये जाने वाले बेबुनियाद आरोप और हिंसा पर भी रोकथाम की आवश्यकता है. दोषी पाये जाने पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.
–पास्कल पीटर ओस्टा, सचिव कैथोलिक काउंसिल ऑफ बिहार
विशेषज्ञ की राय, राजनीतिक दल विकसित करें नेतृत्व
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बिहार के ईसाइयों के लिए चुनाव लड़ना तो अभी दूर की कौड़ी है. राजनीतिक दलों की यह जिम्मेदारी बनती है कि ईसाइयों की सियासी पूछ बढ़े और उनके अंदर भी लीडरशिप क्वालिटी विकसित की जाय. चुनाव के दौर में वंचितों को हक मिलने की बात तो जरूर उठनी चाहिए.
-डॉ. पीके सिन्हा, सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, पीजी समाजशास्त्र, टीएमबीयू
इनपुट- पटना से अंबर, बेतिया से गणेश, भागलपुर से दीपक राव