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स्वास्थ्य क्षेत्र एवं जलवायु

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उत्सर्जन घटाने के लिए वर्तमान इंफ्रास्ट्रक्चर में व्यापक बदलाव करने के लिए बड़ी मात्रा में धन और समय की आवश्यकता होगी. इससे हमारा ध्यान स्वास्थ्य सेवा के विस्तार के महत्वपूर्ण लक्ष्य से भटक सकता है.

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संयुक्त अरब अमीरात के दुबई शहर में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान स्वास्थ्य क्षेत्र में उत्सर्जन, प्रदूषण और कचरे को सीमित करने की घोषणा हुई है. इस घोषणापत्र पर अब तक 124 देश सहमत हो चुके हैं, पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की सूची में भारत और अमेरिका का नाम नहीं है. इस घोषणा का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य क्षेत्र में ऐसे उपायों और पहलों को बढ़ावा देना है, जिससे जलवायु संकट को रोकने और धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित रखने में मदद मिले. साथ ही, अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों की तरह वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र भी हरित भविष्य की ओर अग्रसर हो. इस घोषणापत्र पर भारत के हस्ताक्षर ना करने पर चिंताएं जतायी जा रही हैं, लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि इस असहमति के आधार क्या हैं.

अब तक हुए जलवायु सम्मेलनों, घोषणाओं और निर्णयों में भारत ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है. स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी भारत की प्रगति संतोषजनक है. भारत ने वैश्विक मंचों पर अपनी आशाओं और आकांक्षाओं के साथ-साथ विकासशील देशों की जलवायु संबंधी अपेक्षाओं को भी प्रतिनिधित्व दिया है. लेकिन यह भी एक वास्तविकता है कि दुनिया में सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था होने के कारण उसे जीवाश्म-आधारित ईंधनों का उपयोग कुछ दशक तक करना है. अमेरिका और चीन के साथ भारत उन देशों की सूची में ऊपर है, जो सर्वाधिक कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं. लेकिन अगर ऐतिहासिक विश्लेषण देखा जाए तथा उत्सर्जन के प्रति व्यक्ति औसत का हिसाब किया जाए, तो भारत से कई गुना अधिक उत्सर्जन अमेरिका और अन्य विकसित पश्चिमी देश करते रहे हैं.

हालांकि भारत ने आधिकारिक रूप से अपना पक्ष नहीं रखा है, पर रिपोर्टों के अनुसार, स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत अभी उत्सर्जन में कटौती के प्रावधान को लागू करने की स्थिति में नहीं है. हमारे सामने स्वास्थ्य संबंधी कई चुनौतियां हैं. विभिन्न बीमारियों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याएं भी हैं. इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए समुचित स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था स्थापित करने में अभी समय लगेगा. ऐसी स्थिति में उत्सर्जन घटाने के लिए वर्तमान इंफ्रास्ट्रक्चर में व्यापक बदलाव करने के लिए बड़ी मात्रा में धन और समय की आवश्यकता होगी. इससे हमारा ध्यान स्वास्थ्य सेवा के विस्तार के महत्वपूर्ण लक्ष्य से भटक सकता है.

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