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LOk Sabha Election 2024 : बर्दवान पूर्व में तृणमूल से महिला डॉक्टर व भाजपा से लोक कलाकार ठोकेंगे ताल

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LOk Sabha Election 2024 : वर्ष 2009 में बर्दवान पूर्व लोकसभा सीट अस्तित्व में आयी. पहली बार माकपा ने यहां से जीत दर्ज की. जबकि दो बार तृणमूल कांग्रेस ने यहां से लगातार जीतती रही है. दो बार के सांसद रहे सुनील मंडल को इस बार तृणमूल ने टिकट नहीं दिया. एक बार वह भाजपा में शामिल हो गए थे.

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पूर्व बर्दवान, मुकेश तिवारी : पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्दवान जिले के बर्दवान पूर्व लोकसभा सीट (Lok sabha seat) पर से इस बार तृणमूल कांग्रेस ने वर्तमान सांसद सुनील कुमार मंडल का टिकट काट दिया. तृणमूल कांग्रेस ने नया चेहरा के रूप में डॉक्टर शर्मिला सरकार को अपना उम्मीदवार बनाया है. शर्मिला सरकार कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. वह जिले के कटवा शहर की रहनेवाली हैं. माकपा ने इस बार इस सीट से नीरव खां को उतारा है. नीरव भी नया चेहरा है. वहीं भाजपा ने लोक गायक तथा हरिणघाटा के भाजपा विधायक असीम कुमार सरकार को उम्मीदवार घोषित किया है.

सुनील कुमार मंडल भाजपा में शामिल हुए फिर तृणमूल की वापसी


बता दें कि सांसद सुनील कुमार मंडल भाजपा में शामिल हो गए थे. बाद में वह तृणमूल कांग्रेस में लौट आए थे. इसे लेकर पार्टी के भीतर सुनील कुमार मंडल के खिलाफ गुस्सा था. इसलिए पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. इस बार भाजपा पुरजोर कोशिश कर तृणमूल कांग्रेस के हैट्रिक के पहिए को रोकने में लगा देंगी. वर्ष 2019 में हुए चुनाव में सुनील कुमार मंडल को 44.52 फीसदी वोट मिला था. तृणमूल के वोट में 1.02 फीसदी का इजाफा देखने को मिला था. लेकिन भाजपा उम्मीदवार परेश चंद्र पाल भले ही दूसरे स्थान पर रहे, लेकिन भाजपा का वोट काफी बढ़ गया. भाजपा को यहां 38.32 फीसदी वोट मिला.

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भाजपा के वोट में 25.39 फीसदी की देखी गयी बढ़ोत्तरी
भाजपा के वोट में 25.39 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखी गयी. माकपा के ईश्वर चंद्र दास को 12.22 फीसदी वोट मिला था. चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के सुनील कुमार मंडल ने करीब 89311 वोट के अंतर से जीत दर्ज की थी. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से तृणमूल कांग्रेस के ही सांसद सुनील कुमार मंडल ने माकपा के ईश्वर चंद्र दास को करीब 114479 वोट के अंतर से हराया था. भाजपा उम्मीदवार संतोष राय तीसरे स्थान पर रहे थे. उन्हें 12.39 फीसदी वोट मिल पाया था.

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परिसीमन के बाद 2009 में यह सीट अस्तित्व में आया

माकपा को 34.83 फीसदी व तृणमूल को 43.50 फीसदी वोट मिला था. वर्ष 2009 का आंकड़ा देखा जाए तो माकपा के अनूप कुमार साहा ने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार अशोक विश्वास को 59419 वोट के अंतर से हराकर जीत दर्ज की थी. माकपा को 47.31 फीसदी वोट मिला, वहीं तृणमूल को 42.02 फीसदी वोट मिला था. भाजपा तीसरे स्थान पर रही थी. उसे 6.37 फीसदी वोट से ही संतोष करना पड़ा था. परिसीमन के बाद 2009 में यह सीट अस्तित्व में आया. पहले माकपा, फिर तृणमूल कांग्रेस ने यहां अपनी ताकत का एहसास कराया. लेकिन भाजपा भी पीछे नहीं रही. भाजपा ने पिछले चुनाव में अपनी ताकत दिखायी है. इस सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है.

