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Exclusive: दिशोम गुरु की पत्नी रूपी सोरेन बोलीं, बाबा ने दिए पैसे, तब जेल से छुड़वा कर लाये थे शिबू सोरेन को

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पहली बार संघर्ष की ऐसी कुछ अनकही कहानियों-घटनाओं का शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन (जिन्हें झारखंड के लोग माताजी या चाची कहते हैं) ने खुलासा किया है. यह बातचीत एक मई, 2023 को गुरुजी के रांची स्थित आवास पर हुई थी.

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रांची : शिबू सोरेन यानी गुरुजी झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी जननेता हैं. 11 जनवरी को वे 80 साल के हो जायेंगे. झारखंड अलग राज्य बनाने और महाजनी प्रथा खत्म करने में उनका बड़ा योगदान है. उन्होंने जंगलों और पारसनाथ की पहाड़ियों में रह कर भी महाजनों के खिलाफ संघर्ष किया, अलग राज्य की लड़ाई लड़ी. जमीनी नेता हैं. उनके संघर्ष की कहानी का कुछ हिस्सा मीडिया में आता रहा है, लेकिन कुछ ऐसी जानकारियां हैं, जो आज तक सामने नहीं आयी हैं. पहली बार संघर्ष की ऐसी कुछ अनकही कहानियों-घटनाओं का शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन (जिन्हें झारखंड के लोग माताजी या चाची कहते हैं) ने खुलासा किया है. यह बातचीत एक मई, 2023 को गुरुजी के रांची स्थित आवास पर हुई थी.

इस बातचीत से पता चलता है कि शिबू सोरेन की सफलता में, उनके संघर्ष में शादी के ठीक बाद से ही रुपी सोरेन का कितना बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने न सिर्फ बच्चों को पाला, बल्कि खेत पर कब्जा करने आये महाजनों को पीट कर भगाया भी, गुरुजी को रिहा कराया. पढ़िए रूपी सोरेन (माताजी) से हुई अनुज कुमार सिन्हा की विशेष बातचीत का अंश.

सवाल : गुरुजी आंदोलन में थे. शादी के तुरंत बाद आपको किस परिस्थिति का सामना करना पड़ा था?

जवाब : बहुत पुरानी बात है. मेरी शादी के कुछ समय बाद ही गुरुजी को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में बंद कर दिया गया था. हम अकेले पड़ गये थे. हम चाह कर भी अपने पति यानी गुरुजी को जेल से रिहा नहीं करवा पा रहे थे. कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. कहीं से कोई सहयोग नहीं मिल रहा था. हम बेहद तकलीफ में थे. सोचती थी कि कैसे गुरुजी को रिहा करायें.

सवाल : तब आपने क्या किया, कैसे रिहा हुए गुरुजी?

जवाब : गुरुजी हजारीबाग जेल में बंद थे. उन्हें जेल से निकलवाने का मेरे अलावा कोई भी प्रयास नहीं कर रहा था. हम सोच रहे थे कि कैसे हम अकेले यहां गांव में रहेंगे. कुछ समय पहले ही शादी हुई थी. किसी बच्चे का जन्म भी नहीं हुआ था. मेरे पास पैसा भी नहीं था कि गुरुजी को रिहा कराने के लिए कोई उपाय करें. मेरा मायके चांडिल है. हम गांव के ही एक आदमी के पास गये और कहा कि आपका बेटा जेल में है. उसे छुड़वाना है. हमको या तो कुछ पैसा उधार दीजिए या चांडिल का टिकट कटवा दीजिए. उन्होंने साथ दिया और मुझे बाबा (अपने पिताजी) के पास चांडिल भेजने की व्यवस्था की.

सवाल : तो गुरुजी फिर कैसे रिहा हुए?

