रंजन/ सुनील. बिहार के लखीसराय जिला अंतर्गत बन्नूबगीचा थाना क्षेत्र अंतर्गत पहाड़ियों की गोद में बसे श्रृंगीऋषि धाम लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है. यहां धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ लोग मनोरंजन की दृष्टि से भी पहुंचते हैं तथा खूबसूरत पहाड़ियों के बीच आनंद उठाते हैं. किवदंती है कि यह वो धाम है, जहां राजा दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किये थे. वहीं भगवान राम सहित चार पुत्र लक्ष्मण, शत्रुधन और भरत के जन्म के बाद उन चारों पुत्र का मुंडन संस्कार भी यहां कराया गया था.
प्रत्येक वर्ष सावन व भादो महीने श्रृंगीऋषि धाम में स्थित महादेव मंदिर में जल अर्पण करने वालों की भीड़ लगी रहती है. वहीं दिसंबर के अंतिम सप्ताह व जनवरी महीने के प्रथम सप्ताह में यह पिकनिक स्पॉट के रूप में भी प्रसिद्ध है. जहां लोग पूजा पाठ के साथ-साथ आसपास पहाड़ियों की गोद में व डैम के पास पिकनिक मनाने का काम भी करते हैं. जिससे इस समय भी लोगों की भीड़ काफी देखी जा सकती है. साथ ही पर्व त्योहारों में भी यहां काफी भीड़ देखने को मिलता है. साथ ही मुंडन संस्कार कार्य के लिए यह काफी प्रसिद्ध स्थल है.
Also Read: PHOTOS: बिहार के लखीसराय में हैं तो ‘अमरासनी’ घूम आइए, पहाड़- झरनों के बीच मनाइए न्यू ईयर का जश्न..भक्ति स्थल होने के साथ ही साथ यहां के पहाड़ियों, झरने और कुंड का आकर्षण खास है. मंदिर के ठीक ऊपर पहाड़ का निकला हुआ हिस्सा भी लोगों को काफी आकर्षित करता है. जिस पहाड़ को लोग अपने मोबाइल का कैमरा खोल कर देखेंगे तो वहां त्रिशुल जैसा आकार दिखाई पड़ता है. वहीं मंदिर के पास पहाड़ी से गिरता झरना व मंदिर के बगल में स्थित कुंड भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. कुंड का पानी पहाड़ के गर्भ से ही कुंड तक पहुंचता है जो ठंड के मौसम में गर्म रहता है. जिस वजह से लोग दिसंबर व जनवरी महीने में यहां स्नान ध्यान कर पूजा अर्चना करने के साथ ही आसपास के क्षेत्र में पिकनिक का आनंद भी उठाते हैं. जबकि जेठ वैशाख महीने में यहां का पानी बिल्कुल ही शीतल रहता है. उस वक्त भी लोग यहां आकर स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं. बताया जाता है कि यहां झरने से निकलने वाला पानी कभी भी बंद नहीं होता. चाहे वो वैशाख की तपती गरमी ही क्यों ना हो. उस समय भी पानी उतना ही शीतल मिलता है जितना एक फ्रिज से आप करते है. यहां के जल वैद्धिक रूप से भी काफी प्रचलित है. अगर आप यहां का पानी पी ले तो आपके पेट की समस्या भी दूर हो जायेगा. खाना पचाने में काफी कारगर है.
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स्थानीय पंडितों की माने तो राजा दशरथ ने पुत्र नहीं होने पर यहां आकर ऋषि विभांडक के पुत्र ऋषि श्रृंग को अपनी परेशानी बतायी. इसके बाद ऋषि श्रृंग की तपस्या से अग्निदेव खीर का कटोरा लेकर प्रकट हुए और उसी खीर को राजा दशरथ ने तीनों रानियों को खिलाया और इसके बाद ही उनके चारों पुत्र हुए. इसके साथ ही कहा जाता है कि चार पुत्र होने के बाद राजा दशरथ के गुरु वशिष्ठ ने चारों पुत्रों का नामांकरण राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के रूप में किया. नामांकरण के बाद चारों पुत्रों को लेकर राजा दशरथ मुंडन कार्य के लिए श्रृंगी ऋषि पहुंचे थे तथा उनका मुंडन संस्कार कराया था.