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वाम-कांग्रेस गठबंधन से त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद

भले ही सीटों को लेकर कांग्रेस व वाम में खुल कर समझौता नहीं हुआ है, लेकिन देखा जा रहा है कि उत्तर कोलकाता में कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप भट्टाचार्य के जुलूस में वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस शामिल हुए थे. मुर्शिदाबाद व बीरभूम में भी कांग्रेस व वाम एक साथ प्रचार कर रहे हैं. बर्दवान-दुर्गापुर संसदीय सीट पर माकपा के साथ अभी तक कांग्रेस को नहीं देखा गया, लेकिन बर्दवान पूर्व में देर से ही सही, वाम व कांग्रेस ने एक साथ प्रचार करने पर सहमत हुए. जिला कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि माकपा जिला सचिव का फोन मिला है. वह साथ-साथ प्रचार करने की बात कही है. जिला सचिव सैयद हुसैन ने कहा कि कई सीटों पर कांग्रेस व वाममोर्चा मिल कर काम कर रहा है. यहां भी कोई समस्या नहीं है.

विधानसभा स्तर पर संयुक्त कमेटी का किया गया गठन

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं को मिल कर काम करने की बात कही है. उन्होंने कहा कि जिन सीटों पर सहमति बनी है, वहां वाम के साथ मिल कर काम करने का निर्देश दिया है. इसका पालन नहीं करने पर पार्टी कार्रवाई करेगी. विधानसभा स्तर पर संयुक्त कमेटी का गठन भी किया गया है. माकपा उम्मीदवार नीरव खां ने कहा कि वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं से अनुरोध करते हैं कि हमलोग यहां मिल कर प्रचार करेंगे. एक साथ मिल कर लड़ाई करेंगे तो रिजल्ट बेहतर होगा. वहीं तृणमूल व भाजपा अपने दम पर चुनावी मैदान में हैं. तृणमूल ने महिला डॉक्टर पर भरोसा जताया है, वहीं भाजपा ने एक लोक कलाकार को लाकर चुनौती दी है. कांग्रेस व वाममोर्चा के साथ आने पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबले की यहां उम्मीद की जा रही है.

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सेनबाड़ी हत्याकांड से हिल गया था देश, बर्दवान आना पड़ा था इंदिरा गांधी को


17 मार्च 1970 को पश्चिम बंगाल के बर्दवान में हुए सेनबाड़ी हत्याकांड ने देश को हिला दिया था. यहां तीन लोगों की हत्या कर दी गयी थी और उनके खून को उनकी मां को चावल के साथ खाने के लिए मजबूर किया था. इसे भारत की कुख्यात हत्या की घटनाओं में से एक माना जाता है. सैन बंधु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रति गहरी निष्ठा रखने वाले परिवार के सदस्य थे. परिवार के सबसे बड़े बेटे नवकुमार सेन को कथित तौर पर अंधा कर दिया गया और उसकी आंखें निकाल ली गयीं, जबकि उसके छोटे भाइयों मलय और प्रणब को कथित तौर पर अपराधियों ने परिवार के सदस्यों के सामने ही मौत के घाट उतार दिया. एक साल बाद नवकुमार की भी हत्या कर दी गयी. बताया जा रहा है कि इस घटना को सीपीआइ (एम) के सदस्यों ने अंजाम दिया था, क्योंकि परिवार का कांग्रेस के प्रति समर्थन था.

सेन परिवार पर टूटा था कहर, तीन लोगों की हुई थी नृशंस हत्या,


परिवार में बच्चों को पढ़ाने आये एक निजी शिक्षक जीतेंद्रनाथ राय की भी हत्या कर दी गयी. बाद में सेन भाइयों की मां को अपने बेटों के खून से सना चावल खाने के लिए मजबूर किया गया था. इस परिवार की बहुओं में से एक रेखा रानी ने मीडिया में साक्षात्कार के दौरान घटना की भयावहता के बारे में बताया था. उन्होंने कहा था, “ मेरे बहनोई प्रणब कुमार सेन और मलय कुमार सेन और बच्चों को पढ़ाने आये एक निजी शिक्षक जितेंद्रनाथ राय को मेरी आंखों के सामने काट दिया गया. मैं 26 साल की थी. यह सब सुबह 7.30 बजे शुरू हुआ. लोग देखते रह गये. बाद में उन्होंने हमारे घर पर पथराव किया और आग लगा दी. मेरी सास मृगनयना देवी ने हमलावरों को रोकने की कोशिश की, लेकिन उनके सिर पर वार किया गया. दो हमलावरों ने प्रणब और मलय के खून को चावल के साथ मिलाया और उनके मुंह में डाल दिया. उन्हें अस्पताल ले जाया गया. वह बच गयीं.

