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बिना शिव पार्वती के विवाह हुए राम कथा का सूत्रपात ही नहीं होता: आचार्य रणधीर ओझा

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नगर के नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में महंत राजाराम शरण दास जी महाराज के मंगलानुशासन में आयोजित नव दिवसीय राम कथा 4 बजे से सायं 7 बजे तक चलेगी.

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बक्सर. नगर के नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में महंत राजाराम शरण दास जी महाराज के मंगलानुशासन में आयोजित नव दिवसीय राम कथा 4 बजे से सायं 7 बजे तक चलेगी. कथा के तीसरे दिन शिव चरित्र का विस्तार करते हुए आचार्य श्री रणधीर ओझा ने कहा कि बिना शिव पार्वती के विवाह हुए राम कथा का सूत्रपात ही नहीं होता है. श्री मानस में भगवती उमा और भगवान शिव श्रद्धा और विश्वास के धनी भूत रूप हैं . श्रद्धा का जन्म होता है किंतु विश्वास का नहीं. श्रद्धा का उदय बुद्धि में होता है पर विश्वास हृदय का सहज स्वभाव है. श्रद्धा पूर्व जन्म में दक्ष पुत्री है. जिनका नाम सती है. एक बार भगवान शिव जगत जननी सती को कैलाश छोड़कर अगस्त (कुंभज) ऋषि के आश्रम पर आए ऋषि अति प्रसन्न हुए शिव पूजा करने के पश्चात ऋषि ने राम कथा सुनाई. जिससे शंकर जी तो सुने लेकिन अहंकार को लेकर कथा सुनने सती जी बैठी थी. इसी से वे सुन नहीं पायी . शंकर जी आनंदित हुए कथा सुनना सार्थक तभी होता है. जब सुनाने के बाद भगवान के दर्शन की अभिलाषा जागृत हो शंकर जी ऋषि से विदा लिए भवानी को लेकर राम दर्शन की इच्छा संजोकर चल दिए रास्ते में ही राम दर्शन हुआ. परंतु सती को राम पर विश्वास नहीं हुआ कि ये भगवान हैं. जबकि भक्ति के मार्ग में विश्वास को बाधक माना जाता है. अविश्वासी को भगवान का दर्शन भी नहीं होता है .सती भगवान राम की परीक्षा लेती है स्वयं परीक्षक बनती है लेकिन परीक्षक ही फेल हो जाता है.आचार्य श्री ने कथा को आगे बढ़ते हुए कहा कि ईश्वर जिज्ञासा का विषय हो सकता है परीक्षा का नहीं सती ने उसे परीक्षा का विषय बनाना चाहा. भगवान शंकर जब जान गये कि मेरी पत्नी सती सीता का रूप धारण की थी तो भगवान शंकर ने मन में ही संकल्प किया कि इस तन से सती के साथ गृहस्थ आश्रम का संबंध नहीं रहेगा. इसलिए इस प्रसंग के माध्यम से हमें सीख लेनी चाहिए कि गुरु , संतों , माता पिता एवं ईश्वर की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए.

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