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14 को अस्ताचलगामी व 15 को उदीयमान सूर्य को पड़ेगा अर्घ्य

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Arghya will be offered to the setting sun on 14th

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पूर्णिया. नहाय-खाय के साथ 12 अप्रैल से चैती छठ की शुरुआत होगी. 13 अप्रैल को खरना पूजन होगा. 14 अप्रैल को अस्ताचलगामी और 15 अप्रैल को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने के बाद व्रती पारण करेंगे. छठ हिन्दुओं के महान पर्वों में से एक है जिसमें व्रती के अलावा घर के सभी सदस्य श्रद्धा व भाव से भगवान सूर्य की उपासना करते हैं. घर में पवित्र तरीके से प्रसाद के लिए ठेकुआ बनाया जाता है. साथ ही फलों व मिष्ठानों को बांस से बने डाला में सजा कर कृत्रिम छठ घाटों या नदी-तालाबों पर सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करते हैं. इस पर्व की धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्ता भी है. खासकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश जुड़ा है. पंडित सूरज भारद्वाज बताते हैं कि चैती छठ को बदलते मौसम का त्योहार भी कहा जाता है जिसमें ठंड के मौसम से एकाएक गर्मी में प्रवेश करते हैं. इस कारण खान-पान व दिनचर्या को संतुलित रखने की सीख देती है. आयुर्वेद के अनुसार भी चैती छठ का विशेष महत्व बताया गया है. खानपान का असर सीधे शरीर के साथ मन और आत्मा की शुद्धिकरण से जुड़ा होता है. शहर के रामबाग चौक स्थित पंडित सूरज भारद्वाज बताते हैं कि सनातन धर्म में सूर्य उपासना का विशेष महत्व है. सूर्य उपासना करने से शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है. साथ ही कुंडली में सूर्य मजबूत होता है कुंडली में सूर्य मजबूत होने से करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है. कालांतर से भगवान सूर्यनारायण की विधि-विधान से पूजा की जाती है. सूर्य उपासना के लिए बिहार में वैदिक काल से लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की जाती है. चार दिवसीय पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के दिन से होती है. इस दिन व्रती स्नान-ध्यान कर सूर्य उपासना करती हैं. सूर्य की पूजा के बाद भोजन ग्रहण करती हैं. इसमें चावल, दाल और लौकी की सब्जी खाई जाती है. नहाय-खाय के दिन पूजा करने से व्रती के सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है. खरना पूजन: इस दिन व्रती पवित्र तरीके से दूध व चावल का खीर बनाती हैं. इसके पूजा बाद केला के पत्ता पर खीर व घी लगी रोटी, केला व फलों का भोग लगा कर करती हैं. इसके बाद घर सभी सदस्य एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं. इतना ही नहीं, महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगा कर शुभकामना देतीं हैं. पहले दिन शाम में नदी-तालाब या कृत्रिम छठ घाटों पर व्रती संध्या में भगवान भास्कर को डाला में ठेकुआ, केला, नींबू समेत मेवा-मिष्ठानों के साथ अर्घ्य प्रदान करती हैं. रात भर जागकर छठ गीतों के जरिए इस पर्व का गुणगान करती हैं और दूसरे दिन सुबह व्रती सुबह में बांस या पीतल से बने डाला में विभिन्न तरह के पकवानों व फलों के साथ उगते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करती हैं. इसके बाद छठ घाट पर ही महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं देती हैं. इसके बाद पारण के साथ व्रत संपन्न होता है.

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