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मुलायम सिंह ने बदली थी सियासत की दिशा, पीएम नहीं बनने का रहा मलाल, जयंती पर सैफई में हुआ स्मारक का शिलान्यास

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यूपी के सीएम की तीन बार कुर्सी संभालने वाले मुलायम सिंह यादव की ख्वाहिश थी, कि वह एक बार प्रधानमंत्री बनें. जोड़ तोड़ कर वह पीएम पद के करीब तक पहुंच गए. मगर, लालू प्रसाद यादव और शरद पवार ने पेंच फंसा दिया. इस कारण मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री नहीं बन पाएं.

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Mulayam Singh Yadav Jayanti: पूर्व रक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की जयंती पर सीएम योगी आदित्यनाथ, दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक सहित कई अन्य मंत्रियों और नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है. इस मौके पर सैफई में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव की जयंती पर उनके स्मारक का भूमि पूजन और शिलान्यास किया. सैफई में मुलायम कुनबे के साथ समाजवादी नेता कार्यक्रम में पहुंचे हैं. देश की सियासत में मुलायम सिंह यादव के कद की बात करें तो उनके सभी दलों के प्रमुख नेताओं से अच्छे संबंध रहे. दलीय सीमा से हटकर मुलायम सिंह यादव ने कई बार लोगों की मदद भी की. इसलिए उनकी जयंती पर आज देश भर से लोग श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. आम लोगों के बीच नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव अखाड़े के पहलवान थे. उन्होंने दंगल में अच्छे-अच्छे पहलवान को अपने दांव से चित किया. उनके पिता सुघर सिंह यादव की ख्वाहिश थी कि वह हिंद केसरी का खिताब जीतें, लेकिन कुश्ती के माहिर मुलायम सिंह यादव शिक्षक बन गए. उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया. मुलायम सिंह की पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा में हुई. उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (एमए) और बीटीसी की. इसके बाद इंटरमीडिएट कालेज में प्रवक्ता नियुक्त हो गए. कुछ दिनों तक मैनपुरी के करहल स्थ‍ित जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक भी रहे. मगर,सक्रिय राजनीति में आने के बाद नौकरी से त्यागपत्र दे दिया.वह दंगल के दांव पेंचों के साथ ही सियासत के भी माहिर खिलाड़ी हो गए.

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जनसभा में लगाए जाते थे मुलायम के पीएम बनने के नारे

यूपी के सीएम की तीन बार कुर्सी संभालने वाले मुलायम सिंह यादव की ख्वाहिश थी, कि वह एक बार प्रधानमंत्री बनें. जोड़ तोड़ कर वह पीएम पद के करीब तक पहुंच गए. मगर, लालू प्रसाद यादव और शरद पवार ने पेंच फंसा दिया. इस कारण मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री नहीं बन पाएं. वह पीएम बनने के लिए लालू प्रसाद यादव को समधी भी बनाना चाहते थे, लेकिन उनके पुत्र अखिलेश यादव नहीं मानें. उन्होंने डिंपल सिंह यादव से शादी कर ली. बाद में अखिलेश यादव ने अपने भतीजे की शादी लालू प्रसाद यादव की बेटी से कराई, तब तक नेताजी की उम्र अधिक हो गई. वह सक्रिय सियासत से दूर हो चुके थे. नेताजी को पार्टी के साथ ही विपक्षी पार्टी के नेता भी प्रधानमंत्री पद पर देखने की बात कहते थे. इससे नेताजी के चेहरे पर खुशी आ जाती थी. अक्सर मंच से भी नेताजी को पीएम बनाने के नारे लगवाएं जाते थे. वह यूपी के पहले ओबीसी सीएम थे. इसके बाद अन्य सियासी पार्टियों को यूपी में जातिगत समीकरण बदलने पड़े थे.

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बरेली से मुलायम सिंह को मिला नेताजी का खिताब

सपा संस्थापक स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव ने अपने दांव से अखाड़े में बड़े-बड़े पहलवानों को चित किया. उन्होंने सियासी दंगल में भी बड़ों-बड़ों को मात दी. सोशलिस्ट पार्टी से सियासी सफर शुरू करने वाले मुलायम सिंह यादव 1967 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर मंत्री बने. मंत्री रहने के दौरान वह एक बार कार्यक्रम में बरेली की आंवला तहसील आएं थे. यहां के एक बुजुर्ग ने उनको नेताजी के नाम से संबोधन किया. इसके बाद उनकी ‘नेताजी’ के रूप में देश भर में पहचान बन गई. आंवला में आयोजित में इस कार्यक्रम में सिर्फ 500 लोग जुटे थे. इसके बाद 1982 में आंवला के कुद्दा गांव में जनसभा की.यादव बाहुल्य गांव में बड़ी संख्या में भीड़ जुटी थी. यहां सपा के पूर्व राजसभा सदस्य वीरपाल सिंह यादव ने कुछ लोगों के साथ सिक्कों से तोला था. इसके बाद बरेली से उनका नाता घर से जैसा हो गया है. मगर, वह बरेली में आखिरी बार 16 दिसंबर 1992 को आएं थे. उन्होंने शहर के जीआईसी इंटर कॉलेज में जनसभा की थी. इसमें 5 लाख की भीड़ जुटने का अनुमान जताया गया था.

वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद भी बरकरार रखी कुर्सी

मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें. नवंबर 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह यादव ने चन्द्र शेखर के जनता दल का दामन थाम लिया. वह कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री बने रहे. अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया. 1993 में गठबंधन से बनाई सरकार सपा और बसपा ने 1993 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा. दोनों को जनता ने बहुमत दिया.मुलायम सिंह यादव दूसरी बार सीएम बने. मगर, सरकार चलने के दौरान दोनों का टकराव होने लगा. 02 जून 1995 को बसपा ने समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया.इससे सरकार अल्पमत में आ गई.

पहली बार 1967 में बने MLA, सोशलिस्ट पार्टी से सियासी सफर

मुलायम सिंह यादव सबसे पहली बार 1967 में विधायक बने. इसके बाद 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993, 1996 और 2003 में विधायक चुने गए.1982 से 1985 तक एमएलसी रहे. उस वक्त नेता विपक्ष की भी भूमिका निभाई. इसके बाद 1985 से 1987 तक विधानसभा में नेता विपक्ष रहे. मुलायम सिंह यादव ने सोशलिस्ट पार्टी से सियासी सफर शुरू किया. मगर, इसके बाद लोकदल और जनता दल में भी रहे थे. उन्होंने 1992 में समाजवादी पार्टी (सपा) का गठन किया. मुलायम सिंह ने पहली बार 05 दिसम्बर 1988 को यूपी के मुख्यमंत्री (सीएम) के रूप में शपथ ली. वह 24 जून 1991 तक सीएम रहे थे. इसके बाद 05 दिसम्बर 1993 से 03 जून 1995 और अंतिम बार 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक सीएम रहे थे. 2012 में सपा की सरकार बनीं, लेकिन उन्होंने पुत्र अखिलेश यादव को सियासी विरासत सौंप दी. उनको सीएम बनाया.मुलायम सिंह केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री भी रहे थे. मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें. नवंबर 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह यादव ने चन्द्र शेखर के जनता दल का दामन थाम लिया.वह कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री बने रहे. अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया. सपा और बसपा ने 1993 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा.दोनों को जनता ने बहुमत दिया. मुलायम सिंह यादव दूसरी बार सीएम बने. मगर, सरकार चलने के दौरान दोनों का टकराव होने लगा. 02 जून 1995 को बसपा ने समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया.इससे सरकार अल्पमत में आ गई.

रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद, बरेली

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