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झारखंड : 2023 में बना प्लान, पर आदिम जनजातियों की नहीं बदली तकदीर

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उपायुक्त गुमला के निर्देश पर जेटीडीएस की टीम ने अप्रैल व मई माह में आदिम जनजाति गांवों का सर्वे किया है. दो माह तक चले सर्वे में आदिम जनजातियों की स्थिति का खुलासा हुआ है

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दुर्जय पासवान, गुमला

गुमला के जंगल व पहाड़ों में रहने वाले आदिम जनजातियों (असुर, कोरवा, बिरहोह व बृजिया) तक सरकारी योजना नहीं पहुंच पा रही है. 2023 में इस जनजाति की तकदीर व तस्वीर बदलने के लिए गुमला प्रशासन ने प्लान बनाया, फिर भी कुछ खास बदलाव इस जनजाति में नहीं आया. अब 2024 में इस जनजाति की तकदीर व गांवों की तस्वीर बदलने की उम्मीद है. बता दें कि आज भी इस जनजाति की एक बड़ी आबादी शहरी जीवन से कटी हुई है. इस जनजाति में शिक्षा का स्तर कम है. मात्र 17 प्रतिशत आदिम जनजाति शिक्षित हैं. वहीं गरीबी, बेरोजगारी व अशिक्षा के कारण 40 प्रतिशत युवा दूसरे राज्य पलायन कर गये हैं.

उपायुक्त गुमला के निर्देश पर जेटीडीएस की टीम ने अप्रैल व मई माह में आदिम जनजाति गांवों का सर्वे किया है. दो माह तक चले सर्वे में आदिम जनजातियों की स्थिति का खुलासा हुआ है. आज भी इनकी जिंदगी जंगल व पहाड़ों तक सिमटी हुई है. सर्वे से खुलासा हुआ है. 171 गांवों में 3475 आदिम जनजाति परिवार रहते हैं. इनकी आबादी 16387 हैं. सबसे अधिक बिशुनपुर, चैनपुर व घाघरा प्रखंड के दूरस्थ गांवों में ये जनजाति रहते हैं.

126 गांवों में स्कूल नहीं: 

171 गांवों के सर्वे से पता चला कि मात्र 45 गांव में ही स्कूल हैं, जबकि 126 गांवों में स्कूल नहीं है. माना जा रहा है कि स्कूल नहीं रहने से आदिम जनजातियों में शिक्षा का स्तर कम है. नजदीक के गांवों में स्कूल हैं, परंतु, स्कूल तक जाने के लिए सड़क व पुल-पुलिया नहीं है. मात्र एक प्रतिशत आदिम जनजाति उच्च शिक्षा प्राप्त की है. 171 में 87 गांवों में ही आंगनबाड़ी केंद्र है. वहीं 74 गांवों तक मोबाइल कनेक्टिविटी है.

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आठ से 30 किमी दूर है अस्पताल: 

जिन गांवों में आदिम जनजाति रहते हैं, उन गांवों से अस्पताल की दूरी आठ से 30 किमी है. यहीं वजह है. बीमार व गर्भवती महिलाओं को परेशानी होती है. ऊपर से गांवों में पक्की सड़क भी नहीं है. कई नदी व नालों में पुल-पुलिया नहीं है. इस कारण अस्पताल पहुंचने में देरी होने से जान चली जाती है. पांच प्रतिशत लोग ही सब्जी की खेती करते हैं. बाकी लोग बरसात पर निर्भर रहते हैं. जंगल से कंद मूल भी खाते हैं. बेरोजगार युवा उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, वेस्ट बंगाल के चाय बागान पलायन कर गये हैं.

137 गांवों में पेयजल की समस्या :

जेटीडीएस के सर्वे से खुलासा हुआ है. आदिम जनजाति गांवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है. गांवों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, अच्छी सड़क, पेयजल व बिजली की सुविधा नहीं है. रोजगार भी नहीं है. 3391 परिवारों में मात्र 670 परिवार के पास आयुष्मान कार्ड हैं. 171 गांवों में से मात्र 34 गांवों में ही स्वच्छ पेयलल की सुविधा है, जबकि 137 गांवों में रहने वाले आदिम जनजाति नदी, चुआं, दाड़ी या तो पहाड़ का पझरा पानी पीते हैं.

गुमला में रहनेवाले आदिम जनजाति: 

असुर, कोरवा, बृजिया व बिरहोर आदिम जनजाति के लोग गुमला में रहते हैं. कुल 49 पंचायतों के 164 गांवों में आदिम जनजातियों का डेरा है. कुल परिवारों की संख्या 3391 हैं, जिनकी आबादी 20 हजार से अधिक हैं.

जनजातियों को सरकारी योजना से जोड़ें : विधायक

विधायक भूषण तिर्की ने कहा है कि सरकार द्वारा आदिम जनजातियों के विकास के लिए अनगिनत योजनाएं चला रही हैं. आइटीडीए विभाग इन योजनाओं को आदिम जनजातियों तक पहुंचायें, ताकि आदिम जनजातियों की जो समस्याएं हैं, उसका निराकरण हो सके. विधायक ने कहा कि अगर सरकारी योजना को महज खानापूर्ति तरीके से आदिम जनजातियों तक पहुंचाया जा रही है, तो यह लापरवाही है.

गुमला : प्रखंडवार आदिम जनजाति परिवारों की संख्या

प्रखंड पंचायत गांव परिवार

बिशुनपुर 10 52 1315

चैनपुर 06 39 655

डुमरी 12 29 499

घाघरा 07 27 470

रायडीह 09 11 388

गुमला 02 03 039

पालकोट 02 02 014

कामडारा 01 01 011

टोटल 49 164 3391

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