जवाब : हम अपने बाबा से बोले, आपका दामाद हजारीबाग जेल में बंद है. हम कैसे रहेंगे? किसी तरह उन्हें जेल से बाहर निकलवा दीजिए. बाबा ने कहा-पैसे की व्यवस्था करने में थोड़ा समय लगेगा. बाबा ने पैसा की व्यवस्था की. हम सभी बाबा के साथ हजारीबाग गये और गुरुजी को जेल से छुड़वा कर नेमरा लाये. गुुरुजी जब जेल से बाहर आये, तो उनकी स्थिति बहुत खराब दी. नेमरा में देखभाल कर उनको ठीक किया. उस घटना को याद कर आज भी मन कांप उठता है.

सवाल : नेमरा में महाजनों ने आपको भी परेशान किया था. क्या घटना थी और आपने कैसे उससे निबटा था?

जवाब : हां, हमको भी तंग करने का प्रयास किया था. गुरुजी तब जेल में बंद थे. एक दिन एक महाजन बिष्टु साव कुछ लोगों को लेकर आया और जबरन हमारा खेत जोतने लगा. हम मना किये तो नहीं माना. हम गुस्से में थे और धान काटने वाले हसुआ लेकर उसे दौड़ाये. वह भागने लगा. उसका कपड़ा फाड़ दिये और पकड़ लिये. फिर आवाज लगा कर अपनी ननद (गुरुजी की बहन) को कहा, मइंया, जरा आओ तो. इसका बाल काट कर टकला करना है. ननद आ गयी. हम दोनों ने उसे पीटा. फिर वह महाजन भाग गया. उसके बाद दुबारा जमीन जोतने का प्रयास नहीं किया.

सवाल : परिवार में और लोगों ने क्या महाजन का विरोध नहीं किया था?

जवाब : चाचा थे. कहने लगे कि बहू ये ताकतवर लोग है. इससे मत उलझो. तब हमने चाचा को भी कहा कि आपकी जमीन जोत रहा है, कब्जा कर रहा है और आप उसे ही बचा रहे हैं. आप किनारे हो जाइए. हम इससे निबट लेंगे.

सवाल : जब गुरुजी फरारी में थे. पुलिस ने उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश दिया था, तब क्या वे अपना गांव नेमरा आते थे?

जवाब : फरारी के समय गुरुजी नेमरा कभी-कभी ही आते थे. वे घर का हालचाल लेने के लिए अपने साथियों को भेजा करते थे. कई बार गुरुजी ने बसंत पाठक को नेमरा भेजा था. उससे गुरुजी को बच्चों और परिवार के बारे में जानकारी मिल जाती थी. पुलिस से बचते हुए परिवार से मिलने आते थे. वेश भी बदल लेते थे. एक बार गांव में ही गुरुजी का सामना पुलिस से हो गया था. पुलिस गुरुजी को पहचानती नहीं थी. गुरुजी से ही पूछा था कि शिबू सोरेन को इधर देखा है क्या?

सवाल : आंदोलन के दौरान क्या पुलिस आपको या आपके परिवार को तंग भी करती थी?

जवाब : 1970 के आसपास पुलिस ज्यादा आती थी. तंग भी करती थी. एक बार जब पुलिस आयी तो बहुत सवाल करने लगी, तो हम चिल्ला कर बोले-ये शिबू सोरेन का घर नहीं है, रूपी सोरेन का घर है. शिबू सोरेन इधर नहीं आते. जहां होंगे, वहां जाकर खोजिए.

सवाल : कोई यादगार घटना?

जवाब : जब गुरुजी फरारी में थे. टुंडी के आसपास और जंगल-पहाड़ उनका ठिकाना था. लेकिन उनका कुछ पता नहीं चल रहा था. मन बहुत घबरा गया था. तब हम और मेरी ननद ने तय किया कि खुद जंगल में जाकर गुरुजी के बारे में पता करते हैं. हम, मेरी मां (सास) और ननद तीनों जंगल में गुरुजी को खोजने गये थे. गोदी में दुर्गा था. तब हम सभी को बहुत भटकना पड़ा था. वह हमारे परिवार के लिए बड़ी कठिन समय था. मेरे कठिन दौर में मेरी ननद (गुरुजी की बहन) हमेशा मेरे साथ रहती थी.

सवाल : गुरुजी आंदोलन में थे, बच्चों को कैसे पाला?