मां को खिलाया गया था बेटों के खून से सना चावल

सेन परिवार की बेटी स्वर्णलता जोश ने भी उस दिन का भयावह मंजर देखा था. यह हमला स्वर्णलता के एक महीने के बेटे अमृत कुमार के षष्ठी अनुष्ठान के दिन हुआ. हमलावर नवजात शिशु को भी आग में फेंकना चाहते थे. लेकिन स्थानीय लोगों की मदद से नवजात को बचा लिया गया. बता दें कि घटना के बाद देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शोक संतप्त लोगों को सांत्वना देने के लिए बर्दवान शहर के मध्य में स्थित उनके घर का दौरा किया था. जब तृणमूल सरकार ने 2011 में घटना की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया, तो बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उसे प्रतिशोध की राजनीति करार दिया था.

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बर्दवान स्टेशन का नाम महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त करने पर हुई थी सियासत

केंद्र सरकार द्वारा बर्दवान रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त किये जाने के निर्णय के बाद सियासत गर्म हो उठी थी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के इस निर्णय पर नाराजगी जाहिर करते हुए इस असंवैधानिक करार दिया था. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार को अंधेरे में रखकर स्टेशन का नाम बदलने का निर्णय लिया गया. वर्ष 2019 में 20 जुलाई को महान स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की 54वीं पुण्यतिथि पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय पटना के जक्कनपुर गांव में उनके परिवार से मिलने पहुंचे थे. इस मौके पर उन्होंने बर्दवान रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बंगाल के महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के नाम पर रखने का एलान किया था. बटुकेश्वर दत्त का बर्दवान से नाता रहा था. लेकिन वह बाद में बिहार में बस गये थे. भगत सिंह के साथ आठ अप्रैल 1929 को नेशनल असेंबली में बम फोड़ कर पर्चे बांटे. उन्हें गिरफ्तार किया गया. भगत सिंह को फांसी दी गयी तो बटुकेश्वर को उम्रकैद मिली और उन्हें अंडमान-निकोबार स्थित जेल भेज दिया गया. वे 1945 में रिहा हुए और पटना में बस गये.

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चुनावी एजेंडा : वाममोर्चा सरकार ने की थी 8,000 करोड़ की परियोजना की घोषणा

प्रस्तावित 8,000 करोड़ रुपये की 1,320 मेगावाट की कटवा थर्मल पावर परियोजना की परिकल्पना वामपंथी सरकार ने की थी. परियोजना ने कुछ प्रगति की और 2010 में एनटीपीसी ने कटवा परियोजना से उत्पादित बिजली बेचने के लिए पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्यों के साथ बिजली खरीद समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. एक साल बाद 2011 में तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आयी. भूमि अधिग्रहण के डर से परियोजना फरवरी 2014 तक अटकी रही. पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रस्तावित संयंत्र के लिए और 96 एकड़ (38.8 हेक्टेयर) जमीन आवंटित की. छह साल से अधिक समय बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई है और थर्मल पावर प्लांट अब तक नहीं बन पाया है. जमीन देनेवाले को मुआवजे की राशि मिली. लेकिन अधिकतर लोग इस परियोजना का इंतजार कर रहे हैं. इससे लोगों को रोजगार का अवसर मिलता.

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बालू खनन का मुद्दा भी अहम

बर्दवान मूल रूप से ग्रामीण क्षेत्र है. यहां बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. सुगंधित गोबिंद भोग चावल की यहां काफी पैदावार हती है. इसे जीआई टैग भी मिल चुका है. दक्षिण दामोदर के इस क्षेत्र में चावल, प्याज के अलावा जूट की खेती भी होती है. तांत की साड़ियां का भी बड़ा कारोबार है. तांत कुटीर उद्योग को भी जीआई टैग मिल चुका है.
यहां के तांत कारीगर को राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है. आजादी की जंग के दौरान कटवा सुभाष आश्रम भी क्रांतिकारियों का बड़ा गुप्त ठिकाना था. स्वय नेताजी सुभाष चंद्र बोस यहां के क्रांतिकारियों को प्रेरित और उत्साहित करने के लिए कटवा आए थे. धार्मिक रूप से भी यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है. यहां कई प्राचीन मंदिर हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करता है. लेकिन इस सबके बीच यहां की अजय व दामोदर नदी से अवैध बालू खनन का आरोप भी लगता रहा है. इस बार चुनाव में बालू खनन का मुद्दा विरोधियों के लिए अहम है. इस मुद्दे पर सत्ताधारी को घेरने की तैयारी की गयी है.