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बताया जाता है अंग प्रदेश के राजा रोमपाद के शाषणकाल में यहां अकाल पड़ने पर गुरु वशिष्ठ की सलाह पर लखिया नाम की एक वेश्या ने श्रृंगि ऋषि को यहां लाने की ठानी और साधु के वेश में उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर यहां साथ ले आयी. बताया जाता है कि श्रृंगी ऋषि के आगमन से ही यहां की स्थिति ठीक हुई थी. वहीं मंदिर में पूजा करा रहे पूर्व के पंडितों ने बताया कि राजा रोमपाद ने अपनी पुत्री शांता जिसे राजा दशरथ से गोद लिया था उन्हीं से श्रृंगी ऋषि का विवाह रचाया. विवाह के बाद ऋषि विभांडक आशीर्वाद के लिए जब यहां आये तो उसी समय से इस जगह का नामकरण कर श्रृंगी ऋषि धाम रखा गया. यहां के पहाड़ों से बहने वाली धारा को त्रिपद कामिनी, सप्तधारा एवं पातालगंगा कहा जाता है.
श्रृंगीऋषि धाम पहुंचने के लिए किऊल रेलवे स्टेशन से वाहन करके जाना पड़ता है या फिर अपनी वाहन से एसएसबी कैंप बन्नूबगीचा होते हुए जा सकते हैं. किऊल रेलवे स्टेशन से श्रृंगीऋषि धाम की दूरी लगभग 17 किलोमीटर की बतायी जाती है. वहीं कजरा रेलवे स्टेशन से सड़क मार्ग के द्वारा लगभग 10 किलोमीटर तथा पहाड़ियों के रास्ते से पैदल चलने पर महज चार किलोमीटर की दूरी तय कर श्रृंगीऋषि धाम पहुंच सकते है. जहां सरकार एक ओर हर पर्यटक स्थल को बेहतर सुविधा से लैस कर रही है. वैसे ही श्रृंगीऋषि धाम पर भी ध्यान दें तो यह भी एक बेहतर पर्यटक स्थल बन सकता है.
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श्रृंगीऋषि धाम से महज पांच सौ मीटर पहले बने मोरवे डैम में अगर सरकार नौकायान की व्यवस्था करे तो पर्यटकों के लिए खास व्यवस्था होगी. जिससे सरकार के खजाना की भरपाई भी होगी और साथ ही लोग इसका बेहतर आनंद ले सकते है. इस डैम में हमेशा पानी जमा रहता है, जो नौकायान को चार चांद लगाने में कोई कमी नहीं करेगा और हमेशा पर्यटक बने रहेंगे. बशर्ते प्रशासन को देना होगा ध्यान.
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शशिकांत मिश्रा. कश्मीर की मां वैष्णो देवी के संस्थापक भक्त शिरोमणि श्रीधर ओझा द्वारा अपने पैतृक ग्राम बड़हिया में जनकल्याण के लिए स्थापित सिद्ध मंगलापीठ मां बाला त्रिपुरसुन्दरी का मंदिर आज भी लोक आस्था का केन्द्र बना हुआ है. यूतो प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु माता के मंदिर में अपना मत्था टेककर मन की मुरादें प्राप्त करते हैं.मगर प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को मंदर में भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है. मां बाला त्रिपुर सुंदरी जगदम्बा का मंदिर बड़हिया में पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित है. ऐसी मान्यता है कि मां के दरबार में हाजिरी लगाने तथा सच्चे दिल से प्रार्थना करने के बाद लोगों की सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं. तभी तो दिन- प्रतिदिन मां के दरबार में आनेवाले भक्तजनों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हो रही है. मां के श्रद्धालुओं का मानना है कि मां के शरण में जो भी आया, मां ने किसी को खाली हाथ नहीं लौटाया. शारदीय नवरात्र एवं वासंतिक नवरात्र के समय यहां दूर-दूर से हजारों सँख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं
मान्यता यह भी है कि विषधर सांप के काटने पर मां के मंदिर में पीड़ित को लाने पर यहां अभिमंत्रित जल पिलाने के बाद विष दूर हो जाता है. मां की महिमा अद्धितीय है.कहा जाता है कि जिसने भी सच्चे मन से मां के दरबार में आकर उनकी अराधना की.मां ने उसे कभी निराश नहीं किया.सबों को मनचाहा फल जरूर देती है.यही कारण है कि दिन प्रतिदिन मां के दरबार में भक्तों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है. मां की महिमा की चर्चा सुन कर दूर दूर से लोग इनके दरबार में आते हैं. ऐसे तो रोजदिन ही मां के मंदिर में भारी संख्या में भक्तजनों का जमावड़ा लगता है, मगर खासकर मंगलवार और शनिवार के दिन श्रद्धालुओं का मेला लगता है. नवरात्रा के अवसर पर तो श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. क्षेत्र के विद्वान पंडितों तथा शक्ति के उपासकों द्वारा कलश स्थापित कर हवन पूजन तथा दुर्गा शप्तसती के मंत्रोच्चार से पूरे बड़हिया का वातावरण भक्तिमय हो जाता है.
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