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नया डाकघर कानून

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डाकघरों में 26 करोड़ खाते हैं, जिनमें 17 लाख करोड़ रुपये जमा हैं. नये कानून से ऐसी सेवाओं की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होगी.

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संसद से पारित नये डाकघर कानून से डाक सेवाओं में बड़े बदलाव की उम्मीद है. यह कानून सवा सौ साल पुराने भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 का स्थान लेगा. तकनीक के विस्तार के साथ-साथ डाकघरों की उपयोगिता में भी बदलाव आया है. चिट्ठी और टेलीग्राम जैसी चीजें गुजरे जमाने की बातें हो चुकी हैं. आज आम तौर पर सरकारी और अदालती पत्र व्यवहार के लिए मुख्य रूप से डाक सेवाओं का उपयोग होता है. लोग संपर्क के लिए फोन, ईमेल, सोशल मीडिया आदि का उपयोग करते हैं. ऐसे में वर्तमान और भविष्य के अनुरूप डाक सेवाओं की रूप-रेखा निर्धारित करना आवश्यक था. नये कानून ने भारतीय डाक को विभिन्न नागरिक-केंद्रित सेवाओं को उपलब्ध कराने वाले एक नेटवर्क के रूप में विकसित करने का आधार दिया है. इसके लिए पुराने कानून के प्रावधानों को सरल बनाया गया है. बीते दशकों में निजी कूरियर सेवाओं का अत्यधिक विस्तार हुआ है, लेकिन इस क्षेत्र के नियमन के लिए वैधानिक व्यवस्था नहीं थी. अब इसका नियमन नये कानून के प्रावधानों के तहत होगा.

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एक प्रावधान यह भी है कि केंद्र सरकार डाक से जा रहे किसी पार्सल की जांच कर सकती है और उसे खोल कर देख सकती है. इस पर कुछ आलोचना हुई है, पर राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य चिंताओं को देखते हुए इसे लाया गया है. पार्सल से अवैध हथियार, नशीले पदार्थ आदि भेजने के अनेक मामले सामने आ चुके हैं. पहले किसी भी सेवा को उपलब्ध कराने के तौर-तरीके और शुल्क में बदलाव की प्रक्रिया जटिल थी, जिसके कारण निर्णय लेने में देर हो जाती थी. अब ऐसे किसी निर्णय का अधिकार डाक सेवाओं के महानिदेशक को दे दिया गया है. यह जगजाहिर तथ्य है कि आम लोग सरकारी सेवाओं पर अधिक भरोसा करते हैं. डाकघरों में बचत करने के पीछे यह मुख्य कारण है. चूंकि भारतीय डाक का नेटवर्क बहुत विशाल है, तो ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के लोग भी बैंकिंग के लिए निकट के डाकघर पर निर्भर रहते हैं. हालांकि वित्तीय समावेशी नीतियों के चलते बैंकिंग सेवाएं आम जन को सुलभ हुई हैं तथा मोबाइल उपकरणों एवं लाभार्थी खाते में नगदी के हस्तांतरण की नीति से भी सेवाओं का विस्तार हुआ है, पर डाकघर पर अब भी भरोसा बरकरार है. डाकघरों में 26 करोड़ खाते हैं, जिनमें 17 लाख करोड़ रुपये जमा हैं. नये कानून से ऐसी सेवाओं की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होगी. हालांकि निजी कूरियर सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत रखा गया है, पर भारतीय डाक को इससे मुक्त रखा गया है. ऐसे में भारतीय डाक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सेवाओं की गुणवत्तापूर्ण उपलब्धता हो.

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