जवाब : गुरुजी आंदोलन करते थे. महीनों गायब रहते थे. तब हम घर संभालते थे. बच्चों को पालते थे. कभी नेमरा तो कभी अपने मायके चांडिल में रहते थे. वह संघर्ष का दिन था. धीरे-धीरे आदत बन गयी. जब गुरुजी जंगलों से बाहर आ गये और खुल कर झारखंड आंदोलन में जुट गये, तब परेशानी कम होती गयी. उसके बाद तो कार्यकर्ताओं का पूरा सहयोग मिलता था.

सवाल : वेे कौन-कौन थे जिनका आपको संघर्ष के दौरान सहयोग मिला था?

जवाब : एक ज्ञानरंजन थे, जो बराबर आते थे. सहयोग करते थे. साइमन मरांडी का भी बराबर सहयोग मिला था. विश्वासी लोगों में धान सिंह मुंडारी का नाम याद आता है. हमको राजनीति से मतलब नहीं था. ज्ञानरंजन कांग्रेस में थे, लेकिन हम पार्टी पर नहीं जाते थे.

सवाल : जब झारखंड बना तो कैसा लगा?

जवाब : बहुत अच्छा लगा. सपना पूरा हुआ था.

सवाल : गुरुजी की निजी पसंद की जानकारी दीजिए?

जवाब : गुरुजी सहज हैं. जमीन से जुड़े हैं. पेड़ पौधों, खेती-बारी, पशु-पक्षी के बीच ज्यादा अच्छा महसूस करते हैं. नशा नहीं करते. कभी शराब नहीं पी. मांस-मछली नहीं खाते. साग-सब्जी और सामान्य खाना ज्यादा पसंद करते हैं. पुराना संबंध निभाते हैं. कोई पुराना परिचित मिल जाये, परेशानी में हो तो बिना मदद किये जाने नहीं देते. साफ दिल के हैं. जो दिल में है, खुल कर साफ-साफ बोल देते हैं. किसको बुरा लगा, किसको अच्छा लगा, इसकी चिंता नहीं करते. पुराने लोगों से मिल कर बड़ा खुश होते हैं. परिवार के साथ रहना पसंद करते हैं.

सवाल : गुरुजी के बारे में कोई और रोचक जानकारी?

जवाब : शादी के बारे में बताते हैं. लगभग 60 साल पहले की बात है. गुरुजी मेरे गांव (मायके) चांडिल आये थे दुर्गा पूजा घुमने. मेरे गांव में एक राजपूत परिवार रहता था. उस परिवार के किसी की शादी नेमरा के पास हुई थी. गुरुजी से उनलोगों का परिचय था. वे लोग गुरुजी को दुर्गा पूजा में चांडिल लाये. तब हमारी उम्र सिर्फ आठ साल की थी. पूजा घुमने के बाद राजपूत परिवार के चाचा ने गुरुजी से कहा- दुर्गा पूजा घूम लिये. इसी गांव में रिश्ता कर लो तो संबंध और मजबूत हो जायेगा. गांव में एक लड़की (मेरे बारे में) है. इससे शादी हो जाये तो तुम्हारा भविष्य बन जायेगा. गुरुजी ने कहा, चाचा, हम कैसे शादी कर सकते हैं. मेरे बड़े भाई की शादी नहीं हुई है. चाचा ने कहा, बात पक्का कर लो. भैया के लिए हमलोग मिल कर दुलहन खोजेंगे. उसके बाद पहले भैया (गुरुजी के बड़े भाई) की शादी हो गयी. हमलोगों ने कुछ साल इंतजार किया. फिर शादी हो गयी. तब से हमलोग हर सुख-दुख के साथी हैं.

सवाल : कोई और संदेश?

जवाब : अब मेरी उम्र भी काफी हो गयी है. बेटा हेमंत बड़ी जिम्मेवारी निभा रहा है. गुरुजी का संघर्ष काम आया. झारखंड बन गया. सब कोई मिल कर रहे, झारखंड खुशहाल रहे, यही हम चाहते हैं. हमारी और कोई चाहत नहीं है.

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