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मतुआ समुदाय के वोट बैंक पर भाजपा की नजर

भाजपा ने बर्दवान पूर्व लोकसभा क्षेत्र से हरिणघाटा के विधायक असीम सरकार को अपना उम्मीदवार बनाया है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा ने काफी सोच-विचार करने के बाद ही असीम को यहां से चुनावी मैदान में उतारा है. हाल में देश में सीएए लागू हुआ है. लेकिन दिन बीतने के साथ-साथ मतुआ समुदाय में इसके प्रति उत्साह कम होते जा रहा है. मतुआ वोटबैंक पर कब्जा बनाये रखने के लिए ही भाजपा ने असीम को आगे किया है. जानकारों का कहना है कि बर्दवान पूर्व लोकसभा क्षेत्र में 20 प्रतिशत से अधिक मतुआ वोट है. भाजपा उम्मीदवार भी मतुआ समुदाय से आते हैं. कालना विधानसभा इलाके में भी उनकी अच्छी पकड़ है. वह पहले पगला बाबा आश्रम में आते-जाते थे. साथ ही वह मेमारी विधानसक्षा क्षेत्र में एक कलाकार के रूप में उनका सुनाम है. सूत्रों के अनुसार, असीम सरकार मतुआ समुदाय में काफी लोकप्रिय हैं. मेमारी के पारिजात नगर, महेशडांगा कैंप, पाला कैंप, उदयपल्ली, कालना में वह काफी चर्चित हैं.

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24वें जैन तीर्थंकर महावीर के नाम पर हुआ शहर का नामकरण


बर्दवान नाम संस्कृत शब्द वर्धमान का अंग्रेजी रूप है. नाम का पहला अभिलेखीय संदर्भ 6वें में मिलता है. शताब्दी ई. का ताम्रपत्र गलसी पुलिस स्टेशन के मल्लसारूल गांव में मिला है .बर्द्धमान नाम की उत्पत्ति के बारे में दो मत हैं. बर्दवान जिसे बर्दवान राज के नाम से भी जाना जाता है, एक जमींदार की संपत्ति थी जो लगभग 1657 से 1955 तक भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में फली-फूली. 2017 को बर्दवान जिले को दो जिलों पूर्व बर्दवान और पश्चिम बर्दवान में विभाजित किया गया था. वर्ष 2008 के परिसीमन के बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के पूर्व बर्दवान पूर्व और बर्दवान दुर्गापुर नाम से दो संसदीय सीट बनी.

दामोदर नदी के किनारे बसे बर्दवान जिले का गौरवशाली पौराणिक इतिहास

अजय और दामोदर नदी के किनारे बसे बर्दवान जिले का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है. गुप्त काल एवं सेन युग के साक्ष्य बर्दवान में मिलते हैं. 24वें जैन तीर्थंकर महावीर के नाम पर बर्धमान (बर्दवान) का नाम रखा गया है. पार्श्वनाथ की पहाड़ियां जैनों का एक महत्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र है. बर्दवान में स्थित 108 शिव मंदिर काफी प्रसिद्ध है. यहां एक साथ बने 108 मंदिर में 108 शिवलिंग स्थापित हैं. बर्दवान कनकेश्वरी काली मंदिर, सर्व मंगला मंदिर, दामोदर रिवर साइड , द-डियर पार्क, कृष्णा सायर पार्क साइंस पार्क ,मेघनाथ साहा तारा मंडल यहां के महत्वपूर्ण स्थल हैं. इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि मुगल काल में बर्दवान का नाम शरीफाबाद हुआ करता था. बर्दवान में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है. इसलिए इस जिले को धान का कटोरा भी कहा जाता है.

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विधानसभा क्षेत्र विधायक पार्टी

  • मेमारी तृणमूल कांग्रेस मधुसूदन भट्टाचार्य
  • कालना (एससी) तृणमूल कांग्रेस देव प्रसाद बाग
  • रायना (एससी) तृणमूल कांग्रेस शंपा धारा
  • पूर्वस्थली उत्तर तृणमूल कांग्रेस तपन चटर्जी
  • जमालपुर (एससी) तृणमूल कांग्रेस आलोक कुमार मांझी
  • पूर्वस्थली दक्षिण तृणमूल कांग्रेस स्वपन देवनाथ
  • कटवा तृणमूल कांग्रेस रवींद्र नाथ चटर्जी

मतदाताओं के आंकड़े

  • कुल मतदाता 1696528
  • पुरुष मतदाता 868090
  • महिला मतदाता 828393
  • थर्ड जेंडर 000045

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