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Bihar Special : बिहार के इन पांच जिलों के खास हैं ‘आम’, भागलपुर के जर्दालु को मिल चुका है जीआइ टैग

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आम को फलों का राजा कहा जाता है. यह भारत का राष्ट्रीय फल भी है. स्वाद के मामले में आम होते बेहद खास हैं. देशभर में आम की हजारों किस्म उपलब्ध हैं. इनमें से कुछ किस्म ऐसे हैं, जिनका जुड़ाव बिहार से है.

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Bihar Special : बिहार के कृषि विभाग के मुताबिक, बिहार में मुख्यतया 12 किस्मों के आम की उपज होती है. इसमें कुछ आम तो अलग-अलग जिलों की पहचान बन चुके हैं. जैसे लीची की उपज होती तो लगभग पूरे उत्तर बिहार में है, लेकिन मुजफ्फरपुर की पहचान वहां की शाही लीची से है. इसी तरह बिहार के 5 प्रमुख किस्म के आम के बारे में जानिए जो दिलाते हैं बिहार के पांच जिलों को पहचान.

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भागलपुर के जर्दालु को जीआइ टैग

बिहार के भागलपुर जिले का प्रसिद्ध ‘जर्दालु आम’ अपनी अनोखी खुशबू के कारण देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है. आम की इस किस्म को हल्के पीले छिलके और मिठास के लिए जाना जाता है. पकने पर इसके पीला होने की वजह से ही इस आम का नाम जर्दालु पड़ा है. ऐसा कहा जाता है कि इस आम को सबसे पहले खड़गपुर के महाराजा रहमत अली खान ने भागलपुर क्षेत्र में लाकर लगाया था. वर्ष 2018 में भागलपुर के जर्दालु को भौगोलिक संकेतक (जीआइ) टैग प्रदान किया गया. भागलपुर जिले के सुल्तानगंज, नवगछिया सहित इसके आस-पास के क्षेत्रों में इस आम के बगीचे बड़े पैमाने पर हैं. इसकी गुठली काफी पतली होती है और गूदे में रेशा न के बराबर होता है. पश्चिम चंपारण के इलाके में होने वाला ‘जर्दा’ आम भी कमोबेश जर्दालु की तरह होता है. इसका नाम जर्दा भी पकने पर होने वाले इसके पीले रंग की वजह से पड़ा है.

सीतामढ़ी की बंबइया आम है खास

सीतामढ़ी व आसपास के क्षेत्र की बंबइया आम पूरे देश में प्रसिद्ध है. बड़े पैमाने पर इसे देश के अल-अलग हिस्सों में भेजा जाता है. लंगड़ा या मालदा के मुकाबले यह जल्दी पकने वाली किस्म है. आमतौर पर जून महीने में यह पकने लगती है. बंबइया के पकने पर डंठल के निकट का रंग थोड़ा पीला पड़ जाता है. वहीं, आम का बाकी भाग हरा ही रहता है. इस किस्म के आम की उपज अधिक होती है. हालांकि इसके फल का आकार में मध्यम (150-200 ग्राम तक) साइज का होता है. इसके गूदा भी बिना रेशे के होता है. यह मध्यम मिठास वाला आम होता है. इसकी सुगंध जरूर तीव्र होती है.

सुपौल का प्रसिद्ध गुलाबखास आम

इसके नाम में पहले से ही खास जुड़ा हुआ है. इससे ही आप इस आम के स्वाद का अंदाजा लगा सकते हैं. यह बिहार में होने वाले आम के प्रमुख किस्मों में से एक है. खासकर सुपौल व आसपास के इलाके में यह फल खूब होता है. इसके छिलके के एक हिस्से पर हल्की गुलाबी आभा होती है, यही वजह है कि इसका नाम गुलाबखास होता है. इसका फल आकार में जरूर छोटा होता है, उस अनुपात में इसकी गुठली भी छोटी होती है. यह आम भी अपने सुगंध के लिए जानी जाती है. पूरी तरह पकने पर यह खाने में बेहद मीठी लगती है.

बक्सर की पहचान बन गया है चौसा

इस आम के नाम रखे जाने की कहानी बेहद दिलचस्प है. दरअसल, बक्सर जिले में स्थित चौसा गांव में ही शेरशाह सूरी ने हुमायू को युद्ध में हरा दिया था. इस जीत की खुशी में शेरशाह सूरी ने अपनी पसंदीदा आम का नाम ही चौसा रख दिया. इस तरह यह चौसा आम और बक्सर एक-दूसरे से ऐसे जुड़े कि इस आम से बक्सर की पहचान जुड़ गयी. स्वाद के मामले में भी यह अन्य किस्म के आमों की अपेक्षा थोड़ा अलग होता है. यह देर से पकने वाली आम की एक किस्म है. इस आम के छिलके पीले होते हैं. साथ ही फल का आकार काफी बड़ा होता है. यह आम बाजार में जुलाई महीने के अंत-अंत तक आता है.

समस्तीपुर का बथुआ आम है प्रसिद्ध

वैशाली व समस्तीपुर के आसपास के क्षेत्रों में आम की इस किस्म के बगीचे बहुतायत में पाये जाते हैं. इस आम को कंचन मालदा आम के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल, आम की यह किस्म पकने पर सुनहले रंग की हो जाती है. इन आमों के अलावा दरभंगा की कलकतिया, मधुबनी की कृष्णा भोग आम, मधेपुरा व कटिहार की मालदा, मुंगेर की चुरंबा मालदा, पटना की दुधिया मालदा आम बिहार के आमों की प्रसिद्ध किस्में हैं.

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