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झारखंड : उत्तरकाशी टनल हादसे से सकुशल लौटे चक्रधरपुर के महादेव ने प्रभात खबर को सुनायी आपबीती

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उत्तरकाशी टनल हादसे में दूसरा जन्म लेकर सकुशल वापस आये चक्रधरपुर के चेलाबेड़ा गांव निवासी महादेव नायक ने प्रभात खबर से दूरभाष पर वार्ता कर घटना की आपबीती सुनायी. महादेव की बतायी सारी बातें काफी डरावनी हैं.

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उत्तरकाशी टनल हादसे में दूसरा जन्म लेकर सकुशल वापस आये चक्रधरपुर के चेलाबेड़ा गांव निवासी महादेव नायक ने प्रभात खबर से दूरभाष पर वार्ता कर घटना की आपबीती सुनायी. महादेव की बतायी सारी बातें काफी डरावनी हैं. उन्होंने बताया कि 12 नवंबर को दीपावली को लेकर सारे मजदूर काफी उत्सुकता के साथ टनल के बाहर निकल रहे थे. इतने में शाम करीब चार से साढ़े चार के बीच टनल के अंदर एक जोरदार आवाज आयी और अंधेरा छा गया. उस वक्त टनल के अंदर तीन ठेकेदारों के 41 मजदूर थे. सभी बाहर जाने का रास्ता तलाशने लगे, लेकिन कहीं से भी रास्ता नहीं दिखायी पड़ा. हादसे की खबर किसी तरह ठेकेदार तक पहुंची. जिसके कई घंटे के बाद टनल में रोशनी आई. इसके बाद टनल धंसने की बात सामने आई. ऐसा लगा, मानो जिंदगी खत्म हो गयी. यहां से बाहर निकल पायेंगे या नहीं इसकी चिंता हम सबों को सता रही थी. हादसे के 17 दिनों तक टनल के अंदर एक मिनट के लिए भी बिजली गुल नहीं हुई. इस दौरान सभी मजदूरों ने एक साथ होकर एक-दूसरे को हिम्मत दिया. इस दर्दनाक घटना में सब एक साथ हुए. सभी ने अपने-अपने स्तर से अपनी परेशानी को टनल के बाहर तक पहुंचाया.

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20 मजदूरों के पास थी मोबाइल, बाकी रूम में छोड़ गये थे

महादेव ने आगे बताते हुए कहा, 12 नवंबर को जब टनल के अंदर मजदूर काम पर गये थे, तो आधे से अधिक अपनी मोबाइल रूम में ही छोड़ कर गये थे. मैं, जिस ठेकेदार के अंडर में कार्य कर रहा था. उसकी टीम के दस मजदूर टनल में फंसे थे. जिसमें पांच मजदूरों के पास मोबाइल थी. कुछ घंटे के बाद टनल के अंदर रोशनी पहुंची. तब टनल का मुख्य द्वारा मलवा से जाम मिला. निकलने का कहीं से भी रास्ता नहीं था. टनल के अंदर क्या रात व क्या दिन दोनों एक समान थे. रोशनी आने के बाद मजदूर एक-दूसरे के साथ खड़े हुए थे. इतने में सूचना मिली कि रेस्क्यू टीम अपना काम कर रही थी. जो भोजन मजदूर अपने साथ लेकर टनल के अंदर थे, मिल बांट कर खाया.

प्लास्टिक को बिस्तर बना कर रात काटी

महादेव ने बताया कि हादसा के बाद 41 मजदूरों को सोना और जागना दो ही काम बचे थे. प्लास्टिक को बिस्तर बना कर सभी ने रातें काटी. मजदूरों का मन भटकाने के लिए प्रशासन की ओर से ताश की पत्ती, लूडो व अन्य सामग्री भेजी गयी थी. जिसे खेल कर मजदूरों ने 17 दिन बिता दिये. मोबाइल का नेटवर्क नहीं था. टनल में किसी तरह की परेशानी नहीं थी. बस डर समाया था. पहाड़ों से निकलने वाले पानी का उपयोग किया. पानी व भोजन की परेशानी नहीं थी. पाइप के जरिये हम तक भोजन पहुंच रहा था. इससे एहसास हुआ कि उत्तरकाशी प्रशासन मदद को कदम उठा रही थी. इतना बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन हम सबों को बचाने के लिए चला, यह बाहर आने के बाद पता चला.

भारत सरकार व उत्तराखंड सरकार को धन्यवाद

महादेव ने कहा कि हम 41 मजदूर मौत के मुंह में थे. जान चली गयी थी. लेकिन ईश्वर की कृपा, देशवासी व परिजनों की दुआ हमारे साथ थी. 28 नवंबर को सभी मजदूर सकुशल टनल से बाहर आये. इसके लिये भारत सरकार व उत्तराखंड सरकार धन्यवाद के पात्र हैं. टनल से बाहर आने के बाद जो केयर प्रशासन की ओर से की गयी. यह काफी हमदर्दी वाला था.

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