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तिरंगा हमारा राष्ट्र-भगवान, प्रेमानंद महाराज ने वृंदावन में मिलने पहुंचे सरसंघचालक मोहन भागवत से कही ये बात

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प्रेमानंदजी महाराज ने कहा कि हमारी शिक्षा केवल आधुनिकता का स्वरूप लेती जा रही है. व्यभिचार, व्यसन, हिंसा की प्रवृत्ति नई पीढ़ी में देखने पर हृदय में बहुत असंतोष देखने को मिलता है. हमें जितना राम, कृष्ण प्रिय हैं, उतना ही हमारे लिए भारत देश प्रिय है.

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Mathura News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को मथुरा वृंदावन में संत प्रेमानंदजी महाराज से भेंट कर उनका आशीर्वचन प्राप्त किया. मोहन भागवत पीला दुपट्टा ओढ़ाकर प्रेमानंदजी महाराज का स्वागत करते हैं. सरसंघचालक ने कहा कि आपकी बातें वीडियो में सुनी थी, तो लगा कि एक बार दर्शन कर लेना चाहिए. उन्होंने आगे कहा, ‘चाह गई, चिंता मिटी…मनवा बेपरवाह’ आप जैसे लोग कम देखने को मिलते हैं. इस दौरान बाद प्रेमानंदजी महाराज ने कहा कि अपने लोगों का जन्म सिर्फ सेवा के लिए हुआ है, व्यवहारिकी और आध्यात्म की सेवा. यह दोनों सेवाएं अति अनिवार्य हैं. हम भारत के लोगों को परम सुखी करना चाहते हैं, तो सिर्फ वस्तु और व्यवस्था से नहीं कर सकते हैं, बौद्धिक स्तर में सुधार जरूरी है. उन्होंने कहा कि आज हमारे समाज का बौद्धिक स्तर गिरता चला जा रहा है. यह बहुत चिंता का विषय है. प्रेमानंदजी महाराज ने कहा कि हम सुविधा दे देंगे, कई प्रकार की भोग सामग्रियां दे देंगे. लेकिन, हृदय की जो मलीनता है, जो हिंसा साथ में प्रवृति है, जो अपवित्र बुद्धि है, यह जब तक ठीक नहीं होगी, तब तक हमारा देश का हित नहीं होगा. हमारे देश में धर्म की प्रधानता है. जो हमारी नई पीढ़ी है, इसी से हमारे राष्ट्र की रक्षा करने वाले प्रकट होते हैं. जो विद्यार्थीजन हैं, उनमें से कोई विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनता है.

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शिक्षा का सिर्फ आधुनिक स्वरूप सही नहीं

प्रेमानंदजी महाराज ने सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत से कहा कि हमारी शिक्षा केवल आधुनिकता का स्वरूप लेती जा रही है. व्यभिचार, व्यसन, हिंसा की प्रवृत्ति नई पीढ़ी में देखने पर हृदय में बहुत असंतोष देखने को मिलता है. उन्होंने कहा अविनाशी जीव कभी भोग विलासी नहीं हो सकता. हम अगर अपने देश की विशिष्ट सेवा करना चाहते हैं तो हमारे धर्म का क्या स्वरूप है, हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है, ये समझना होगा. हमें जितना राम, कृष्ण प्रिय हैं, उतना ही हमारे लिए भारत देश प्रिय है. अब जो मानसिकता बन रही है, वह हमारे धर्म और देश के लिए लाभदायक नहीं है. व्यसन, व्यभिचार हिंसा का इतना बढ़ता स्वरूप यह बहुत ही विपत्तिजनक है. अगर यह बढ़ता रहा, तो हम कई प्रकार के सुख सुविधा देने पर भी देशवासियों को सुखी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि सुख का स्वरूप विचार से होता है.

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देशवासियों का विचार होना चाहिए शुद्ध, बच्चों के आचरण में सुधार जरूरी

प्रेमानंदजी महाराज ने कहा कि हमारे देशवासियों का विचार शुद्ध होना चाहिए अगर विचार शुद्ध है तो राष्ट्रप्रियता, जन सेवा, समाज सेवा यह सब स्वाभाविक होने लगेगा और विचार अशुद्ध है तो सुविधा बहुत होने से उनका दुरुपयोग होगा. उन्होंने मोहन भागवत जैसे लोगों से उचित कदम उठाने और प्रयास की अपील की. उन्होंने कहा मानव जीवन का स्वरूप बहुत सुलभ है, जिसे देवताओं के लिए भी दुर्लभ कहा गया है. लेकिन, क्या दुर्लभता व्यसन जैसी सुविधाओं के लिए है, हम सच्चिदानंद स्वरूप को भूले हुए हैं. अपने धर्म को समझना जरूरी है. आज छोटे-छोटे बच्चे व्यसन करने में लग गए आज स्कूल जाने वाले विद्यार्थी जिन्हें, ब्रह्मचारी होना चाहिए, वह ब्रह्मचर्य नष्ट कर रहे हैं, यह चिंता का विषय है. हमारे देश के लिए जो जवान चाहिए, उसमें बुद्धि और शरीर दोनों स्वस्थ होना जरूरी है.

राष्ट्र सेवा के लिए विशाल हृदय की जरूरत

राष्ट्र सेवा के लिए विशाल हृदय की आवश्यकता है. शरीर को स्वस्थ रहने की आवश्यकता है. शरीर और बुद्धि दोनों का स्वस्थ होना जरूरी है. शरीर को विषय भोगों से नष्ट किया जा रहा है. लोग समझ रहे हैं कि मांस खाने से हम बलवान बनेंगे, हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, अध्यात्मबल को छोड़कर हम शरीर की चर्बी बढ़ा लें. लेकिन, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहिंसा पर विजय नहीं प्राप्त कर सके तो क्या जीवन है. प्रेमानंदजी महाराज ने कहा कि इस समय आवश्यकता विचार, आहार, आचरण शुद्ध करने की है. हमारे देश ने चरित्र की पूजा की है. रावण किसी बात में कम नहीं था. आज भी शिवजी का अभिषेक होता है, तो तांडव स्त्रोत उसी का गया जाता है. ऐसा विद्वान, ऐसा बलवान महाबली जब चरित्रहीन हो गया, तो उसको लोगों ने राक्षस कह दिया. आज हम चरित्र पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. छोटे-छोटे बच्चे चरित्रहीन हो रहे हैं, इससे हमारा देश संकट में पड़ जाएगा.

मोहन भागवत को चिंता छोड़ काम करने की नसीहत

इस पर मोहन भागवत ने कहा कि आप संत लोग से जो बोलते हैं, सुनते हैं हम लोग वैसा ही करते चले जा रहे हैं. तीन दिन पहले नोएडा में यही बातें रखी थीं. आप लोग भी करते चले जा रहे हैं. यह बातें बढ़ भी रही हैं, प्रयास तो हम करेंगे ही, निराश हम कभी नहीं होंगे. जीन और मरना इसी के साथ है. लेकिन, कभी चिंता मन में आती है, इस पर प्रेमानंदजी महाराज ने कहा इसका सीधा उत्तर है कि क्या हम श्रीकृष्णा पर भरोसा नहीं करते. अगर भरोसा दृढ़ है तो परम मंगल होगा. आपको इन्हीं लोगों में से अच्छे लोग तैयार करने होंगे, आपको चिंता नहीं करनी है. हमारा तिरंगा हमारा राष्ट्र है, भगवान है. एक भजनानंदी लाखों का उद्धार कर सकता है.

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